जम्मू-कश्मीर लॉक डाउन के खिलाफ कश्मीरी छात्र की याचिका: कर्नाटक हाईकोर्ट ने केंद्र को SC में लंबित सभी याचिकाओं का ब्योरा देने को कहा

Update: 2019-09-11 18:35 GMT

कर्नाटक उच्च न्यायालय ने 9 सितंबर को, केंद्र सरकार को, अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद से, जम्मू-कश्मीर में कथित संचार ब्लैकआउट के संबंध में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष सुनवाई के लिए लंबित याचिकाओं का विवरण देने के लिए 13 सितंबर तक का समय दिया।

न्यायमूर्ति आलोक अराधे, जो 23 वर्षीय सैयद पीरज़ादा सुहैल अहमद, जो पुलवामा के निवासी हैं और अब बेंगलुरु में अध्ययन कर रहे हैं, द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रहे हैं, ने कहा कि "सहायक सॉलिसिटर जनरल इसको लेकर प्रार्थना करते हैं और उन्हें 3 दिन का समय दिया जाता है, ताकि वे उन याचिकाओं के विवरण का पता लगा सकें, जो याचिकाएँ, कश्मीर घाटी में कथित रूप से संचार ब्लैकआउट के संबंध में उच्चतम न्यायालय के समक्ष लंबित हैं, ताकि यह अदालत यह तय कर सके कि क्या वह इस याचिका की सुनवाई के साथ आगे बढ़ सकती है।"

याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील, विश्वजीत सदानंद ने यह दलील दी कि संचार ब्लैक आउट के मुद्दे पर अनुराधा भसीन द्वारा दायर याचिका के अलावा कोई अन्य याचिका उच्चतम न्यायालय के समक्ष लंबित नहीं है। भसीन की याचिका पत्रकार और मीडिया की स्वतंत्रता को लेकर है और इसलिए कोई यह तर्क दे सकता है कि याचिका का दायरा अलग है, खासकर तब, जब केंद्र का मुख्य विवाद यह है कि अन्य पत्र-पत्रिकाएं कार्यशील हैं, और इसलिए सुप्रीम कोर्ट में मामले/दलीलों का दायरा केवल उन पत्रकारों तक सीमित है, जिनपर रोक लगायी जा रही है, और बड़ी आबादी से इसका कोई मतलब नहीं है।

इस पर सहायक सॉलिसिटर जनरल ने तर्क दिया कि सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष 12 याचिकाएँ लंबित हैं और इसलिए, चूंकि याचिकाएँ सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष अधीन हैं, यह अदालत इस याचिका पर विचार नहीं कर सकती है।

याचिकाकर्ता के अनुसार, वह पुलवामा में रहता है और बीते 5 अगस्त से कश्मीर के सभी जिलों में एक अभूतपूर्व और पूर्ण संचार ब्लैकआउट फैला हुआ/स्थापित है। केंद्र सरकार द्वारा इस अपारदर्शी, अनुचित निर्णय के परिणामस्वरूप याचिकाकर्ता को अपने परिवार और प्रियजनों से अवैध और मनमाने तरीके से अलग किया गया है। इस संचार ब्लैकआउट का कानूनी आधार सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध नहीं है।

दलील में कहा गया है कि कश्मीर में संचार नाकेबंदी के फलस्वरूप, याचिकाकर्ता अपने परिवार की भलाई के बारे में जानकारी हासिल करने से वंचित है और इसलिए यह उसके अधिकारों का हनन है। सूचना प्राप्त करने का अधिकार अनुच्छेद 19 (1) (क) का अभिन्न अंग है। कश्मीर में संचार नाकाबंदी, भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 (2) के तहत एक उचित प्रतिबंध के रूप में योग्य नहीं है।

यह याचिका यह प्रार्थना करती है कि, अंतरिम राहत के रूप में अधिकारियों को, प्राधिकरण द्वारा जारी सभी प्रासंगिक आदेश, नोटिस, या परिपत्र, जिसके तहत कश्मीर में निलंबन या संचार को बंद करने का आदेश दिया गया था, जारी करने के लिए निर्देशित किया जाये। 

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