गुजरात हाईकोर्ट ने बुलेट ट्रेन परियोजना के लिए भूमि अधिग्रहण को चुनौती देने वाली किसानों की याचिकाएं खारिज की

Update: 2019-09-21 10:27 GMT

गुजरात हाईकोर्ट ने बुलेट ट्रेन से संबंधित मुंबई-अहमदाबाद हाईस्पीड रेल परियोजना के लिए भूमि अधिग्रहण को चुनौती देने वाली संबंधित किसानों की रिट याचिकाएं खारिज कर दीं।

न्यायमूर्ति अनंत एस. दवे और न्यायमूर्ति बिरेन वैष्णव ने भूमि-अधिग्रहण संबंधी उचित मुआवजा और पारदर्शिता, पुनर्वास एवं पुनर्व्यवस्थापन (गुजरात संशोधन) अधिनियम, 2016 की धारा 10ए और 2(एक) की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाएं निरस्त कर दीं।

गुजरात सरकार का संशोधन असंवैधानिक नहीं

कोर्ट ने अपने 361 पृष्ठ के फैसले में व्यवस्था दी है कि केंद्रीय कानून, 2013 के सामाजिक प्रभाव आकलन एवं खाद्य सुरक्षा विषयक चैप्टर 2 और 3 की परिधि से छूट के लिए गुजरात सरकार द्वारा किया गया संशोधन वैध है और इसे असंवैधानिक नहीं ठहराया जा सकता। पीठ ने कहा कि केंद्रीय कानून, 2013 के चैप्टर 2 और 3 के अलावा, बाकी सभी प्रावधान , खासकर केंद्रीय कानून की दूसरी अनुसूची में वर्णित अधिग्रहीत भूमि के स्वामियों को उचित एवं तार्किक मुआवजा उपलब्ध कराने, पुनर्वास एवं पुनर्व्यवस्थापन संबंधी प्रावधान लागू हैं।

मुआवजे को लेकर किसी याचिका पर इस फैसले का असर नहीं होगा

बेंच ने टिप्पणी की कि गुजरात संशोधन एक्ट, 2016 की धारा 10(ए) के तहत बुलेट ट्रेन परियोजना आधारभूत ढांचा से जुड़ी परियोजना है और यह जन सरोकारों की पूर्ति करती है। याचिकाओं को निरस्त करते हुए पीठ ने स्पष्ट किया कि भविष्य में मुआवजे को लेकर आने वाले किसी भी मामले में इस फैसले का कोई असर नहीं होगा।

कोर्ट ने कहा, "राज्य सरकार से यह अपेक्षा की जाती है कि जब सरकारी उद्देश्य की पूर्ति के लिए भूमि अधिग्रहीत की जाये तो वह संविधान के अनुच्छेद 300ए के प्रावधानों को ध्यान में रखकर गुजरात संशोधन कानून और केंद्रीय कानून 2013 के प्रावधानों के दायरे में पारदर्शी प्रक्रिया अपनाकर संबंधित किसानों को निष्पक्ष, पर्याप्त एवं उचित मुआवजा दे। सरकार से यह भी अपेक्षा की जाती है कि किसी जमीन का मुआवजा निकटवर्ती इलाके में उसी तरह की जमीन को राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण या ऐसे किसी केंद्रीय अथवा राज्य सरकार के प्राधिकरण द्वारा अधिग्रहीत जमीन के लिए दिये गये मुआवजे के समान हो।" 



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