अपील दायर करने में देरी करने वाले सरकारी अधिकारियों को दंडित करें: सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों को निर्देश दिया
सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों को निर्देश दिया कि वे उन सरकारी अधिकारियों पर जिम्मेदारी तय करें, जो सरकार की ओर से अपील/मामले दायर करने में देरी करते हैं और इस तरह सरकारी खजाने को नुकसान पहुंचाते हैं।
कोर्ट ने पाया कि कई मामलों में उच्च अधिकारियों को समय पर निर्णय न बता पाने के कारण अपील दायर करने में देरी होती है। इस प्रकार, देरी के आधार पर अपील कोर्ट द्वारा खारिज की जाती है। हालांकि विषय-वस्तु अत्यधिक मूल्यवान होती है।
ऐसे मामलों से क्षुब्ध होकर जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की खंडपीठ ने राज्यों से मुकदमेबाजी पर अपनी मशीनरी को सुव्यवस्थित करने, अधिकारियों पर जिम्मेदारी तय करने और सरकार को हुए नुकसान के मूल्य के लिए उन्हें दंडित करने को कहा।
खंडपीठ ने ये टिप्पणियां मध्य प्रदेश राज्य द्वारा दूसरी अपील दायर करने में 5 साल (1788 दिन) से अधिक की भारी देरी को माफ करने से हाईकोर्ट के इनकार के खिलाफ दायर एक विशेष अनुमति याचिका खारिज करते हुए कीं।
मामला ऐसी जमीन से जुड़ा है, जिस पर ट्रायल कोर्ट ने सरकार का दावा खारिज करते हुए कहा कि जमीन पर निजी व्यक्ति का मालिकाना हक है। प्रथम अपीलीय अदालत का फैसला 21.08.2014 को सुनाया गया। हालांकि, यह तथ्य सरकारी वकील ने एक साल बाद 25.08.2015 को कलेक्टर को बताया। कलेक्टर को इस फैसले की जानकारी 10.12.2015 को प्रमुख सचिव को देने में तीन महीने का और समय लगा। इसके बाद विधि विभाग ने तीन साल का समय लिया और 26.10.2018 को अपील दायर करने की अनुमति दी, जिसे 31.10.2018 को कलेक्टर को भेजा गया। उक्त राय के आधार पर अपील के कागजात तैयार करने के बाद राज्य ने 18.10.2019 को ही दूसरी अपील दायर की।
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के इस दृष्टिकोण से सहमति जताई कि देरी को पर्याप्त रूप से स्पष्ट नहीं किया गया। इस संबंध में न्यायालय ने यूनियन ऑफ इंडिया बनाम जहांगीर बयरामजी जीजीभॉय मामले में हाल ही में दिए गए फैसले का हवाला दिया, जिसमें कहा गया कि देरी को उदारता के तौर पर माफ नहीं किया जाना चाहिए। देरी के आधार पर अपील खारिज करते हुए भी न्यायालय ने दोषी अधिकारियों पर जिम्मेदारी तय करने के महत्व पर जोर दिया।
"साथ ही हम राज्य तंत्र में कार्यरत अधिकारियों की ओर से उदासीन रवैये के कारण दूसरी अपील को आगे बढ़ाने में हुई देरी को आसानी से नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते। हालांकि, सरकार कानूनी मुद्दों को संभालने और याचिकाओं/आवेदनों/अपीलों को समय के भीतर आगे बढ़ाने में व्यवस्थित दृष्टिकोण अपनाती है, लेकिन समय पर सूचना देने में अधिकारियों की ओर से की गई गलती के कारण सरकारी खजाने को भारी राजस्व हानि होगी। वर्तमान मामला ऐसा ही एक मामला है, जिसमें राज्य के अधीन कार्यरत अधिकारियों की ओर से चूक के कारण दूसरी अपील को आगे बढ़ाने में 1788 दिनों की भारी देरी हुई। हालांकि, इसमें बहुमूल्य सरकारी भूमि शामिल थी। इसलिए हम राज्य को कानूनी मुद्दों को छूने वाली मशीनरी को सुव्यवस्थित करने, कानूनी राय देने, न्यायाधिकरण/न्यायालय के समक्ष मामले दायर करने आदि का निर्देश देते हैं, संबंधित अधिकारी(ओं) पर जिम्मेदारी तय करते हैं। देरी, विचलन, चूक आदि के लिए जिम्मेदार अधिकारी(ओं) को दंडित करते हैं, यदि कोई हो, तो सरकार को हुए नुकसान के मूल्य के अनुसार। इस तरह के निर्देशों का सभी राज्यों को ईमानदारी से पालन करना होगा।"
अदालत ने राज्य की अपील को 1 लाख रुपये के जुर्माने के साथ खारिज की और राज्यों को अनावश्यक अपील दायर करने के खिलाफ कड़ी चेतावनी दी।
अदालत ने कहा,
"हमने यह सख्त संदेश देने के लिए जुर्माना लगाना जरूरी समझा है कि राज्यों को बिना उचित आधार के हाईकोर्ट द्वारा दिए गए सुविचारित और सचेत निर्णयों के खिलाफ अपील दायर करके सुप्रीम कोर्ट के समय का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए।"
केस टाइटल: मध्य प्रदेश राज्य बनाम रामकुमार चौधरी