मोटर दुर्घटना मामले में सजा कम करने का हाईकोर्ट का आदेश रद्द, सुप्रीम कोर्ट ने कहा-'आईपीसी का उद्देश्य अपराधियों को दंडित करना, इसलिए अनुचित सहानुभूति टिकाऊ नहीं'
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कहा,
"भारतीय दंड संहिता दंडात्मक और निवारक है, इसका मुख्य लक्ष्य और उद्देश्य अपराधियों को अधिनियम के तहत अपराधों के लिए दंडित करना है।"
कोर्ट ने यह टिप्पणी मोटर दुर्घटना मामले में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के एक फैसले को पलटते हुए की, जिसने अपने फैसले में रैश ड्राइविंग के दोषी एक व्यक्ति की सजा को कम कर दिया, जिसके कृत्य के कारण एक व्यक्ति की मौत हो गई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा, हाईकोर्ट द्वारा दिखाई गई 'अनुचित सहानुभूति', टिकाऊ नहीं थी, इसलिए उसके आदेश में हस्तक्षेप की आवश्यकता है।
जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस सीटी रविकुमार की खंडपीठ हाईकोर्ट के फैसले, जिसमें उसने अभियुक्त की दोषसिद्धि को बरकरार रखा था, लेकिन उसकी सजा को मुआवजे के भुगतान के अधीन, दो साल के सश्रम कारावास से घटाकर आठ महीने कर दिया था, के खिलाफ पंजाब सरकार की ओर से दायर अपील पर सुनवाई कर रही थी।
खंडपीठ ने कहा,
"इस अदालत ने मोटर वाहन दुर्घटनाओं के लिए जिम्मेदार अपराधियों को सख्ती से दंडित करने की जरूरत पर बार-बार जोर दिया है। तेजी से बढ़ते मोटरकरण के साथ भारत को सड़क दुर्घटना में घायलों और मौतों के बढ़ते बोझ का सामना करना पड़ रहा है।
...अपराध और दंड के बीच आनुपातिकता के सिद्धांत को ध्यान में रखना होगा। उचित सजा का सिद्धांत अपराध के संबंध में सजा का आधार है।"
यह अपील मोटर दुर्घटना के मामले में की गई है, जो आरोपी द्वारा 'लापरवाही' से गाड़ी चलाने के कारण हुई थी। उनके लापरवाही से गाड़ी चलाने से एक व्यक्ति की मौत हो गई और एक एम्बुलेंस भी पलट गई, जिससे एम्बुलेंस के अंदर दो लोग घायल हो गए।
आरोपी को भारतीय दंड संहिता की धारा 279 और 304ए के तहत दोषी ठहराया गया। भले ही हाईकोर्ट ने उनकी दोषसिद्धि की पुष्टि की, लेकिन अभियुक्तों की वित्तीय स्थिति को देखते हुए निचली अदालतों द्वारा दी गई सजा में हस्तक्षेप करना उचिता समझा, जो जीविका के लिए कार चलाते थे।
हालांकि, शीर्ष अदालत ने स्पष्ट रूप से अलग रुख अपनाते हुए कहा कि हाईकोर्ट अपराध की गंभीरता और आरोपी ने इसे कैसे किया, इस पर विचार करने में विफल रहा।
जस्टिस शाह की अगुवाई वाली पीठ ने मध्य प्रदेश राज्य बनाम सुरेंद्र सिंह [(2015) 1 SCC 222] के फैसले पर भरोसा किया, जिसमें यह माना गया था कि अपर्याप्त सजा देने के रूप में अनुचित सहानुभूति कानून की प्रभावोत्पादकता जनता के विश्वास के क्षरण के कारण न्याय प्रणाली को अधिक नुकसान पहुंचाएगी।
पंजाब राज्य बनाम सौरभ बख्शी [(2015) 5 SCC 182] पर भरोसा किया, जिसमें शीर्ष अदालत ने पाया कि सजा के सिद्धांत ने सुधारात्मक उपायों को मान्यता दी लेकिन ऐसे मौके आए जब निवारण एक 'अनिवार्य आवश्यकता' थी।
उक्त फैसलों को लागू करते हुए, बेंच ने पंजाब राज्य की ओर से दायर अपील की अनुमति देते हुए कहा कि हाईकोर्ट द्वारा दिखाई गई 'अनुचित सहानुभूति' अस्थिर थी और इस तरह, विवादित आदेश को रद्द कर दिया जाना चाहिए।
केस टाइटलः पंजाब राज्य बनाम दिल बहादुर | क्रिमिनल अपील नंबर 844 ऑफ 2023
साइटेशन : 2023 लाइवलॉ (एससी) 267