"हम फंड बनाने का निर्देश कैसे दे सकते हैं? यह BCI को तय करने दीजिए" लॉकडाउन के दौरान वकीलों की वित्तीय मदद करने की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा

Update: 2020-05-01 02:22 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को उस याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया, जिसमें बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) को देशव्यापी लॉकडाउन के बाद आय का कोई साधन नहीं रखने वाले वकीलों के लिए वित्तीय आपात कोष बनाने के निर्देश देने की मांग की गई थी।

यह कहते हुए कि वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए निर्णय लेने का बीसीआई का विशेषाधिकार है, जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस एसके कौल और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने याचिकाकर्ता को बीसीआई से संपर्क करने को कहा।

अदालत ने कहा, 

" हम फंड बनाने का निर्देश कैसे दे सकते हैं? हम के एक विशेष श्रेणी नहीं बना सकते हैं जब दुर्भाग्यवश पूरे देश को मुश्किल स्थिति का सामना करना पड़ रहा है। इस बारे में बीसीआई को फैसला करने दें।"

बेंच ने आगे कहा कि सभी लोग बिना काम के हैं, जहां पूरा देश 'मुश्किल हालात' का सामना कर रहा है। बार काउंसिल की महामारी के दौरान एक भूमिका है, लेकिन कोर्ट वकीलों के लिए एक अलग श्रेणी नहीं बना सकता।

न्यायमूर्ति कौल ने कहा,

"सभी लोग बिना काम के हैं। आर्किटेक्ट बिना काम के हैं, अन्य लोग बिना काम के हैं। यह बीसीआई के लिए विचार करने का मुद्दा है। हम वकीलों के लिए एक विशेष श्रेणी कैसे बना सकते हैं?

इस महामारी के दौरान बीसीआई की भूमिका होती है। यदि कोई वकील संकट में है तो वे उसकी मदद करते हैं। यह एक ऐसी बीमारी है जो पूरे देश को प्रभावित कर रही है, वकील इसका एक हिस्सा हैं। "

याचिकाकर्ता, वकील पवन प्रकाश पाठक, व्यक्तिगत रूप से पेश हुए और स्वतंत्र रूप से प्रैक्टिस करने वाले वकीलों की शिकायत पर प्रकाश डाला, जिनके पास फ़िलहाल आय का कोई स्रोत नहीं है।

अधिवक्ताओं के कल्याण और उनकी देखभाल करने के लिए बीसीआई पर जिम्मेदारी देते हुए पाठक ने कहा कि शीर्ष अदालत अधिवक्ताओं अधिनियम 1961 के तहत वकीलों के वैधानिक अधिकारों को आगे बढ़ाने के लिए निकाय को निर्देश दे सकती है।

उन्होंने कहा,

"हमने बार काउंसिल को लिखा है ... बीसीआई को अधिवक्ताओं के हितों और विशेषाधिकारों की देखभाल करनी है ... वकीलों को अधिवक्ता अधिनियम के तहत एक वैधानिक अधिकार है। यह अदालत बीसीआई को इस पर एक्शन लेेनेे का निर्देश दे सकती है।"

हालांकि, पीठ ने इस प्रस्तुति से असहमति जताई और दोहराया कि याचिकाकर्ता को बीसीआई को अपनी शिकायत करनी चाहिए।

पीठ ने कहा, 

"हमारे पास आपको देने के लिए कोई धन नहीं है। बार काउंसिल को इस पर एक्शन लेेनाा है। हम बार काउंसिल को नहीं बता सकते ... यह अनुच्छेद 32 के तहत दिशा निर्देश देने का हिस्सा कैसे हो सकता है? यह बार काउंसिल को तय करना है, उनके पास जाइए।"

झारखंड और पश्चिम बंगाल जैसे कुछ बार काउंसिल पहले ही इस मुद्दे को उठा चुके हैं।

न्यायमूर्ति रमना ने उसी का उल्लेख किया और कहा कि कुछ बार काउंसिलों ने व्यथित वकीलों को वित्त पोषण करने का मुद्दा उठाया है, यह दर्शाता है कि न्यायालय की इसमें भूमिका नहीं है।

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