पेगासस : सुप्रीम कोर्ट ने न्यायिक आयोग का गठन करने वाली पश्चिम बंगाल सरकार की अधिसूचना पर रोक लगाने से किया इनकार, पक्षकारों को नोट‌िस जारी किया

Update: 2021-08-18 07:19 GMT

सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को पेगासस स्पाइवेयर मामले की जांच के लिए पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा जस्टिस मदन बी लोकुर की अध्यक्षता में जांच आयोग गठित करने की अधिसूचना पर रोक लगाने की याचिका को खारिज कर दिया।

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया एनवी रमना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की खंडबेंच ने हालांकि रिट याचिका पर नोटिस जारी किया था और इसमें शामिल सभी पक्षकारों, यू‌नियन ऑफ इंडिया, सूचना और प्रसारण मंत्रालय, इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालया और पश्चिम बंगाल राज्य की प्रतिक्रिया मांगी।

पेगासस मुद्दे की जांच की मांग करने वाली अन्य याचिकाओं के साथ मामले को 25 अगस्त को सूचीबद्ध करने का निर्देश देते हुए बेंच ने याचिकाकर्ता ग्लोबल विलेज फाउंडेशन पब्लिक ट्रस्ट से प्रतिवादियों को एक प्रति देने के लिए कहा है।

जांच आयोग अधिनियम की धारा 2ए का हवाला देते हुए याचिकाकर्ता की ओर से पेश एडवोकेट सौरभ मिश्रा ने कहा कि अधिसूचना को मुख्य रूप से अधिकार क्षेत्र की कमी के आधार पर चुनौती दी जा रही है।

बेंच ने कहा, "आपके हलफनामे में कुछ विसंगति है। आप कहते हैं कि आप जांच चाहते हैं, और फिर आप कहते हैं कि समिति असंवैधानिक है। हलफनामे में, आपको सुसंगत होना चाहिए।"

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि अधिसूचना असंवैधानिक है और कहा कि वह संवैधानिक पहलू पर न्यायालय की सहायता करेंगे। बेंच ने सुझाव दिया कि वर्तमान मामले को पेगासस स्पाइवेयर की जांच की मांग वाली अन्य रिट याचिकाओं के साथ सूचीबद्ध किया जाए।

बेंच ने कहा, "हम अन्य रिट याचिकाओं के साथ इसे रखेंगे, तब तक अगर वे काउंटर फाइल करना चाहते हैं तो वे फाइल कर देंगे।"

एडवोकेट मिश्रा ने हालांकि जोर देकर कहा कि अदालत द्वारा एक अंतरिम आदेश पारित किया जाना चाहिए। उन्होंने जांच समिति की आगे की कार्यवाही पर रोक के रूप में अंतरिम राहत की मांग की। उन्होंने कहा कि आयोग द्वारा सार्वजनिक नोटिस जारी किया गया है और कार्यवाही दिन-प्रतिदिन हो रही है।

हालांकि बेंच ने अंतरिम प्रार्थना को ठुकराते हुए कहा, "यह केवल एक प्रारंभिक अभ्यास है"

मिश्रा ने तर्क दिया कि जब सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रीय स्तर पर जांच पर विचार करने में व्यस्त है तो राज्य समिति को कार्य नहीं करना चाहिए।

पृष्ठभूमि

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस मदन बी लोकुर और कलकत्ता हाईकोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस, जस्टिस ज्योतिर्मय भट्टाचार्य की अध्यक्षता में जांच आयोग का गठन किया था, जो पेगासस स्पाइवेयर मामले से संबंधित आरोपों की जांच करेगा। पश्चिम बंगाल सरकार के अतिरिक्त मुख्य सचिव बीपी गोपालिका ने सोमवार को इस आशय की अधिसूचना जारी की।

