'इसे कार्यकारी को लागू करना है": सुप्रीम कोर्ट ने गो हत्या, हाथियों के शिकार, फसल की सुरक्षा के लिए जंगली जानवरों की हत्या/ धार्मिक प्रथाओं के लिए पशु बलि के खिलाफ दायर याचिका को बंद किया
यह देखते हुए कि यह प्रवर्तन का एक पहलू है और यह कार्यपालिका पर है कि वह उचित कार्रवाई करे, सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को गायों के वध, हाथियों के अवैध शिकार, फसल की सुरक्षा के लिए जंगली जानवरों की हत्या और धार्मिक प्रथाओं में पशु बलि पर चिंता जाहिर करते हुए याचिका का निस्तारण किया।
जस्टिस एसके कौल और जस्टिस दिनेश माहेश्वरी की पीठ ने कहा, "हमने याचिकाकर्ता को व्यक्तिगत रूप से सुना और रिट याचिका की दलीलों का अध्ययन किया है। प्रार्थना बहुत व्यापक और विविध है। कोई निर्देश जारी करना मुश्किल होगा।"
तीन पहलुओं की जांच करने के बाद: (ए) पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 और वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 का प्रवर्तन, (बी) वन्य जीवन संरक्षण अधिनियम, 1972 और भारतीय वन अधिनियम, 1927 और (सी) जानवरों के प्रति क्रूरता की रोकथाम अधिनियम, 1960 , पीठ ने कहा, "यह प्रवर्तन का एक पहलू है और यह कार्यपालिका पर है कि वह यह देखने के लिए कि विधायिका की मंशा को उसके वास्तविक इरादे और भावाना में लागू किया गया है, उचित कार्रवाई करे।"
दूसरा मुद्दा, पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 के प्रावधानों के उल्लंघन से पैदा हुए परिणामों की प्रकृति का था, बेंच ने कहा, "याचिकाकर्ता का यह कहना है कि दंड बहुत संकीर्ण दायरे के भीतर हैं और जुर्माना या कारावास, दोनों ही संदर्भ में बहुत पुराना है।"
पीठ ने कहा , "यह फिर से एक मुद्दा है, जिस पर विधायिका को विचार करना होगा और हम केंद्र सरकार से इस मुद्दे की जांच करने का अनुरोध करते हैं कि क्या इस संबंध में कोई संशोधन करने की आवश्यकता है।"
अधिवक्ता-याचिकाकर्ता मैथ्यूज जे नेदुम्परा ने कहा है, "लाखों जानवरों, दूध देने वाली और गर्भवती गायों, बछड़ों, भैंसों, बकरियों, मुर्गे को भारत के संविधान के अनुच्छेद 48, 48 ए और 51 ए (जी) के जनादेश के स्पष्ट उल्लंघन में, सबसे अमानवीय तरीके से वध किया जाता है, जैसा कि संसद, विभिन्न राज्य विधानसभाओं, केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा बनाए गए विभिन्न अधिनियमों, विनियमों और नियमों के तहत भी दूध देने वाली गायों और बछड़ों के वध पर प्रतिबंध लगाया गया है, साथ-साथ जानवरों के वध को विनियमित किया गया है।",
उन्होंने प्रस्तुत किया कि लाखों जंगली जानवर, जंगली सूअर, हाथी, हिरण, बाइसन कको उनके मांस के लिए और फसलों को नुकसान से बचाने के लिए भी मारा जा रहा है। शिकारियों को कोई सजा नहीं होती है, वहीं गरीब किसान और आदिवासी जिनकी फसल बर्बाद हो जाती है, उनके पास कोई उपाय नहीं रह जाता है।"
नेदुम्परा ने आगे बताया कि लाखों जानवरों को धार्मिक प्रथाओं में मार दिया जाता है, जिससे उन्हें अत्यधिक आघात और दर्द होता है जिससे याचिकाकर्ता जैसे पशु प्रेमियों को बड़ी मात्रा में आघात होता है।
याचिका में उन्होंने प्रस्तुत किया, "सरकार इन मुद्दों को प्रभावी ढंग से संबोधित करने में विफल रही है। कानून को लागू करने में एक स्पष्ट विफलता रही है क्योंकि यह आज मौजूद है......क्रूरता को कम करने के लिए कानूनी और प्रशासनिक उपायों की आवश्यकता हे।"