सरकारी वकील का विवरण पूरी तरह सही नहीं कहा जा सकता : सुप्रीम कोर्ट ने आतंक-निरोधक कानून यूएपीए के तहत अभियुक्त की जमानत मंजूर की
सुप्रीम कोर्ट ने गैर-कानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम 1967 के तहत ट्रायल का सामना कर रहे जोधपुर निवासी एक अभियुक्त की विशेष अनुमति याचिका बुधवार को मंजूर कर ली। उस पर संदिग्ध आतंकी को भागने में मदद करने के आरोप है।
न्यायमूर्ति आर. एफ. नरीमन, न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा और न्यायमूर्ति के. एम. जोसेफ की खंडपीठ ने यह कहते हुए आरोपी को जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया कि राजस्थान हाईकोर्ट ने सरकारी वकील के ब्योरे पर भरोसा करके त्रुटि की है।
बेंच ने कहा, "हम संतुष्ट हैं कि हाईकोर्ट का यह फैसला कि याचिकाकर्ता के खिलाफ प्रथम दृष्या मामला सरकारी वकील के बयान के आधार पर बनाया गया था, पूरी तरह सही नहीं कहा जा सकता।"
याचिकाकर्ता-अभियुक्त को बरकत अली नामक व्यक्ति को भागने में मदद करने के आरोप में मार्च 2014 में गिरफ्तार किया गया था। बरकत अली के घर से पुलिस ने बड़ी मात्रा में विस्फोटक बरामद किया था। सरकारी वकील ने राजस्थान हाईकोर्ट के समक्ष दलील दी थी कि जांच के दौरान पुलिस द्वारा जुटाये गये प्रथम दृष्टया साक्ष्य से याचिकाकर्ता की भागीदारी के संकेत मिलते हैं।
यूएपीए अधिनियम की धारा 43डी(5) पर विचार करने के बाद, हालांकि कोर्ट ने कहा कि सरकारी वकील के ब्योरे को 'पूरी तरह सही' नहीं कहा जा सकता। इसने आरोप पत्र पर विचार किया और कहा कि याचिकाकर्ता-अभियुक्त का प्राथमिकी में नाम दर्ज नहीं था।
यूएपीए अधिनियम की धारा 43(डी)(5) जमानत के संदर्भ में बहुत ही सख्त प्रावधान है। इसमें प्रावधान है कि इस अधिनियम के तहत आतंकी घटना का कोई भी आरोपी जमानत पर तब तक रिहा नहीं किया जाएगा, जब तक जमानत पर रिहाई के आवेदन पर सरकारी वकील को अपना पक्ष रखने का एक मौका नहीं दिया जाता।
इसमें आगे यह भी कहा गया है कि ऐसा आरोपी व्यक्ति जमानत पर रिहा नहीं किया जायेगा, यदि कोर्ट को केस डायरी या आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 173 के तहत रिपोर्ट पर विचार करने के बाद लगता है कि इस बात पर भरोसा करने के लिए पर्याप्त तार्किक आधार मौजूद हैं कि आरोपी व्यक्ति के खिलाफ आरोप प्रथम दृष्टया सही है।
बेंच ने जमानत मंजूर करने के लिए याचिका में पर्याप्त आधार होने पर संतोष व्यक्त करते हुए कोई और टीका-टिप्पणी करने से परहेज किया, ताकि ट्रायल पूर्वाग्रह से ग्रसित न हो।
याचिकाकर्ता की ओर से पेश हो रहे एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड इरशाद हनीफ ने दलील दी थी कि जांच के दौरान पुलिस इस बात का पुख्ता साक्ष्य इकट्ठा नहीं कर पायी जिससे यह साबित हो सके कि याचिकाकर्ता अपराध में शामिल था।