आयोग का गठन उन आरोपों के बाद किया गया पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव 2021 के समय मुख्यमंत्री के भतीजे और टीएमसी सांसद अभिषेक बनर्जी की कथित तौर पर पेगासस स्पाइवेयर द्वारा जासूसी की गई थी।

समाचार पोर्टल "द वायर" ने 16 अन्य मीडिया संगठनों के साथ एक 'स्नूप लिस्ट' का खुलासा किया था, जिसमें दिखाया गया था कि एक्टिविस्ट, राजनेता, पत्रकार, जज और कई अन्य व्यक्ति इजरायली फर्म एनएसओ ग्रुप के पेगासस सॉफ्टवेयर के माध्यम से किए गए साइबर-निगरानी के संभावित लक्ष्य थे।

पिछले कुछ दिनों में, द वायर ने कई रिपोर्टें प्रकाशित की हैं जो बताती हैं कि असंतुष्टों और पत्रकारों पर नजर रखने के लिए पेगासस स्पाइवेयर का अवैध रूप से उपयोग किया गया है।

अधिसूचना विवरण

अधिसूचना में कहा गया है कि विभिन्न अधिकारियों, राजनेताओं, पत्रकारों, न्यायपालिका के सदस्यों के साथ-साथ अन्य लोगों के मोबाइल फोन 2017 से अवैध रूप से निगरानी सॉफ्टवेयर का उपयोग करके हैक कर लिए गए थे, जिसके परिणामस्वरूप राज्य और संबंधित व्यक्तियों की गोपनीयता का संभावित उल्लंघन हुआ।

अधिसूचना में कहा गया है, "रिपोर्ट की गई इंटरसेप्शन स्टेट या नॉन-स्टेट एक्टर्स के हाथों में जा सकती है, जो अगर सच पाई जाती है तो राज्य की सार्वजनिक व्यवस्था पूरी तरह से चरमरा सकती है और यह एक गंभीर अपराध है।"

अधिसूचना में पत्रकारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकारों में कथित हस्तक्षेप पर भी चिंता व्यक्त की गई।

जांच आयोग के कार्य इस प्रकार हैं-

1. यह पूछताछ करने के लिए कि क्या कथित इंटरसेप्‍शन की कोई घटना हुई है

2. ऐसे रिपोर्ट किए गए इंटरसेप्‍शन को प्रभावित करने के लिए उपयोग किए जाने वाले स्पाइवेयर की जांच करना

3. उपरोक्त श्रेणी के व्यक्तियों के इंटरसेप्‍शन का कारण बनी घटनाओं की जांच

4. किसी भी व्यक्ति/व्यक्तियों के समूह से उकसावे सहित उन परिस्थितियों की जांच करना, यदि कोई हो, जिसके कारण इंटरसेप्‍शन की सूचना मिली हो

5. ऐसे इंटरसेप्‍शन में अन्य प्राधिकरणों/राज्य/गैर-राज्य एक्टर्स की भूमिका की जांच करना

6. यदि इस तरह की रिपोर्ट की गई इंटरसेप्शन सही पाई जाती है, तो यह जांच करने के लिए कि क्या राज्य/गैर-राज्य एक्टर्स बिना किसी स्पष्ट कानूनी प्रावधान या न्यायिक निरीक्षण के रिपोर्ट किए गए इंटरसेप्शन को अंजाम दे सकते हैं।

आयोग को निर्देश दिया गया है कि वह अधिसूचना की तारीख से छह महीने की अवधि के भीतर निष्कर्षों और सिफारिशों वाली अपनी रिपोर्ट राज्य सरकार को सौंपे। इसके अलावा आयोग को जांच की अपनी प्रक्रिया तैयार करने और जब भी आवश्यक हो संबंधित व्यक्तियों को नोटिस देने के लिए स्वायत्तता दी गई है।

सुप्रीम कोर्ट ने कल पेगासस मुद्दे की जांच की मांग वाली याचिकाओं के एक बैच पर केंद्र को नोटिस जारी किया था।

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