राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता की बहाली को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती

Update: 2023-09-05 12:03 GMT

कांग्रेस नेता राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता की बहाली के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट मे एक याचिका दायर की गई है।

एक उल्लेखनीय चुनावी भाषण, जिसमें राहुल गांधी ने कहा था कि ''सभी चोरों का उपनाम मोदी क्यों होता है', के मामले में गुजरात की एक अदालत ने उन्हें आपराधिक मानहानि का दोषी ठहराया है। उसी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने चार अगस्त को उनकी सजा को न‌िलंबि‌त करने का आदेश दिया था, जिसके बाद सात अगस्त को लोकसभा सचिवालय ने एक अधिसूचना के जरिए उनकी सदस्यता बहाल कर दी थी।

लखनऊ निवासी एडवोकेट अशोक पांडे ने अब राहुल की संसद सदस्यता की बहाली के खिलाफ याचिका दायर की है, जिसमें कहा गया है कि एक बार संसद या राज्य विधानमंडल का सदस्य लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 8 (3) के साथ संविधान के अनुच्छेद 102, 191 के संचालन से जब अपना पद खो देता है, तो वह तब तक अयोग्य घोषित रहेगा जब तक कि वह किसी हाईकोर्ट द्वारा उसके खिलाफ लगाए गए आरोपों से बरी नहीं हो जाता।

याचिका में तर्क दिया गया है कि एक बार आपराधिक मानहानि मामले में दोषी ठहराए जाने और 2 साल की कैद की सजा पाने के बाद गांधी ने अपनी लोकसभा सदस्यता खो दी थी। लोकसभा अध्यक्ष द्वारा उनकी खोई हुई सदस्यता को वापस बहाल करना उचित नहीं था और इसलिए, याचिका में अनुरोध किया गया है कि लोकसभा अधिसूचना को रद्द कर दिया जाए।

याचिका में कहा गया है,

"अध्यक्ष का आदेश महज एक औपचारिक आदेश था, जिसके माध्यम से श्री राहुल गांधी की लोकसभा की सदस्यता के पद की रिक्ति को अधिसूचित किया गया था। श्री राहुल गांधी को संसद और राज्य विधानमंडल के सदस्य के रूप में चुने जाने या होने तक अयोग्य घोषित किया गया है। उनकी सजा को अपीलीय अदालत ने रद्द नहीं किया है और इसलिए उनकी सदस्यता को बहाल करना और उन्हें संसद सदस्य के रूप में काम करना जारी रखने की अनुमति देना, आर पी एक्ट 1951 की धारा 8 (3) सहपठित संविधान के अनुच्छेद 102 का स्पष्ट उल्लंघन है।"

याचिका में यह भी अनुरोध किया गया है कि चुनाव आयोग को दोषसिद्धि और सजा के मामले में खाली हुई सीटों को अधिसूचित करने के लिए एक परमादेश जारी किया जाए। याचिका में तर्क दिया गया है कि सीआरपीसी की धारा 389 अपीलीय अदालत को दोषसिद्धि और सजा के खिलाफ अपील सुनने की अनुमति देती है ताकि सजा को निलंबित किया जा सके और अपीलकर्ता को जमानत पर रिहा किया जा सके। यह अपीलीय अदालत को दोषसिद्धि को निलंबित करने की अनुमति नहीं देती है।

उल्लेखनीय है कि लोक प्रहरी बनाम भारत निर्वाचन आयोग और अन्य (2018) के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार, एक बार अपीलीय अदालत द्वारा सीआरपीसी की धारा 389 के तहत किसी सांसद या विधायक की सजा पर रोक लगा दी जाती है तो लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8 की उप-धारा 1, 2 और 3 के तहत अयोग्यता लागू नहीं होगी।

लोक प्रहरी मामले में यह विशेष रूप से माना गया था कि एक बार अपील के लंबित रहने के दौरान दोषसिद्धि पर रोक लगा दी गई है, तो दोषसिद्धि के परिणामस्वरूप लागू होने वाली अयोग्यता प्रभावी नहीं रह सकती है।

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