''प्रजनन अधिकारों का उल्लंघन'': आईवीएफ विशेषज्ञ ने सरोगेसी (रेगुलेशन) एक्ट और एआरटी एक्ट के प्रावधानों को चुनौती देते सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की
सुप्रीम कोर्ट में चेन्नई के एक प्रमुख आईवीएफ विशेषज्ञ अरुण मुथुवेल की ओर से असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी (रेगुलेशन) एक्ट, 2021, एआरटी (रेगुलेशन) रूल्स, 2022, सरोगेसी (रेगुलेशन) एक्ट, 2021 और सरोगेसी (रेगुलेशन) रूल्स, 2022 के विभिन्न प्रावधानों को चुनौती देने वाली एक याचिका दायर की गई है।
याचिका के माध्यम से निम्नलिखित प्रावधानों को चुनौती दी गई हैः
ए) असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी (रेगुलेशन) एक्ट, 2021 की धारा 2(1)(ई), 14(2), 21, 22(4) और 27(3)
बी)एआरटी (रेगुलेशन) रूल्स, 2022 के नियम 3, 7 और 12
सी) सरोगेसी (रेगुलेशन) एक्ट, 2021 की धारा 2(1)(एच), 2(1)(एस), 2(1)(आर), 2(1)(जेडडी),2(1)(जेडजी), 4(ii)(ए) , 4(ii)(बी) और 4(iii), 4(ii)(सी), 8 और धारा 38(1)(ए)
डी) सरोगेसी (रेगुलेशन) रूल्स, 2022 के नियम 3(1), 5(2), 6, 7 और 10
याचिका के अनुसार, एआरटी एक्ट व सरोगेसी एक्ट,दोनों ही सरोगेसी और अन्य सहायक प्रजनन तकनीकों को विनियमित करने के आवश्यक लक्ष्य को पूरी तरह से संबोधित करने में विफल हैं और एक ''प्रतिबंधात्मक शासन लागू करते हैं जो व्यक्तियों के सबसे बुनियादी प्रजनन अधिकार पर गंभीर रूप से अतिक्रमण करता है।''
याचिका में कहा गया है कि भले ही दो क़ानूनों का उद्देश्य एक ही विषय को पूरा करना है, लेकिन उनमें स्पष्ट विसंगतियां हैं जो मनमाना श्रेणीविभाजन और वर्गीकरण पैदा करती हैं।
उदाहरण के लिए, एआरटी एक्ट के तहत ''महिला'' को इक्कीस वर्ष से अधिक उम्र की किसी भी महिला के रूप में परिभाषित किया गया है, हालांकि, सरोगेसी एक्ट महिलाओं को दो श्रेणियों में वर्गीकृत करता है,पहली, धारा 4(iii)(सी)(I) के तहत, इच्छुक दंपत्ति में 23 से 50 वर्ष की आयु के बीच की महिला होने के नाते; और दूसरी, धारा 2(1)(एस) के तहत परिभाषित एक ''इच्छुक महिला'' के रूप में एक भारतीय महिला, जो विधवा या तलाकशुदा हो और 35 से 45 वर्ष की आयु की हो। एक कपल की परिभाषा और प्रदान किए गए बीमा कवरेज के बीच भी इसी तरह के अंतर मौजूद हैं। याचिका में कहा गया है कि ये विसंगतियां 'संरचनात्मक बाधाओं' का कारण बनती हैं।
याचिका में आगे कहा गया है कि-
''अपने भेदभावपूर्ण, अपवर्जनात्मक और मनमानी प्रकृति के माध्यम से आक्षेपित अधिनियम, प्रजनन न्याय पर बातचीत में एजेंसी और स्वायत्तता से इनकार करते हैं और आदर्श परिवार की एक राज्य-स्वीकृत धारणा प्रदान करते हैं जो प्रजनन अधिकारों को प्रतिबंधित करती है।''
इसमें कहा गया है कि अधिनियम एलजीबीटीक्यू समुदाय के सदस्यों, एकल महिलाओं, जो न तो विधवा हैं और न ही तलाकशुदा हैं, एकल पुरुष, माध्यमिक बांझपन से पीड़ित कपल आदि को सेवाओं का लाभ उठाने से वंचित कर रहे हैं और इसलिए भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करते हैं।
याचिका द्वारा उजागर किया गया एक और मुद्दा यह है कि अधिनियम भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत निजता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करते हैं क्योंकि उनमें सरोगेसी के उद्देश्य के लिए आनुवंशिक रूप से संबंधित सरोगेट मां की पूर्व शर्त शामिल है, इसके अलावा, सरोगेसी एक्ट के तहत धारा 4(iii)(ए)(I) के तहत जिला मेडिकल बोर्ड से मांगे गए प्रमाण पत्र, धारा 4(iii)(ए)(II) के तहत मजिस्ट्रेट की अदालत से मांगे गए आदेश के रूप में कपल के बांझपन के बारे में जानकारी के विभिन्न प्रकार के सार्वजनिक प्रसार की आवश्यकता है। याचिका के अनुसार, एआरटी एक्ट भी धारा 22 के तहत अंडाणु दाता/डोनर के लिए बीमा कवरेज का प्रावधान करता है, जिससे डोनर की पहचान का खुलासा होगा।
