सुप्रीम कोर्ट में याचिका, सड़क दुर्घटनाओं को गैर जमानती अपराध बनाने के लिए राज्य संशोधन और दो से अधिक वाहन खरीदने पर प्रतिबंध की मांग
सड़क दुर्घटनाओं को गैर-जमानती अपराध बनाने के लिए केंद्र और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश देने के लिए सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक याचिका दायर की गई है, ताकि ड्राइवरों के मन में एक आशंका पैदा की जा सके, उन्हें सावधानी से गाड़ी चलाने के लिए मजबूर किया जा सके।
याचिका में एक परिवार में दो से अधिक वाहन खरीदने से प्रतिबंधित करके सड़कों पर वाहनों के घनत्व को कम करने के निर्देश देने की भी प्रार्थना की गई है।
सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय, पोर्टल और आरटीआई आवेदनों से प्राप्त जानकारी और दस्तावेजों पर भरोसा करते हुए, श्रीकांत प्रसाद द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि 2019 में लगभग 67% दुर्घटनाएं तेज गति और लापरवाही से ड्राइविंग के कारण हुईं।
याचिका में कहा गया है, "हमारी प्रतिबद्धता और प्रयासों के बावजूद देश में सड़क दुर्घटनाएं मौत, विकलांगता और अस्पताल में भर्ती होने का एक प्रमुख कारण बनी हुई हैं। भारत 199 देशों में सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों की संख्या में पहले स्थान पर है और दुनिया में दुर्घटना से संबंधित मौतों का लगभग 11% भारत में होती हैं।"
याचिका में आगे कहा गया है, "सरकार महामारी के कारण होने वाली मौतों पर अंकुश लगाने के लिए वैक्सीन ढूंढ रही है और ठीक है, लेकिन दूसरों की लापरवाही के कारण हर साल लाखों निर्दोष मौतों पर अंकुश लगाने के लिए वैक्सीन का क्या। धारा 304-ए के तहत मौजूदा "लचीली सजा" के कारण, जिसमें अधिकतम दो साल की कैद, जुर्माने के साथ, या दोनों के साथ दी जाती है, हमने देखा है कि दोषियों के साथ अक्सर ही और भी अधिक उदारता बरती जाती है या बिल्कुल भी जेल नहीं होती है और वे केवल जुर्माने के साथ छूट जाते हैं।"
याचिका में भारतीय दंड संहिता की धारा 304ए में संशोधन का सुझाव दिया गया है ताकि तेज गति और लापरवाही से वाहन चलाने के अपराध को गैर-जमानती बनाया जा सके और जैसा कि वर्तमान प्रावधान के अनुसार आरोपी पर भार डाला जा सके।
याचिका में कहा गया है, "इन अपराधों को गैर-जमानती बनाने के लिए भारतीय दंड संहिता की धारा 279 और 337, 338 में संशोधन किया जाए। चूंकि वाहनों की संख्या में वृद्धि और तेज गति से वाहन चलाने के कारण देश भर में सड़क दुर्घटनाओं की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है, दुर्घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए कानून को कुछ निवारक प्रभावों के साथ बनाना चाहिए क्योंकि अपराधी के मन में कोई डर नहीं है।"
"एक पेशेवर चालक लगभग अपने पूरे काम के घंटों में ऑटोमोबाइल के एक्सिललेटर पर पैर मारता है। उसे लगातार खुद को बताना चाहिए कि जब उसका पैर किसी वाहन के एक्सिलरेटर पर होता है तो वह आराम या लापरवाही का एक पल भी बर्दाश्त नहीं कर सकता है। यह सोचकर उसे एक मौका नहीं लेना चाहिए कि तेज गति से गाड़ी चलाने से दुर्घटना होना जरूरी नहीं है; या यदि कोई दुर्घटना होती है, तो यह जरूरी नहीं है कि किसी इंसान की मौत हो, या यहां तक कि अगर ऐसी मौत हो जाती है तो उसे अपराध का दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। और अंत में, कि अगर उसे दोषी ठहराया जाता है, तो भी उसके साथ अदालत द्वारा नरमी से व्यवहार किया जाएगा। उसके मन में हमेशा डर रहना चाहिए कि अगर उसे अपराध के लिए दोषी ठहराया जाता है तो वह जेल की सजा से बच नहीं सकता है।"
याचिका निम्नलिखित प्रार्थनाएं की गई हैं-
- यह अदालत एक गैर-जमानती अपराध के रूप में सड़क दुर्घटनाओं के संदर्भ में, आईपीसी की धारा 279, 304ए, 337, 338 में संशोधन के जरिए उचित कदम उठाने के लिए प्रतिवादी संख्या एक से 34 तक को निर्देशित करने के लिए एक परमादेश रिट जारी करने की कृपा कर सकती है।
- प्रतिवादी संख्या एक से 34 तक को सिंगापुर की तरह एक परिवार में 2 से अधिक वाहन खरीदने से प्रतिबंधित करके सड़कों पर वाहनों के घनत्व को कम करने के लिए उचित कदम उठाने के लिए निर्देश दे।
- प्रतिवादी संख्या 35 से 59 को अधीनस्थ न्यायालयों को दुर्घटना के मामलों पर विचार करने और गुण-दोष के आधार पर जमानत आवेदनों पर निर्णय लेने का निर्देश देना चाहिए, न कि धारा 436 के तहत नियमित तरीके से, ताकि आरोपी और सड़क उपयोगकर्ताओं के मन में कानून का डर पैदा हो।
- वाहन की भीड़ और पर्यावरण पर इसके प्रभावों की समस्या को हल करने के लिए प्रतिवादी संख्या एक से 34 को समिति के गठन के लिए उचित कदम उठाने के लिए निर्देश दे।
- अपराधियों से शुल्क वसूल कर हेलमेट देकर, ड्राइविंग लाइसेंस या बीमा के लिए तत्काल आवेदन कर मोटर वाहन अपराधों के ऑनसाइट समाधान से संबंधित नियम बनाने के निर्देश दे।