सरकारी अधिकारियों को बिना सोचे समझे अदालत में नहीं बुलाया जाना चाहिए : सुप्रीम कोर्ट

Update: 2023-07-20 15:02 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि राज्य के अधिकारियों को बिना सोचे-समझे अदालत में बुलाने की प्रथा अदालत की महिमा को कमजोर करती है। शीर्ष न्यायालय का विचार था कि अदालत में अधिकारियों की उपस्थिति पर जोर देने से कीमती समय बर्बाद होता है जो समय उनके कर्तव्यों के निर्वहन में लगाया जा सकता है और इस तरह की प्रथा को नियमित रूप से नहीं अपनाया जाना चाहिए।

जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस जेबी पारदीवाला की खंडपीठ ने कहा,

"इसमें कोई संदेह नहीं है कि राज्य के अधिकारी हाईकोर्ट द्वारा जारी निर्देशों का पालन करने के लिए बाध्य हैं। ऐसे मामले में जहां न्यायालय द्वारा जारी निर्देशों की अवहेलना और अवज्ञा होती है, न्यायालय अधिकारियों की उपस्थिति सुनिश्चित करने में न्यायसंगत होगा।"

हालांकि ऐसी प्रथा को दिनचर्या के रूप में नहीं अपनाया जाना चाहिए। राज्य सरकारों के अधिकारियों को देश के नागरिकों के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वहन करना आवश्यक है। न्यायालय में उनकी उपस्थिति से बहुमूल्य समय बर्बाद होता है जिसका उपयोग अन्यथा नागरिकों को सेवा करने में किया जा सकता है। बिना सोचे-समझे इस तरह के निर्देश जारी करना न्यायालय की महिमा को बरकरार रखने के बजाय उसे कमजोर करता है।''

शीर्ष अदालत पटना हाईकोर्ट की एक खंडपीठ द्वारा पारित एक आदेश को चुनौती देने पर विचार कर रही थी, जिसमें शिक्षा विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव को जमानती वारंट जारी किया गया था।

बिहार राज्य की ओर से पेश सीनिय्बर एडवोकेट एएनएस नादकर्णी ने कहा कि अनुपालन का विस्तृत हलफनामा रिकॉर्ड में रखे जाने के बावजूद आदेश पारित किया गया। याचिकाकर्ता ने बेंच द्वारा पारित 143 मामलों में दिए गए आदेशों को भी रिकॉर्ड पर रखा, जिसमें विवादित आदेश पारित करने वाले न्यायाधीशों में से एक शामिल था, जहां राज्य सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों को व्यक्तिगत रूप से हाईकोर्ट के समक्ष उपस्थित होने के लिए कहा गया था।

शीर्ष अदालत ने प्रतिवादी की इस दलील पर भी गौर किया कि हाईकोर्ट के निर्देशों का अनुपालन किया गया है और उसे राज्य के अधिकारियों की निष्क्रियता पर कोई शिकायत नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रकार पटना हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी।

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