गोधरा ट्रेन अग्निकांड के दोषी राज्य की नीति के अनुसार समय से पहले रिहाई के पात्र नहीं: गुजरात सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया

Update: 2023-02-20 06:59 GMT

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सोमवार को 2002 के गोधरा ट्रेन आगजनी मामले में दोषियों द्वारा दायर जमानत याचिकाओं पर विचार किया।

यह मामला भारत के चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया गया था।

गुजरात राज्य के लिए अपील करते हुए, भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने प्रस्तुत किया कि राज्य अपराध की गंभीरता को देखते हुए मामलों को "दुर्लभतम" माना जाएगा।

उन्होंने ये भी कहा कि दोषियों के मामलों को गुजरात राज्य की नीति के तहत समय से पहले रिहाई के लिए नहीं माना जा सकता क्योंकि उनके खिलाफ टाडा प्रावधानों को लागू किया गया था।

शुरुआत में, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने मामले में दोषियों द्वारा निभाई गई भूमिकाओं को निर्दिष्ट करना शुरू किया।

उन्होंने कहा,

"कांड में 59 लोगों को जिंदा जला दिया गया था। बोगी को बाहर से बंद कर दिया गया था। मरने वाले 59 लोगों में महिलाएं और बच्चे शामिल थे। पहले दोषी को देखें जिसने सजा को चुनौती दी है। उसकी पहचान टेस्ट पहचान परेड में हुई थी। वो यात्रियों को बाहर नहीं आने देने के मकसद से पथराव कर रहा थे। दूसरा- उसकी भूमिका भी स्पष्ट है। तीसरे दोषी के मामले में अंतर यह है कि उसके पास एक घातक हथियार मिला। चौथा- साजिश रचने में उसने सक्रिय भूमिका निभाई। उसने पेट्रोल खरीदा और जलाने के उद्देश्य से पेट्रोल का इस्तेमाल किया।"

सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ ने याद किया कि पीठ ने एक दोषियों को चिकित्सा आधार पर जमानत दी थी।

13 मई, 2022 को अदालत ने दोषियों में से एक अब्दुल रहमान धंतिया उर्फ कंकत्तो @ जंबुरो को छह महीने की अंतरिम जमानत इस आधार पर दी कि उसकी पत्नी टर्मिनल कैंसर से पीड़ित है और उसकी बेटियां मानसिक रूप से बीमार हैं। 11 नवंबर, 2022 को कोर्ट ने उसकी जमानत 31 मार्च, 2023 तक बढ़ा दी।

15 दिसंबर को, बेंच ने फारूक नाम के एक दोषी को भी जमानत दे दी थी, जिसे गोधरा कांड मामले में उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी। कोर्ट ये देखते हुए जमानत दी थी कि वह 17 साल की सजा काट चुका है और उसकी भूमिका ट्रेन में पथराव की थी।

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने पूछा,

"तो गुजरात राज्य की समयपूर्व रिहाई नीति के तहत, क्या उन्हें रिहा किया जाएगा?"

एसजी मेहता ने कहा कि दोषी समय से पहले रिहाई के योग्य नहीं हैं क्योंकि टाडा प्रावधानों को उनके खिलाफ लागू किया गया था।

सीनियर एडवोकेट केटीएस तुलसी ने इस बात पर प्रकाश डाला कि दोषियों में से एक ने कहा कि वह गुजराती नहीं जानता है और उसने एक बयान पर अपने अंगूठे का निशान दिया था जिसे उसने पढ़ा नहीं था।

पीठ ने कहा कि मामलों पर विचार करने के लिए सभी प्रासंगिक विवरणों के साथ एक संकलित चार्ट की आवश्यकता है।

CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा,

"यह सहमति हुई है कि आवेदकों की ओर से एओआर गुजरात राज्य के सरकारी वकील स्वाति घिल्डियाल के साथ सभी प्रासंगिक विवरणों के साथ एक चार्ट तैयार करेंगे। 3 सप्ताह के बाद सूचीबद्ध करें।"

27 फरवरी, 2002 को जो अपराध हुआ, उसके परिणामस्वरूप साबरमती एक्सप्रेस के एस-6 कोच के अंदर आग लगने से 58 लोगों की मौत हो गई, जो अयोध्या से कारसेवकों को ले जा रही थी। गोधरा कांड ने गुजरात में सांप्रदायिक दंगों को जन्म दिया।

मार्च, 2011 में ट्रायल कोर्ट ने 31 लोगों को दोषी ठहराया था, जिनमें से 11 को मौत की सजा सुनाई गई और बाकी 20 को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। 63 अन्य आरोपियों को बरी कर दिया गया। 2017 में गुजरात हाईकोर्ट ने 11 की मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया और अन्य 20 को दी गई उम्रकैद की सजा को बरकरार रखा।

केस टाइटल: अब्दुल रहमान धंतिया बनाम गुजरात राज्य सीआरएल A. 517/2018 और संबंधित मामले।


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