अनुच्छेद 14 और 16 के तहत गलत तरीके से नियमित किए गए व्यक्तियों के संदर्भ में नकारात्मक भेदभाव का दावा नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने नियमित करने के दावे के संबंध में झारखंड हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर विशेष अनुमति याचिका पर विचार करते हुए कहा है कि संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 के तहत गलत तरीके से नियमितीकरण का लाभ पाने वाले व्यक्तियों के लिए नकारात्मक भेदभाव का दावा नहीं किया जा सकता है।
जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस एएस ओका की बेंच ने टिप्पणी की,
"हम पाते हैं कि कुछ कर्मचारी हैं जिनके संदर्भ में शिकायत की गई है, लेकिन उन लोगों के लिए नकारात्मक भेदभाव का दावा नहीं किया जा सकता है जिन्हें संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 के तहत नियमितीकरण का लाभ गलत तरीके से दिया गया है।"
पृष्ठभूमि
राजेंद्र बदाइक (याचिकाकर्ता) जिन्हें 6 अप्रैल 1985 को नाइट वॉचमैन के रूप में नियुक्त किया गया था, तदर्थ आधार पर काम कर रहे थे। सरकार 18 जून, 1993 को एक प्रस्ताव लेकर आई, जिसके अनुसार जिन कर्मचारियों ने 1 अगस्त 1985 को या उससे पहले 240 दिनों का नियमित काम पूरा कर लिया है, उन पर समग्र उपयुक्तता के अधीन नियमितीकरण के लिए विचार किया जाना था।
याचिकाकर्ता की शिकायत है कि उनका नाम उन 31 कर्मचारियों की सूची में शामिल था, जिन पर नियमितीकरण के लिए विचार किया गया था, लेकिन एक नाम के दोहराव के कारण उन्हें उनके द्वारा धारित पद पर नियमित करने से हटा दिया गया।
चूंकि तथ्यात्मक बयान स्पष्ट नहीं किया गया था, याचिकाकर्ता ने उच्च न्यायालय के फैसले का विरोध करते हुए शीर्ष न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।
सुप्रीम कोर्ट का अवलोकन
शीर्ष अदालत ने एसएलपी को खारिज करते हुए रिकॉर्ड के साथ-साथ हलफनामे को भी ध्यान में रखा, जिसमें कहा गया है कि याचिकाकर्ता ने संकल्प के अनुसार 1 अगस्त 1985 से पहले 240 दिनों का नियमित काम पूरा नहीं किया था।
पीठ ने इसका अवलोकन करते हुए कहा कि इस वजह से उनका नाम उन कर्मचारियों की सूची में शामिल नहीं किया गया था, जिन्हें 18 जून, 1993 के परिपत्र/संकल्प के अनुसार समिति द्वारा नियमित किया गया।
पीठ ने याचिकाकर्ता के वकील की दलीलों पर भी विचार किया कि कुछ कर्मचारी ऐसे थे जिन्होंने उनके अनुसार 8 अगस्त 1985 को या उससे पहले 240 दिन पूरे नहीं किए थे, लेकिन फिर भी उन्हें नियमित किया गया।
केस का शीर्षक: राजेंद्र बदैक बनाम झारखंड राज्य एंड अन्य | Special Leave to Appeal (c) No.10207/2018
कोरम: जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस एएस ओक
प्रशस्ति पत्र : एलएल 2021 एससी 760