पेंशन देने का मूल आधार सेवानिवृत्त कर्मचारी को वृद्धावस्था में सम्मानित जीवन जीने का साधन उपलबध कराना है : सुप्रीम कोर्ट
“इस बात को हमेशा ध्यान में रखा जाना चाहिए कि इस तरह के पेंशन देने का मूल आधार सेवानिवृत्त कर्मचारी को वृद्धावस्था में सम्मानित जिन्दगी जीने का साधन उपलबध कराना है तथा इस प्रकार के लाभ से किसी कर्मचारी को अनुचित तरीके से, खासकर बारीकियों के आधार पर वंचित नहीं किया जाना चाहिए।”
सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में कहा कि पेंशन कोई उपहार नहीं जिसका भुगतान मर्जी से किया जाये, बल्कि यह सेवानिवृत्त कर्मचारी के लिए समाज कल्याण का एक उपाय है, ताकि कर्मचारी नौकरी के बाद भी सम्मानित तरीके से जीवन यापन कर सके।
न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय खंडपीठ ने कहा कि पेंशन के प्रावधान को समाज कल्याण के उपाय का एक उदार अभिप्राय माना जाना चाहिए।
इस मामले के अपीलकर्ता वी सुकुमारन ने केरल सरकार के मत्स्य पालन विभाग में सात जुलाई 1976 को 'कैजुअल लेबर रॉल (सीएलआर) वर्कर' (अनियमित कर्मचारी) के तौर पर नौकरी शुरू की थी। उन्होंने वहां 29 नवम्बर 1983 तक यानी सात वर्ष चार माह और 23 दिनों तक सीएलआर कामगार के तौर पर योगदान किया। केरल लोक सेवा आयोग के जिला अधिकारी ने उन्हें कन्नूर जिला स्थित राजस्व विभाग में 'लोअर डिवीजन क्लर्क' (एलडीसी) के रूप में नौकरी करने की सलाह दी और उन्होंने वहां नौकरी शुरू कर दी।
उन्हें 18 सितम्बर 1989 को नौकरी में नियमित कर दिया गया और बाद में उन्हें 'अपर डिवीजन क्लर्क' के रूप में पदोन्नति भी दी गयी थी। सेवानिवृत्ति की उम्र हासिल करने के बाद वह 31 दिसम्बर 2008 को सेवानिवृत्त हो गये। उन्होंने सेवानिवृत्ति के समय मिलने वाले पेंशन संबंधी लाभ के लिए एक रिट याचिका दायर की, जिसमें उन्होंने कहा था कि सात जुलाई 1976 और 29 नवम्बर 1983 के बीच सीएलआर कामगार के तौर पर उनकी आठ साल की क्वालिफाइंग सर्विस को भी पेंशन में शामिल किया जाये। उनकी रिट याचिका हाईकोर्ट ने खारिज कर दी थी।
उनकी अपील पर विचार करते हुए खंडपीठ ने कहा कि पेंशन संबंधी प्रावधानों को समाज कल्याण के उपाय के तौर पर उदार अभिप्राय प्रदान किया जाना चाहिए। खंडपीठ में न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस भी शामिल हैं।
कोर्ट ने कहा :
"इसका अर्थ यह नहीं है कि नियम के विरुद्ध कुछ भी दिया जा सकता है, लेकिन इस बात को ध्यान में रखा जाना चाहिए कि इस तरह के पेंशन देने का मूल आधार सेवानिवृत्त कर्मचारी को बुढ़ापे में सम्मानित जीवन जीने के लिए साधन मुहैया कराना है और इस प्रकार के लाभ से कर्मचारी को अनुचित तरीके से, खासकर बारीकियों के आधार पर वंचित नहीं किया जाना चाहिए।"
इस मामले में फैसले की शुरुआत इस टिप्पणी से की गयी :
"पेंशन सेवानिवृत्ति के बाद की अवधि के लिए एक सहायता है। यह कोई उपहार नहीं है जिसका भुगतान अपनी मर्जी से किया जाये, बल्कि यह सेवानिवृत्ति के बाद कर्मचारी के सम्मानित जीवन के लिए समाज कल्याण का एक तरीका है। अपीलकर्ता पिछले 13 साल से पेंशन का अपना दावा करते रहे हैं, लेकिन वह इसमें असफल रहे, जबकि उन्होंने 32 सालों तक विभिन्न सरकारी विभागों में अपनी सेवाएं दी हैं।"
प्रांसगिक सर्विस रूल्स को ध्यान में रखते हुए बेंच ने व्यवस्था दी कि अपीलकर्ता द्वारा सीएलआर कामगार के तौर पर दी गयी सेवा भी अन्य सीएलआर कामगारों के समान ही पेंशन संबंधी लाभों में शामिल की जायेगी। कोर्ट ने राज्य सरकार को आठ सप्ताह के भीतर बकाये पेंशन का भुगतान करने का निर्देश भी दिया।
केस का ब्योरा
केस का नाम : वी. सुकुमारन बनाम केरल सरकार
केस नं. : सिविल अपील नंबर 389/2020
कोरम : न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी एवं न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस
वकील : सीनियर एडवोकेट के. पी. कैलाशनाथ पिल्लै, एओआर ए. वेनायागम बालान (अपीलकर्ता के लिए), एओरआर निशी राजन शोनकर, एओआर जोगी सारिया (प्रतिवादियों के लिए)