मोटर व्हीकल एक्ट : दावा की गई राशि से अधिक राशि का मुआवजा दिया जा सकता है : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया है कि इस बात की अनुमति है कि मोटर वाहन दुर्घटना मुआवजे की राशि उस राशि से अधिक हो सकती है ,जितनी राशि के लिए दावा किया गया था।
इस मामले में, दावेदार ने दावा किया था कि वह 9,05,000 रुपये मुआवजा पाने का हकदार है। लेकिन चूंकि वह वित्तीय संकट से जूझ रहा था और उक्त राशि के लिए अदालत की फीस का भुगतान करने में असमर्थ था और इसलिए उसने अपने दावे को सीमित करके तीन लाख रुपये कर दिया। ट्रिब्यूनल ने दावे की अनुमति दी और 1.50 लाख रुपये का मुआवजा दे दिया। हाईकोर्ट ने मुआवजे की राशि को बढ़ाकर 2.50 लाख रुपये कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट में अपील
शीर्ष न्यायालय के समक्ष (जब्बार बनाम महाराष्ट्र एसआरटीसी) दावेदार की तरफ से दलील दी गई कि उसने अपने दावे को 3 लाख रुपये तक सीमित कर दिया था, इस तथ्य के को उसको लगी चोटों के लिए उसे उचित और न्यायसंगत मुआवजा न देने का आधार नहीं बनाया जा सकता है।
इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि दावेदार एक रेहड़ी पर फल बेचने वाला था और उसका दाहिना हाथ काट दिया गया। इस चोट ने उसे स्थायी विकलांगता दी है, जिससे उसका काम काफी प्रभावित हुआ है। न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एम.आर शाह की पीठ ने कहा कि ढ़ाई लाख रुपये के मुआवजे की राशि को उचित व न्यायसंगत नहीं माना जा सकता है।
रामला बनाम नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड (2019) 2 एससीसी 192, में पहले दिए गए फैसले का हवाला देते हुए, पीठ ने कहा कि-
"इस अदालत ने बहुत सारे मामलों में यह निर्धारित किया है कि किसी भी राशि का मुआवजा देने की अनुमति है, भले ही यह राशि उस राशि से अधिक हो जिसके लिए दावा गया था। इस न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करते हुए उचित और न्यायसंगत मुआवजा दिया है।"
पीठ ने यह भी कहा कि, दावा याचिका में उसने स्पष्ट रूप से कहा था कि यदि उसे 3 लाख रुपये से अधिक मुआवजा दिया जा सकता है या वह इसका हकदार है , तो दावेदार अदालत के शुल्क की बाकी राशि जमा कराने के लिए तैयार है। इसका स्पष्ट अर्थ है कि न तो ट्रिब्यूनल और न ही हाईकोर्ट को 3 लाख रुपये से अधिक का मुआवजा देने से रोका गया था। इसी के साथ सुप्रीम कोर्ट ने मुआवजे की राशि को बढ़ाकर पांच लाख रुपये कर दिया।
रामला मामले में कहा गया था कि-
''इस बात पर कोई प्रतिबंध नहीं है कि कोर्ट उस राशि से अधिक मुआवजा नहीं दे सकती है,जितने के लिए दावा किया गया है क्योंकि मोटर वाहन अधिनियम, 1988 की धारा 168 के तहत अधिकरण या न्यायालय का कार्य 'सिर्फ मुआवजा' देने का है। मोटर वाहन अधिनियम लाभकारी और कल्याणकारी कानून है।
'सिर्फ मुआवजा' वह है जो रिकॉर्ड पर पेश साक्ष्यों के आधार पर उचित है। इसे समय की पाबंदी नहीं कहा जा सकता। इसके अलावा, बढ़ी हुई राशि का दावा करने के लिए कार्रवाई के नए कारण की आवश्यकता नहीं है। न्यायालय केवल मुआवजा देने के लिए बाध्य हैं।''
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