पूर्व मुख्य न्यायाधीश गोगोई को राज्यसभा सदस्य के रूप में मनोनीत करने का बीसीआई ने किया समर्थन
पूर्व मुख्य न्यायाधीश, न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) रंजन गोगोई को राज्यसभा सदस्य के रूप में मनोनीत करने के राष्ट्रपति के फैसले के समर्थन में बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की है।
प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, संसद में न्यायमूर्ति गोगोई की उपस्थिति विधायिका और न्यायपालिका के बीच की खाई को ''पाटने'' के लिए एक ''आदर्श अवसर'' होगा।
विज्ञप्ति में कहा गया कि
''हम भारत के माननीय राष्ट्रपति द्वारा श्री रंजन गोगोई, भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश को संसद के सदस्य(राज्य सभा) के रूप में नामित करने की अद्भुत पहल की सराहना करते हैं।
हम इसे विधायिका और न्यायपालिका के बीच एक सेतु के रूप में देखते हैं। वास्तव में, कानून के निर्माताओं के समक्ष न्यायपालिका के शुरूआती विचारों को रखने या प्रस्तुत करने का एक आदर्श अवसर होगा।
हमें सच में ऐसा लगता है कि यह एक ऐतिहासिक और युगारंभ का निर्णय साबित होगा, जो राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में एक लंबा रास्ता तय करेगा। हम भारत के माननीय राष्ट्रपति के साथ-साथ केंद्र सरकार को भी इस तरह की दृष्टि या विचार रखने के लिए धन्यवाद देते हैं।''
भारत के राष्ट्रपति ने सोमवार को पूर्व सीजेआई को राज्यसभा के लिए नामित किया था। न्यायमूर्ति गोगोई को नामित सदस्य में से एक वरिष्ठ अधिवक्ता के.टी.एस. तुलसी के सेवानिवृत्त होने के कारण रिक्त पद को भरने के लिए नामित किया गया है।
न्यायमूर्ति गोगोई की सभी तरफ से इसके लिए आलोचना की गई है और कहा जा रहा है कि कैसे नामांकन के लिए उनकी स्वीकृति, संविधान में निहित शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत को तोड़ देगी।
इसी की निंदा करते हुए परिषद ने कहा है कि-
''हमने भारत के माननीय सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीशों और कुछ वकीलों सहित कुछ समूहों की तरफ से आई टिप्पणियों और आलोचनाओं को देखा है, जो हमें लगता है कि अनुचित और समय से पहले की गई टिप्पणी हैं, इसलिए, इस तरह की हाय-तौबा और लापरवाह टिप्पणियां न्यायपालिका की छवि को बदनाम करने का प्रयास है।''
परिषद ने यह भी कहा कि-
''कोई कानून या संवैधानिक प्रावधान नहीं है, जो इस तरह के नामांकन पर रोक लगाता हो। बल्कि, भारत के संविधान के अनुच्छेद -80 (1) (ए) के तहत नामांकन की अवधारणा केवल ऐसे लोगों के लिए ही है।''
स्थायी रूप से, यह पहली बार नहीं है कि जब एक पूर्व मुख्य न्यायाधीश राज्यसभा का सदस्य बन रहा है। पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रंगनाथ मिश्रा 1998 में कांग्रेस के टिकट पर उच्च सदन के लिए चुने गए थे। हालांकि, यह निश्चित रूप से पहली बार है कि सदन में पूर्व सीजेआई नामांकन के जरिए राज्यसभा सदस्य बनेंगे।
इस पर टिप्पणी करते हुए परिषद ने कहा,
''पूर्व में भी भारत के मुख्य न्यायाधीश और सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों को उनकी सेवानिवृत्ति के बाद राज्यसभा के सदस्य के रूप में चुना गया था। लेकिन, उनके चुनाव और '' न्यायमूर्ति रंजन गोगोई के नामांकन'' के बीच एक अंतर है। इससे पहले भी, जज अपनी सेवानिवृत्ति के बाद राजनीतिक बन गए थे और राज्यसभा की सदस्यता के लिए पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा था।
हालांकि, यहां जस्टिस गोगोई किसी भी राजनीतिक दल में शामिल नहीं हुए हैं, वह भारत के राष्ट्रपति की पसंद हैं और हम इस नामांकन की सराहना करते हैं, जो कि हमारी राय में हर दृष्टिकोण से सबसे उपयुक्त है।
यह सबसे दुर्भाग्यपूर्ण है कि संसद में भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश श्री रंजन गोगोई द्वारा निभाई जाने वाली भूमिका को देखे बिना ही इस तरह की टिप्पणी की जा रही है।
पूर्व न्यायाधीशों और वकीलों को आलोचना करने से बचना चाहिए, लेकिन हमें यह प्रतीत होता है कि कुछ पूर्व न्यायाधीश और मुट्ठी भर वकीलों को सरकार के लगभग हर कदम की आलोचना करने की आदत है। कई बार तो यह सब शीर्ष अदालत के फैसलों की भी आलोचना करने और टिप्पणी करने की हद तक चले गए हैं।''
इसके प्रकार परिषद ने सभी हितग्राही से अनुरोध किया है कि वे किसी भी प्रतिकूल टिप्पणी से परहेज करें या बचें और इस कदम के परिणाम की प्रतीक्षा करें।
''आइए प्रतीक्षा करें और देखें। जस्टिस रंजन गोगोई के कामकाज को एक सांसद के रूप में देखें। उन्होंने राष्ट्र की पूर्ण संतुष्टि के लिए भारत के मुख्य न्यायाधीश के रूप में काम किया है।''
प्रेस रिलीज