राष्ट्रपति के दया करने के बाद नाबालिग होने का दावा, उत्तराखंड हाईकोर्ट ने तिहरे हत्याकांड के दोषी की याचिका खारिज की, पढ़ें फैसला

Update: 2019-08-25 09:00 GMT

उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने तिहरे हत्याकांड के दोषी की 'नाबालिग' करार देने की याचिका खारिज कर दी है। इस मामले में दोषी को सुप्रीम कोर्ट द्वारा मौत की सजा दी गई थी लेकिन बाद में भारत के राष्ट्रपति द्वारा सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया गया था।

SC ने 2006 में सुनाया मृत्युदंड; राष्ट्रपति ने 2012 में सजा को आजीवन कारावास में बदला

दरअसल ओमप्रकाश, नजरूल, राजू दास, राजू चौधरी, सैफुल इस्लाम को तिहरे हत्याकांड का दोषी पाए जाने के बाद मौत की सजा सुनाई गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने 6 फरवरी 2006 को उनकी क्यूरेटिव पिटीशन को खारिज करते हुए मृत्युदंड की पुष्टि की। हालांकि बाद में मई 2012 में भारत के राष्ट्रपति ने मौत की सजा को 60 वर्ष की आयु तक के आजीवन कारावास में बदल दिया।

इन सब के बाद ओमप्रकाश ने उत्तराखंड उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया और यह प्रस्तुत किया कि वह उस तारीख को किशोर था जब उसके द्वारा 15.11.1994 को अपराध किया गया था। उसने भारत के राष्ट्रपति के दिनांक 08.05.2012 के निर्णय को रद्द करने और उसे जेल से रिहा करने का निर्देश देने की भी मांग की।

"मामले पर पुनर्विचार के समान कार्यवाही संभव नहीं"

न्यायमूर्ति शरद कुमार शर्मा ने ओम प्रकाश के लिए पेश हुए वकील द्वारा बताई गई सामग्री पर विस्तार से विचार करने के बाद कहा कि नए कानून के प्रवर्तन के बहाने मामले पर पुनर्विचार करने के समान कार्यवाही नहीं की जा सकती। इस प्रकार इसे भारत के राष्ट्रपति द्वारा निर्णय देने के बाद लागू नहीं किया जा सकता।

अदालत ने की 'नाबालिग निर्धारण के चरण' की व्याख्या

किशोर न्याय अधिनियम की धारा 9 (2) में 'कार्यवाही के किसी भी स्तर पर' की व्याख्या करते हुए, अदालत ने यह कहा कि नाबालिग निर्धारण के चरण का मतलब केवल वह चरण होगा, जहां नाबालिग के निर्धारण के लिए कार्यवाही मामले की मेरिट पर होती हैं। अधिनियम के तहत परिभाषित अदालत के समक्ष अपराध के घटने पर सजा के निर्धारण के लिए लंबित विचार है और इसका मतलब यह होगा कि यह सर्वोच्च न्यायालय द्वारा किए गए अंतिम निर्धारण से पहले का एक चरण होना चाहिए।

याचिका खारिज करते हुए अदालत ने कहा :

न्यायालय का विचार यह है कि माननीय शीर्ष न्यायालय के एक आदेश द्वारा 06.02.2006 को क्यूरेटिव याचिका के माध्यम से इस मामले में कार्यवाही की समाप्ति मृत्युदंड की सजा के पुष्टिकरण के साथ ही हो गई थी। इसके बाद संविधान के अनुच्छेद 72 के तहत भारत के राष्ट्रपति द्वारा दया/क्षमा की अभिव्यक्ति के बाद याचिकाकर्ता को भारत के संविधान के अनुच्छेद 72 (1) (सी) के तहत पहले ही सारे अधिकार प्रयोग करने तक बढ़ा दिया।

न्यायालय का विचार यह है कि किशोरत्व के निर्धारण का चरण और वह भी 2015 के अधिनियम के तहत, जिसे सजा के आदेश के बहुत बाद में लागू किया गया है, इस मामले में आकर्षित नहीं किया जाएगा। 



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