मानव जीवन को सिर्फ आय की संभावना की दृष्टि से नहीं देखना चाहिए, बॉम्बे हाईकोर्ट ने दुर्घटना में मरने वाली 10 साल की लड़की के परिजन के लिए मुआवजा बढ़ाया

Update: 2019-11-08 04:48 GMT

हाल ही में बॉम्बे हाईकोर्ट ने 10 साल की सविता और उसकी मां की सड़क दुर्घटना में मौत के कारण मिलने वाली मुआवजे की राशि को बढ़ा दिया। 29 साल पहले सामने से आ रही राज्य परिवहन की एक बस के ट्रैक्टर ट्राली से टकरा जाने के कारण सविता और उसकी मां की मौत हो गई थी।

न्यायमूर्ति अनुजा प्रभुदेसाई ने मोटर वाहन दुर्घटना दावा अधिकरण, सतारा के 20 मार्च 1996 के आदेश को निरस्त कर दिया। अधिकरण ने मृतक के पिता देवपा मस्कर और उसके दो नाबालिग भाई-बहनों को 51,800 रुपये के मुआवजे का आदेश दिया था जिस पर उन्हें 12% का ब्याज मिलना था। अदालत ने इस फैसले के खिलाफ अपील को स्वीकार कर लिया।

अधिकरण ने महाराष्ट्र राज्य परिवहन निगम से कहा है कि वह मुआवजे की कुल राशि का 75% हिस्सा उचित ब्याज की दर से जमा करा दे। उसका मानना था कि इस दुर्घटना में दोनों ही पक्ष की गलती थी।

क्या है मामला

27 अप्रैल 1990 को सविता अपनी मां के साथ एमएसआरटीसी की बस से बॉम्बे से कोल्हापुर जा रही थी। उसके बस की सामने से आ रही ट्रैक्टर ट्राली से टक्कर हो गई। इस दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल सविता और उसकी मां की मौत हो गई। अपीलकर्ताओं ने कहा कि यह दुर्घटना सिर्फ बस चालक की लापरवाही के कारण हुई।

इस तरह अपीलकर्ता ने मोटर वाहन अधिनियम की धारा 166 के तहत कुल एक लाख रुपये के मुआवजे का दावा किया। एमएसआरटीसी ने इस बात से इनकार किया कि दुर्घटना का कारण बस ड्रायवर की लापरवाही थी। उसने कहा की ट्रैक्टर ट्राली के चालक की गलती के कारण यह दुर्घटना हुई। निगम ने कहा कि इसकी जिम्मेदारी दोनों को साझा करनी होगी।

अंततः, सम्मिलित उत्तरदायित्व का मामला ठहराते हुए अधिकरण ने एमएसआरटीसी को मुआवजे की 75% और राशि (38550 रुपए) और शेष 25% उचित ब्याज के साथ ट्रैक्टर ट्राली को देने को कहा।

दलील

अपीलकर्ता के वकील कृतिका पोकले ने कहा कि अधिकरण ने भविष्य को देखते हुए कोई मुआवजा नहीं दिया। उन्होंने कहा कि अपीलकर्ता नंबर 1 जो कि मृतक लड़की का बाप है, उसे भी मुआवजा प्राप्त करने का अधिकार है।

एमएसआरटीसी के वकील जीएस हेगड़े ने कहा कि हाईकोर्ट की एक अन्य पीठ ने कहा था कि यह दोनों वाहनों की लापरवाही के कारण यह दुर्घटना हुई। इस अदालत ने आगे कहा है कि अपीलकर्ता-दावेदार को दोनों में से किसी भी वाहन के मालिक या बीमाकर्ता से मुआवजे की पूरी राशि प्राप्त करने का अधिकार है और दोनों में मुआवजे की राशि को बांटने की जरूरत नहीं है।

फैसला

न्यायमूर्ति प्रभुदेसाई ने इस बात पर गौर किया कि इसी दुर्घटना से संबंधित एक अन्य अपील, जो कि अपीलकर्ता नंबर 1 की पत्नी की मौत से संबंधित है, के बारे में हाईकोर्ट ने खेन्येई बनाम न्यू इंडिया अस्योरेंश कंपनी, 2015 मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया पेश साक्ष्यों पर गौर करते हुए कहा कि हाईकोर्ट ने पाया कि मृतक का दुर्घटना में कोई योगदान नहीं था और यह साझा लापरवाही का मामला नहीं हो सकता। यह कहा गया कि जब साझा गलती के कारण कोई दुर्घटना होती है तो यह मिश्रित लापरवाही का मामला हो सकता है, न कि साझा लापरवाही का।

अदालत ने यह भी कहा कि कैसे अधिकरण ने एक मुश्त 25 हजार रूपए का मुआवजा देने का आदेश दिया और ऐसा करते हुए यह गौर नहीं किया की मृतक, यद्यपि छात्र थी, वह धन भी अर्जित कर सकती थी।

अदालत ने कहा

"अधिकरण ने मौत के कारण एक बेटी के नहीं रहने से होने वाले घाटे को ध्यान में नहीं रखा। हमारी राय में, अधिकरण ने जो मुआवजा देने का आदेश दिया है वह उचित और तर्कसंगत नहीं है और इसलिए यह जरूरी है कि मुआवजे की गणना सुप्रीम कोर्ट के बाध्यकारी सिद्धांतों और फार्मूले के अनुरूप किया जाए।

इसके बाद पीठ ने आरके मालिक और अन्य बनाम किरण पाल एवं अन्य, 2009 मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया। अदालत ने इस फैसले में कहा था, मानव जीवन को आय की हानि या हमेशा मौद्रिक हानि के रूप में ही नहीं देखना चाहिए। इसमें भावनात्मक हानि भी शामिल है और एक बच्चे को खो देने के एहसास का परिवार पर भयंकर प्रतिकूल असर हो सकता है और इसकी सजह कल्पना की जा सकती है।..."

इस तरह, मृतक की संभावित आय को इसमें जोड़ते हुए अदालत ने 2,29,300 रूपए की मुआवजा राशि का निर्धारण किया और कहा कि अपीलकर्ता को एमएसआरटीसी से पूरी राशि वसूलने का अधिकार है और निगम को यह आजादी दी कि वह 25% राशि ट्रैक्टर ट्राली से वसूल सकता है। 


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