अधिनियम द्वारा कमर्शियल सरोगेसी पर लगाए गए प्रतिबंध को ''अनावश्यक और अवांछनीय'' बताते हुए, याचिका में कहा गया है कि-
''कमर्शियल सरोगेसी पर प्रतिबंध, गरीब महिलाओं की रक्षा के लिए प्रतीत होता है, जो उनके शरीर पर उनके अधिकार से वंचित करता है और उन्हें जन्म देने के अधिकार पर एजेंसी का प्रयोग करने के अवसर से वंचित करता है।''
याचिका इस बात को रेखांकित करती है कि एआरटी एक्ट की धारा 27 (2) के अनुसार, एक अंडक दाता अपने जीवनकाल में केवल एक बार डोनेट कर सकता है। याचिका के अनुसार, इसका मतलब है कि अंडाणु दाताओं की संख्या पूरी तरह से प्रतिबंधित होगी और अंडक(oocyte) को प्राप्त करने की लागत बहुत अधिक होगी। इस प्रकार, याचिका में कहा गया है कि डोनर के संबंध में एआरटी एक्ट में प्रदान किए गए प्रतिबंध इसके कार्यान्वयन और व्यवहार्यता पर कई सवाल खड़े करते हैं।
याचिका में कहा गया है कि केवल सरोगेट माताओं पर ही नहीं बल्कि मेडिकल प्रैक्टिशनर पर भी 'कठिन शर्त'' लगाई गई हैं। बताया गया है कि एआरटी क्लिनिक के पंजीकरण के लिए शुल्क अत्यधिक है और नियम 4 अनुसूची 1 के प्रावधान कम से कम एक एम्ब्रियोलॉजिस्ट, एनेस्थेटिस्ट और काउंसलर नियुक्त करने का निर्देश देते हैं। याचिका के अनुसार, ये विशेषज्ञ इतनी संख्या में उपलब्ध नहीं हैं कि उन्हें सभी एआरटी द्वारा उनके आकार के बावजूद वेतन के आधार पर नियुक्त किया जा सकता है। इसके अलावा, लगभग सभी छोटे शहरों में जहां ऐसे केंद्र संचालित हैं, ऐसे विशेषज्ञों की अनुपलब्धता के कारण उनके बंद होने की संभावना है।
याचिका में संरचनात्मक और कार्यान्वयन संबंधी कठिनाइयों का भी उल्लेख किया गया है और कहा गया है कि इन एक्ट के अधिनियमन से पहले शुरू की गई कई सहायक प्रजनन प्रक्रियाएं अब अधिनियमों के अनुसार अवैध हैं और इसने डॉक्टरों को इस दुविधा में डाल दिया है कि क्या चल रहे उपचारों को जारी रखा जाए या नहीं।
याचिका मेंनिम्नलिखित के लिए अदालत से प्रार्थना की गई है :
ए) पैंतीस वर्ष से अधिक आयु की विवाहित महिलाओं के अलावा अन्य महिलाओं के सरोगेसी का लाभ उठाने के अधिकारों को मान्यता देना।
बी) सरोगेसी एक्ट, 2021 की धारा 2(1)(एच) के तहत कपल की परिभाषा को समाप्त करने के लिए और एआरटी एक्ट, 2021 की धारा 2(1)(ई) में कमीशनिंग कपल या इन परिभाषाओं में विवाहित पुरुष और स्त्री के अलावा अन्य जोड़ों को शामिल करें।
सी) जेस्टेशनल सरोगेसी और सरोगेट मदर की परिभाषाओं को एक दूसरे के साथ संरेखित करने के लिए उन्हें फिर से परिभाषित करना।
डी) जिला चिकित्सा बोर्ड द्वारा अनिवार्यता प्रमाण पत्र जारी करने की एक समय सीमा निर्धारित करने के लिए प्रतिवादियों को निर्देश जारी करना और अपील / समीक्षा के प्रावधान बनाए जाएं।
ई) डोनर बैंक द्वारा प्रत्येक डोनर के आधार का विवरण प्राप्त करने को अनिवार्य बनाने वाली धारा 27(6) को समाप्त किया जाए।
एफ) धारा 4(iii)(बी)(III) को संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन घोषित किया जाए।
जी) मेडिकल प्रैक्टिशनर के लिए कठोर दंड का नियम बनाने वाले एआरटी एक्ट के प्रावधानों को समाप्त करना।
एच) अत्यधिक पंजीकरण शुल्क सहित एआरटी क्लीनिकों के पंजीकरण के लिए कठिन आवश्यकताओं को कम करना।
केस टाइटल- अरुण मुथुवेल बनाम भारत संघ,डायरी नंबर 26590-2022