बहुविवाह और निकाह हलाला पर AIMPLB पर सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किया हस्तक्षेप आवेदन, कहा ये सुनवाई नहीं हो सकती
Muslim Personal Law Board Moves SC Seeking Impleadment In Petition Challenging Polygamy And Nikah Halala
मुस्लिम समुदाय में बहुविवाह और निकाह हलाला के खिलाफ याचिकाओं का विरोध करते हुए ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ( AIMLB) ने सुप्रीम कोर्ट में एक हस्तक्षेप आवेदन दाखिल किया है।
इस अर्जी में बोर्ड ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट को इस मामले में सुनवाई नहीं करनी चाहिए क्योंकि बहुविवाह, निकाह हलाला, शरिया कोर्ट, निकाह मुतहा और निकाह मिस्यार पर्सनल लॉ पवित्र कुरान और हदीस से लिए गए हैं और ये मौलिक अधिकारों की कसौटी पर परखे नहीं जा सकते।
याचिका में ये भी कहा गया है कि 1997 में अहमदाबाद वुमेन एक्शन ग्रुप बनाम भारत संघ मामले में निकाह हलाला और बहुविवाह जैसी प्रथाओं को चुनौती दी गई थी लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने तब सुनवाई से इंकार करते हुए साफ कर दिया था कि इन मामलों में विधायिका का क्षेत्राधिकार है। न्यायपालिका इनका न्यायिक परीक्षण नहीं सर सकती हैं।
दरअसल सुप्रीम कोर्ट पहले से ही पांच पांच याचिकाओं पर सुनवाई के लिए तैयार हो चुका है- दो पीड़ितों नफीसा बेगम और समीना बेगम द्वारा दायर और दो वकील अश्विनी उपाध्याय और मौलिम मोहिसिन बिन हुसैन काथिरी के साथ- साथ सामाजिक कार्यकर्ता नाइश हसन की याचिका को भी एक साथ टैग किया था जिन्होंने बहुविवाह और निकाह-हलाला की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी है।
याचिकाओं में कहा गया है कि ये मुस्लिम पत्नियों को बेहद असुरक्षित, कमजोर और उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था और
26 मार्च 2018 कोसुप्रीम कोर्ट में तीन न्यायाधीशों की बेंच ने मुस्लिमों के बीच बहुविवाह और निकाह हलाला की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं को सुनने पर सहमति व्यक्त करते हुए मामले को संविधान पीठ में भेज दिया था।
याचिकाओं में कहा गया है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) आवेदन अधिनियम, 1937 की धारा 2 को संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21 और 25 की उल्लंघन करने वाली घोषित की जानी चाहिए क्योंकि यह बहु विवाह और निकाह हलाला को मान्यता देता है।
उन्होंने कहा है कि बहुविवाह और 'निकाह हलाला' भी दो न्यायाधीशों की पीठ (अक्टूबर 2015) के आदेश का हिस्सा थे, जिसने मुसलमानों के बीच तीन तलाक के अभ्यास सहित तीनों मुद्दों को संवैधानिक न्यायालय में भेजा था।
उस पीठ में कहा गया था कि अगर तीन तलाक, बहुविवाह और निकाह हलाला के परिणामस्वरूप मुस्लिम समुदाय में लिंग भेदभाव माना जाए या इन्हें संविधान के तहत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं माना जाना चाहिए।
याचिकाओं में कहा गया है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) आवेदन अधिनियम, 1937 की धारा 2 को संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21 और 25 का उल्लंघन करने वाला घोषित किया जाए, क्योंकि यह बहुविवाह और निकाह हलाला को मान्यता देता है। भारतीय दंड संहिता, 1860 के प्रावधान सभी भारतीय नागरिकों पर बराबरी से लागू हों।याचिका में यह भी कहा गया है कि 'ट्रिपल तलाक आईपीसी की धारा 498A के तहत एक क्रूरता है। निकाह-हलाला आईपीसी की धारा 375 के तहत बलात्कार है और बहुविवाह आईपीसी की धारा 494 के तहत एक अपराध है।
हैदराबाद के रहने वाले मौलिम मोहिसिन बिन हुसैन काथिरी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर मुसलमानों में प्रचलित मुतााह और मिस्यार निकाह को भी अवैध घोषित और रद्द करने की मांग की है।इसके अलावा याचिका में निकाह हलाला और बहुविवाह को भी चुनौती दी गई है।
इससे पहले जमीयत-उलमा-ए-हिंद ने बहुविवाह और निकाह- हलाला प्रथाओं का समर्थन किया था।