अपील दर्ज करने की सीमा की गणना उस आदेश की प्रमाणित प्रति में दर्ज तस्दीक के आधार पर होनी चाहिए : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने हाल के अपने एक फैसले में विशेष अनुमति याचिका को खारिज करते हुए कहा कि अदालत अपील की सीमा की गणना प्रमाणित प्रति में दर्ज तस्दीक के आधार पर होनी चाहिए।
इस मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक जिला अदालत के फैसले को सही ठहराया था, जिसने एक आवेदन को इस आधार पर खारिज कर दिया था कि इसमें एक अपील को इस आधार पर खारिज करने की मांग की गई थी कि वह परिसीमन से प्रतिबंधित है।
परिसीमन की अवधि की गणना अपील के तहत आदेश की प्रमाणित प्रति में जो तस्दीक थी, उसके आधार पर की गई थी। यह कहा गया कि अपील सीमा के अधीन है, क्योंकि परिसीमन की गणना में प्रमाणित प्रति प्राप्त करने में जो समय खर्च होता है उसको इसमें से निकालना होता है।
याचिकाकर्ता की दलील यह थी कि प्रमाणित प्रति उस समय तैयार हुई, जब प्रमाणित प्रति के पीछे तिथि दर्शायी गई इस अपील को खारिज करते हुए न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी और एमआर शाह की पीठ ने कहा,
"यह कि प्रमाणित प्रति को हकीकत में प्रमाणित प्रति के पीछे के पृष्ठ पर तिथि के दर्शाने के पहले ही तैयार कर लिया गया। वे कौन सी परिस्थितियां थीं, जिनकी वजह से मामले के एक पक्ष को प्रमाणित प्रति पहले उपलब्ध कराई गई, जबकि दूसरे पक्ष को बाद में दी गई, जबकि इसके लिए आवेदन एक ही दिन दिए गए थे। ये ऐसे मामले नहीं हैं, जिन पर इन प्रक्रियाओं के दौरान निर्णय नहीं लिए जा सकते. हाईकोर्ट भी इस पर रिट याचिका में निर्णय नहीं कर सकता।"
अदालत ने आगे कहा,
"अदालत अपील की सीमा की गणना प्रमाणित प्रति में दर्ज किये गए तसदीक के आधार पर करने के लिए बाध्य हैं। अगर इसमें किसी भी तरह के अन्यायपूर्ण/या अनुचित होने का अंदेशा हो, तो इसका उपचार इस बात में है कि इस संबंध में एक घरेलू जांच शुरू की जाए या अदालत के संबंधित स्टाफ के खिलाफ आपराधिक जांच कराई जा सकती है जो प्रमाणित प्रति उपलब्ध कराने के लिए जिम्मेदार हैं।"
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