सुप्रीम कोर्ट में नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ ओपन स्कूलिंग (NIOS) में पंजीकृत सभी छात्रों के लिए स्थगित हुई परीक्षाओं और प्रॉजेक्ट रद्द करने के लिए जनहित याचिका दायर की गई है।
एनआईओएस में पंजीकृत एक छात्र के पिता ने यह याचिका दायर की है और इसके माध्यम से अदालत को संस्थान के उस फ़ैसले के बारे में बताया गया है कि COVID-19 महामारी के कारण 30 जून को जारी सूचना के अनुसार माध्यमिक और उच्च्तर माध्यमिक परीक्षा को स्थगित किया गया है, रद्द नहीं।
याचिकाकर्ता ने कहा,
"एनआईओएस का परीक्षा को स्थगित करना और रद्द नहीं करना अच्छा नहीं है और यह कठोर निर्णय है, क्योंकि यह न केवल महामारी की स्थिति में छात्रों की मुश्किलों को नज़रंदाज़ करता है बल्कि समय पर परिणाम नहीं आने के कारण यह छात्रों को उच्च शिक्षा के लिए प्रवेश के अवसरों से भी वंचित करेगा।"
याचिककर्ता ने इस बारे में 26 जून 2020 को सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला भी दिया, जिसमें सीबीएसई की यह सूचना कि कक्षा X और XII की सभी लंबित परीक्षाएं रद्द की जा रही हैं, की पुष्टि की गई थी। याचिकाकर्ता ने कहा कि अदालत इस बात पर सहमत हो गई है कि परिणाम 15.07.2020 को अवश्य ही घोषित किए जाएं और इसमें कोई देरी नहीं हो ताकि छात्र उच्च शिक्षा के लिए प्रवेश प्राप्त कर सकें।
अदालत को याचिका के माध्यम से बताया गया है कि आईसीएसई ने भी X और XII कक्षा की बोर्ड परीक्षा को रद्द करने का निर्णय किया है और अब वह इस बारे में अधिसूचना जारी करने जा रहा है। याचिककर्ता ने इसी तरह की राहत दिए जाने की मांग अदालत से की है।
याचिकाकर्ता ने कहा कि एनआईओएस का फ़ैसला सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद आया है और संस्थान यह जानता है कि उसे परीक्षा रद्द कर देनी चाहिए लेकिन इसके बदले उसने इसे अगले आदेश तक के लिए स्थगित कर दिया है। उसने कहा है कि एचआरडी मंत्रालाय को परीक्षाओं को रद्द कर देना चाहिए था और ऐसा नहीं करना ग़ैरक़ानूनी, मनमाना, दुर्भावनापूर्ण, ग़लत है और इस तरह से एनआईओएस के छात्रों की ज़िंदगी, भलाई और उनके अस्तित्व से खिलवाड़ है।
एनआईओएस में 5-6 लाख छात्र पंजीकृत हैं और इस फ़ैसले से उनकी ज़िंदगी पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। छात्रों की मौलिक अधिकार की चर्चा करते हुए कहा गया है कि छात्रों का एक साल बर्बाद होगा, जबकि इसमें उनकी कोई गलती नहीं है क्योंकि उन्हें अन्य छात्रों की तरह उच्च शिक्षा के लिए प्रवेश नहीं मिल पाएगा।
याचिकाकर्ता ने यह भी दावा किया कि उसने एनआईओएस और केंद्रीय मानव संसाधन वकास मंत्रालय से भी संपर्क किया अभी तक उसे कोई जावाब नहीं मिला है। इसके अलावा उसने देश के मुख्य न्यायाधीश को भी पत्र लिखा है।
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