140 वकीलों ने किसान आंदोलन के दौरान दिल्ली-एनसीआर के कुछ हिस्सों में इंटरनेट सेवाओं के बंद होने के खिलाफ सीजेआई को पत्र लिखा, स्वत: संज्ञान लेने की मांग
140 वकीलों के एक समूह ने भारत के मुख्य न्यायाधीश को चल रहे किसान आंदोलन के दौरान दिल्ली-एनसीआर के कुछ हिस्सों में इंटरनेट सेवाओं के बंद होने के खिलाफ पत्र लिखा है।
A group of 140 lawyers submits a letter petition before the Chief Justice of India again the internet shutdown imposed in parts of Delhi-NCR during the ongoing farmers protests.#FarmersProtests #InternetShutdowns pic.twitter.com/PlxUVRqny3
— Live Law (@LiveLawIndia) February 3, 2021
किसानों की गणतंत्र दिवस की ट्रैक्टर रैली हिंसक हो जाने के बाद, गृह मंत्रालय ने दिल्ली के कई हिस्सों में इंटरनेट सेवाओं के अस्थायी निलंबन का आदेश दिया। यह आदेश 29 जनवरी को सिंघु बॉर्डर पर हिंसक मुठभेड़ों के बाद बढ़ाया गया था जिसकी वजह से सिंघु, गाजीपुर और टिकरी बॉर्डर के क्षेत्रों में इंटरनेट सेवाएं निलंबित हैं।
सरकार के अनुसार, "सार्वजनिक सुरक्षा बनाए रखने और सार्वजनिक आपातकाल को कम करने के हित में" इंटरनेट सेवाओं को निलंबित करना आवश्यक है।
पत्र याचिका में वकीलों ने यह आरोप लगाया कि हिंसा स्थानीय हुड़दंगियों द्वारा की गई थी। यह आरोप लगाया जाता है कि स्थानीय निवासियों के होने का दावा करने वाले लगभग 200 लोगों ने क्षेत्र को खाली करने के लिए सिंघु बॉर्डर पर प्रदर्शन स्थल में घुस गए और पुलिस की भारी सुरक्षा की मौजूदगी के बावजूद प्रदर्शनकारियों पर पथराव किया, संपत्तियों को नुकसान पहुंचाया और प्रदर्शनकारियों पर हमला किया।
इस प्रकार वकीलों ने सर्वोच्च न्यायालय से इस मुद्दे पर स्वत: संज्ञान लेने और केंद्र सरकार को विरोध स्थलों और आस-पास के इलाकों में आगे के इंटरनेट बंद करने पर रोक लगाने का आग्रह किया है।
यह आरोप लगाया गया कि,
"इंटरनेट सेवाएं लगातार और छठे दिन विरोध स्थलों और इसके आस-पास के क्षेत्रों में निलंबित हैं। किसानों को इस बात का पूरा यकीन है कि उनकी आवाज़ों को खारिज किया जा रहा है और सरकार के केवल एकतरफा बयान को आगे बढ़ाया जा रहा है, जो कि संविधान के मूलभूत मूल्यों पर स्पष्ट हमला है। "
अनुराधा भसीन बनाम भारत संघ, (2020) 3 SCC 637 और फॉउनडेशन फॉर मीडिया प्रोफेशनल्स बनाम केंद्र शासित प्रेदश जम्मू और कश्मीर और अन्य (2020)5 SCC 746 मामले पर भरोसा जताया गया। इसमें सुप्रीम कोर्ट ने देखा था कि,
"संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत इंटरनेट तक पहुंच एक मौलिक अधिकार है, कुछ प्रतिबंधों के अधीन है और कहा कि प्रेस की स्वतंत्रता एक मूल्यवान और पवित्र अधिकार है।"
सुप्रीम कोर्ट ने आगाह किया था कि मजिस्ट्रेटों को निषेधात्मक आदेश पारित करते समय, दिमाग से काम करना चाहिए और आनुपातिकता के सिद्धांत का पालन करना चाहिए।
वकीलों ने दिल्ली की गाजीपुर बॉर्डर पर मल्टी-लेयर बैरिकेडिंग के निर्माण का विरोध किया है। विरोध स्थलों को एक किले में बदल दिया है, जहां ऐसा लगता है जैसे वे अपने ही लोगों के खिलाफ युद्ध छेड़ रहे हैं।
पत्र में यह आरोप लगाया गया है कि,
"2000 से अधिक लोहे की कीलें, बहु-परत धातु बैरिकेड्स, सीमेंट की दीवारें और भारी सशस्त्र सुरक्षा अधिकारियों को एम्बेड करना - इन्हें कानून और व्यवस्था की स्थितियों के रूप में नहीं माना जा सकता है। इसे किलेबंदी कहा जाना चाहिए! ये गतिविधियां प्रदर्शनकारी किसानों को वंचित कर रही हैं। यह मूल मानवाधिकारों और संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार का घोर उल्लंघन है।"
आगे लिखा है कि कुछ मुख्यधारा के मीडिया चैनलों द्वारा पक्षपातपूर्ण रिपोर्टिंग के कारण किसानों की दुर्दशा बिगड़ रही है।
पत्र में कहा गया है कि, "यह शांतिपूर्ण विरोध को बदनाम कर रहा है और केवल धधकती आग में ईंधन जोड़ रहा है। मुख्य धारा के मीडिया द्वारा किसानों को "आतंकवादी" के रूप में चिह्नित करना और उत्तेजक सामग्री को प्रसारित करना गलत है।"
इस पृष्ठभूमि में, वकीलों ने उच्चतम न्यायालय से जांच के लिए एक जांच आयोग गठित करने का आग्रह किया है:
1. हिंसा को नियंत्रित करने में पुलिस की निष्क्रियता और दिल्ली पुलिस की भूमिका कथित रूप से 29 जनवरी, 2021 को भीड़ के हमले को रोकने और शांति और सुरक्षा सुनिश्चित करने में विफल रही।
2. 200 स्थानीय हुड़दंगियों के खिलाफ कार्रवाई हो, जो कथित तौर पर सिंघु प्रोटेस्ट स्थल पर प्रदर्शनकारियों और पत्रकारों के साथ छेड़छाड़ में लगे हुए थे।
3. किसानों और उनके विरोध के बारे में कथित रूप से उत्तेजक सामग्री और नकली अफवाह फैलाने वाले पत्रकारों और समाचार चैनलों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए।
पत्र में कहा गया है कि,
"यह तुरंत किया जाना चाहिए ताकि चल रहे अन्याय को रोका जा सके जो हमारे संविधान के सिद्धांतों को तोड़ रहा है और एक लोकतांत्रिक देश की चमक को भारी नुकसान पहुंचा रहा है। यदि हम मानव अधिकारों के उल्लंघन के लिए मूक दर्शक बने रहेंगे तो इतिहास हमें क्षमा नहीं करेगा।"
याचिका पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें: