जब भी वादकारियों के खिलाफ आदेश पारित होते हैं, तो वे न्यायिक अधिकारियों के विरुद्ध आरोप लगाते हैं: सुप्रीम कोर्ट ने 'हतोत्साहित करने वाले' रवैये की निंदा की
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक स्थानांतरण याचिका खारिज करते हुए कहा कि आजकल, न्यायिक अधिकारियों के खिलाफ आरोप लगाने का चलन हो गया है, खासकर तब, जब किसी वादकारी के खिलाफ ऐसा आदेश पारित किया जाता है, जो उसके पक्ष में नहीं होता है।
नागरिक प्रक्रिया संहिता (सीपीसी) की धारा 25 के तहत दायर स्थानांतरण याचिका में एक आधार यह भी था कि याचिकाकर्ताओं का मानना है कि उन्हें निष्पक्ष सुनवाई नहीं मिल रही है क्योंकि प्रतिवादी स्थानीय बड़े लोग होने के कारण स्थानीय अदालत को प्रभावित करने में सक्षम हैं।
जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस कृष्ण मुरारी की पीठ ने शुरू में कहा कि वह इस तरह के रवैये और उस आधार की निंदा करती है जिस पर कार्यवाही को स्थानांतरित करने की मांग की जाती है।
कोर्ट ने देखा:
"सिर्फ इसलिए कि कुछ आदेश न्यायिक पक्ष (मौजूदा मामले में निष्पादन कार्यवाही में) में पारित किए गए हैं, जो याचिकाकर्ताओं के खिलाफ हो सकते हैं, यह नहीं कहा जा सकता है कि आदेश पारित करने वाला कोर्ट प्रभावित था। यदि याचिकाकर्ता किसी न्यायिक आदेश से व्यथित है, तो उचित उपाय यह होगा कि उसे उच्च फोरम पर चुनौती दी जाए। लेकिन केवल इसलिए कि उनके प्रतिकूल कुछ आदेश कोर्ट द्वारा पारित किए जाते हैं, यह नहीं कहा जा सकता है कि न्यायिक पक्ष के आदेश प्रभाव में पारित किए गए हैं। आजकल यदि एक पक्ष के खिलाफ आदेश पारित किया जाता है और संबंधित पक्ष को वह आदेश पसंद नहीं आता है तो वह न्यायिक अधिकारियों के खिलाफ इस तरह के आरोप लगाने का चलन हो गया है । हम इस तरह के रवैये की निंदा करते हैं। यदि इस तरह का रवैया जारी रहता है, तो यह अंततः न्यायिक अधिकारी का मनोबल गिराएगा। वास्तव में , इस तरह के आरोप को न्याय प्रशासन में बाधा डालने वाला कहा जा सकता है।"
याचिकाकर्ताओं ने यह भी तर्क दिया कि जब एक्ज़क्यूटिंग कोर्ट द्वारा जारी वारंट को निष्पादित करने की मांग की गई थी, एक झूठी आपराधिक प्राथमिकी दर्ज की गई थी और इसलिए, याचिकाकर्ताओं की जान को खतरे की आशंका है। इस संबंध में, कोर्ट ने कहा कि अगर याचिकाकर्ता प्राथमिकी से व्यथित हैं, तो इसका समाधान यह होता कि इसे रद्द करने के लिए संपर्क किया जाता। पीठ ने कहा कि उक्त चीजें कार्यवाही को स्थानांतरित करने का आधार नहीं हो सकती हैं।
मामले का विवरण
अनुपम घोष बनाम फैज़ मोहम्मद | 2022 लाइव लॉ (एससी) 751 | ट्रांसफर पिटीशन (सिविल) 2331-2334/2021| 2 सितंबर 2022 | जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस कृष्णा मुरारी
हेडनोट्स
प्रैक्टिस एंड प्रोसिजर - आजकल, जब भी किसी वादकारी के विरुद्ध आदेश पारित किया जाता है और संबंधित पक्ष को आदेश पसंद नहीं आता, तो न्यायिक अधिकारियों के खिलाफ आरोप लगाने की प्रवृत्ति होती है। हम ऐसी प्रथा की निंदा करते हैं। यदि इस तरह का रवैया जारी रहता है, तो यह अंततः न्यायिक अधिकारी का मनोबल गिराएगा। वास्तव में, इस तरह के आरोप को न्याय प्रशासन में बाधा डालने वाला कहा जा सकता है।
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