यदि सरकार का रवैया ऐसा ही रहा तो भारत मध्यस्थता का केंद्र नहीं बन सकेगा : जस्टिस नरीमन
सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश रोहिंगटन फली नरीमन ने मध्यस्थता एवं सुलह संशोधन अधिनियम 2019 में जोड़ी गयी धारा 87 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका की सुनवाई करते वक्त संबंधित प्रावधान की आलोचना की है।
न्यायमूर्ति नरीमन ने संबंधित धारा के बारे में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि आपने घड़ी की सूई उल्टी दिशा में मोड़ दी है। इस प्रावधान से 2018 के सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले को निष्प्रभावी किया गया है, जिसके जरिये कानून में स्वत: रोक के प्रावधान के प्रत्याशित इस्तेमाल का निर्धारण किया गया था।
पीठ में न्यायमूर्ति रामा सुब्रमण्यम भी शामिल हैं। पीठ हिन्दुस्तान कंस्ट्रक्शन कंपनी लिमिटेड की याचिका की सुनवाई कर रही थी। प्रावधान का बचाव करते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ से अनुरोध किया कि इस मामले की सुनवाई अधिनियम को संवैधानिक तौर पर वैध मानकर की जानी चाहिए।
न्यायमूर्ति नरीमन ने कहा, "हम इसे असंवैधानिक मानकर (सुनवाई) शुरू करेंगे। आपने यह शुरू किया है। पूरी दुनिया में 2019 के इस कानून की आलोचना हो रही है। हम सभी सरकार के अलग-अलग अंग हैं। हम सभी राष्ट्रहित में काम करते हैं। यदि आप इस तरह करेंगे तो भारत मध्यस्थता का केंद्र नहीं बन सकता।"
सुप्रीम कोर्ट ने 'बीसीसीआई बनाम कोच्चि क्रिकेट प्राइवेट लिमिटेड' मामले में इस बात का निर्धारण किया था कि क्या इस कानून की धारा 36 में संशोधन पूर्व से प्रभावी होगी या नये सिरे से। यहां उल्लेखनीय है कि वर्ष 2015 में धारा 36 में किये गये संशोधन में स्पष्ट किया गया है कि केवल अपील दायर कर देने मात्र से ही आदेश के अमल पर रोक नहीं माना जायेगा। इसमें एक प्रावधान भी जोड़ा गया कि यदि आदेश भुगतान से संबंधित है तो उस आदेश के अमल पर रोक जमानत राशि जमा कराने के बाद ही प्रभावी होगी।
इस संशोधन से पहले एक व्यक्ति बगैर कोई जमानत राशि जमा कराये केवल अपील दायर करके आदेश के अमल पर रोक लगवा सकता था। न्यायमूर्ति नरीमन और न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा की पीठ ने 'कोच्चि क्रिकेट प्राइवेट लिमिटेड मामले में व्यवस्था दी थी कि धारा 36 के संशोधित प्रावधान केवल इन पर लागू होंगे :-
(ए) संशोधन कानून लागू करने की तिथि 23 अक्टूबर 2015 या उसके बाद शुरू की गयी मध्यस्थता कार्यवाही पर।
(बी) 23 अक्टूबर, 2015 को या उसके बाद दायर मध्यस्थता संबंधी न्यायालयीन कार्यवाही पर, भले ही मध्यस्थता प्रक्रिया संशोधन कानून के अस्तित्व में आने से पहले ही क्यों न शुरू हो चुकी हो।
वर्ष 2019 में किये गये संशोधन के जरिये शामिल की गयी धारा 87 कहती है कि भले ही कोर्ट कार्यवाही मध्यस्थता और सलाह (संशोधन) अधिनियम 2015 के लागू होने से पहले या बाद में शुरू हुई हो, उसे ध्यान में रखे बिना 2015 का संशोधन आर्बिट्रल प्रोसिडिंग्स से उत्पन्न कोर्ट कार्यवाही पर लागू नहीं होगा। इस प्रकार धारा 87 कोच्चि क्रिकेट प्राइवेट लिमिटेड के फैसले के खिलाफ जाती है।
दरअसल, फैसले में न्यायालय ने संशोधन के जरिये धारा 87 जोड़ने के सरकार के कदम की आलोचना की थी। न्यायमूर्ति नरीमन ने पीठ की ओर से लिखे फैसले में कहा,
"यदि सरकार अपने सात मार्च 2018 की प्रेस विज्ञप्ति में बताये गये उद्देश्यों के अनुरूप धारा 87 को लागू करने का प्रस्ताव करती है तो उसे विधेयक के उद्देश्य और कारणों पर विचार करने की सलाह दी जाती है। प्रस्तावित धारा 87 का तत्काल असर यह होगा कि संशोधन अधिनियम के जरिये किये गये सभी महत्वपूर्ण संशोधन गौण हो जायेंगे, यथा- खासकर धारा 28 और धारा 34 के किये गये संशोधन भी।
इसकी वजह से मध्यस्थता संबंधी मुकदमों के निस्तारण में देरी होगी, साथ ही मध्यस्थता मामलों में कोर्ट का हस्तक्षेप बढ़ेगा, जिसके परिणामस्वरूप कानून का उद्देश्य पूरा नहीं हो पायेगा। धारा 87 के क्रियान्वयन का परिणाम यह भी होगा कि यह 23 अक्टूबर 2015 के बाद धारा 34 के तहत दायर याचिकाओं पर लागू नहीं होगा, बल्कि इस धारा में दायर उन मामलों में होगा, जिनमें मध्यस्थता कार्यवाही केवल 23 अक्टूबर 2015 के बाद शुरू हुई हो। इसका मतलब यह हुआ कि 23 अक्टूबर के बाद मध्यस्थता कार्यवाही शुरू होने के बावजूद सभी लंबित मामलों में पुराना कानून लागू रहेगा और कोर्ट का हस्तक्षेप बढ़ने के कारण इन मामलों के निपटारे में विलंब होगा। इस प्रकार 1996 के अधिनियम का उद्देश्य पूरा नहीं हो सकेगा।
स्मरण रहे कि 246वें विधि आयोग की रिपोर्ट में भी मध्यस्थता कार्यवाही को दो हिस्सों में बांटा गया था, ताकि संशोधन कानून 23 अक्टूबर 2015 को या उसके बाद शुरू होनी वाली कोर्ट प्रोसिडिंग्स में ही लागू हो। यह मूलभूत योजना है जिसका अनुपालन संशोधन कानून की धारा 26 के तहत किया जाता है तथा इसे खत्म नहीं किया जाना चाहिए, अन्यथा इससे संशोधन अधिनियम का उद्देश्य पूरा नहीं होगा।"
याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी की दलीलें सुनने के बाद न्यायमूर्ति नरीमन ने शुक्रवार को टिप्पणी की कि धारा 67 कोच्चि क्रिकेट प्राइवेट लिमिटेड के फैसले की भावना के खिलाफ है। अब इस मामले की सुनवाई 17 अक्टूबर को होगी।
न्यायमूर्ति नरीमन नयी दिल्ली में एक कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए 2019 के संशोधन के जरिये किये गये बदलाव को लेकर हाल ही में अपना विचार व्यक्त कर रहे थे। उन्होंने कहा था कि संशोधन के जरिये जोड़ी गयी धारा 87 और अन्य प्रावधान प्रतिगामी और निरर्थक हो चुके हैं।