सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (2 सितंबर 2022) को एक फैसले में कहा कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 302 के तहत हत्या के अपराध के लिए दोषी ठहराए जाने पर आजीवन कारावास से कम कोई दंड/सजा नहीं हो सकती है।
इस मामले में ट्रायल कोर्ट ने (वर्ष 1995 में) नंदू उर्फ नंदुआ और अन्य आरोपियों को आईपीसी की धारा 147, 148, 323 और 302/34 के तहत दंडनीय अपराध में दोषी ठहराया और आजीवन कारावास की सजा सुनाई। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने (वर्ष 2019 में) आरोपी की दोषसिद्धि की पुष्टि की, लेकिन आंशिक रूप से अपील मंजूर करते हुए नंदू को दी गई सजा कम करके उसके द्वारा पहले से ही काट ली गई सजा से समायोजित कर दिया। सजा कम करने के बारे में हाईकोर्ट ने कहा कि वह नंदू को निजी बचाव के अधिकार का लाभ दे रहा है। हालांकि उसके अधिकार का अतिक्रमण कर लिया गया है।
इस संबंध में, बेंच ने अपने फैसले में निम्नलिखित टिप्पणी की थी:
"आरोपी-नंदू को भी घटना में चोटें आई हैं और यह घटना आरोपी व्यक्तियों की भूमि पर कथित रूप से अतिक्रमण करने वाली बाड़ लगाने पर रोकने के दौरान हुई। अपीलकर्ता संख्या 1-नंदू निजी रक्षा के अधिकार का लाभ प्राप्त कर सकते हैं, क्योंकि उनकी कोई गलती न होने के बावजूद चोट लगी हो। हालांकि उनकी चोटों की प्रकृति को देखते हुए कहा जा सकता है कि उनके निजी बचाव के उक्त अधिकारों का अतिक्रमण हुआ है। अपीलकर्ता के वकील के इस तर्क से कि अपीलकर्ता ने पहले से ही सात साल और 10 महीने से अधिक की सजा काट ली है, उसके निजी बचाव के अधिकार के अतिक्रमण का दावा उचित प्रतीत होता है।"
सुप्रीम कोर्ट की पीठ के समक्ष, सरकार की ओर से पेश उप महाधिवक्ता अंकिता चौधरी ने दलील दी कि जब हाईकोर्ट ने आईपीसी की धारा 302 के तहत दंडनीय अपराध के लिए आरोपी की सजा को बरकरार रखा है, तो जो सजा दी जानी चाहिए, वह सजा होगी फांसी या आजीवन कारावास और जुर्माना भी, लेकिन किसी भी सूरत में, यह आजीवन कारावास से कम नहीं होगी।
सरकार की ओर से दायर अपील पर विचार करते हुए, जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस कृष्णा मुरारी की पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट ने सजा को घटाकर पहले ही उस अवधि के समान कर दिया था, जितनी सजा उसने काट ली थी, यानी सात साल और दस महीने।
कोर्ट ने कहा:
"आईपीसी की धारा 302 के तहत हत्या की सजा मौत या आजीवन कारावास और जुर्माना होगा। इसलिए, आईपीसी की धारा 302 के तहत दंडनीय अपराध के लिए न्यूनतम सजा आजीवन कारावास और जुर्माना होगा। यदि किसी अभियुक्त को आईपीसी की धारा 302 के तहत दंडनीय अपराध के लिए दोषी ठहराया जाता है, तो उसे आजीवन कारावास से कम कोई दंड/ सजा नहीं हो सकती है। आईपीसी की धारा 302 के तहत दंडनीय अपराध के लिए आजीवन कारावास से कम कोई भी सजा आईपीसी के विपरीत होगी। हालांकि, आक्षेपित निर्णय और आदेश द्वारा हाईकोर्ट ने विशेष रूप से आईपीसी की धारा 147, 148, 323 और 302/34 के तहत अपराध के लिए आरोपी की सजा बरकरार रखी है, लेकिन हाईकोर्ट ने सजा कम करके पहले से काट ली गयी सजा के बराबर कर दिया है जो आजीवन कारावास से कम है, जो आईपीसी की धारा 302 की भावनाओं के विपरीत है और (कानून की नजर में) टिकाऊ नहीं है।"
इस प्रकार टिप्पणी करते हुए, बेंच ने ट्रायल कोर्ट द्वारा दी गई आजीवन कारावास की सजा बहाल कर दी।
मामले का विवरण
मध्य प्रदेश सरकार बनाम नंदू @ नंदुआ | 2022 लाइव लॉ (एससी) 732 | क्रिमिनल अपील 1356/2022 | 2 सितंबर 2022 | जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस कृष्णा मुरारी
भारतीय दंड संहिता, 1860; धारा 302 - यदि किसी अभियुक्त को आईपीसी की धारा 302 आईपीसी के तहत दंडनीय अपराध के लिए दोषी ठहराया जाता है, तो आजीवन कारावास से कम कोई दंड/ सजा नहीं हो सकती है। (पैरा 5)
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