बेटी अगर नौकरी कर रही है तो पिता उसे मासिक भरण पोषण की राशि का भुगतान करने के लिए बाध्य नहीं

Update: 2019-10-01 05:04 GMT

कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा कि एक पिता अपनी उस बेटी को भरण पोषण की राशि का भुगतान करने के लिए बाध्य नहीं है, जो बेटी खुद लाभप्रद नौकरी में है। न्यायमूर्ति एस.एन. सत्यनारायण और न्यायमूर्ति पी.जी.एम.पाटिल की खंडपीठ ने एक सदाशिवनंदा द्वारा दायर अपील को आंशिक रूप से स्वीकार कर लिया।

पीठ ने कहा,

''निचली अदालत ने प्रारंभिक चरण में कुछ राशि वादी बेटी को दिए जाने को उचित ठहराया था, लेकिन वादी बेटी द्वारा एक अच्छी कंपनी में सम्मानजनक नौकरी हासिल करने के बाद और खुद के लिए प्रति माह 20,000 से 25,000 रुपए कमाने की स्थिति में भरण पोषण जारीए रखना उचित नहीं है। ऐसी स्थिति में पिता द्वारा उसे अतिरिक्त 10000 रुपए की राशि भरण पोषण के रूप में नहीं दी जा सकती।

पहले ही पिता के कंधों पर दूसरी अविवाहित बेटी की जिम्मेदारी है, जिसने पढ़ाई बंद कर दी है। इसके अलावा दो अन्य बेटों की जिम्मेदारी भी पिता पर है ,जो अभी तक बालिग नहीं हुए हैं। इन सभी बच्चों का खर्च तब तक पिता को उठाना होगा,जब तक कि वह सभी अपने पैरों पर खड़े नहीं हो जाते हैं।''

पीठ ने परिवारिक अदालत द्वारा तय किए गए शादी के खर्च को भी 15 लाख रुपये से घटाकर 5 लाख रुपये कर दिया है। पीठ ने कहा कि-''विवाह खर्चों का भुगतान तब किया जाना चाहिए जब उसकी (बेटियों की) शादी तय हो और उक्त खर्च की अधिकतम राशि 5 लाख रुपए तक होगी।''

पिता ने, 9 नवंबर 2016 को पारिवारिक अदालत द्वारा पारित आदेश को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। वहीं उनकी दूसरी बेटी पद्मिनी ने हिंदू दत्तक और रख-रखाव अधिनियम की धारा 20 के साथ-साथ सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश सात नियम 1 के प्रावधानों के तहत मुकदमा दायर करके अदालत का दरवाजा खटखटाया था।

बेटी ने अदालत से मांग की थी कि उसके पिता को निर्देशित किया जाए कि वह उसके रख-रखाव और खर्च का भुगतान करें, क्योंकि उसका विवाह होने तक रख-रखाव दिया जाना चाहिए। साथ ही विवाह तय हो जाने के बाद शादी के खर्चों को पूरा किया जाए और उसकी सुचारू शिक्षा के लिए व्यवस्था करें।

पिता की दलील

पिता ने हाईकोर्ट में दलील दी थी कि मुकदमा जल्दबाजी में निपटाया गया था, रिकॉर्ड पर उपलब्ध महत्वपूर्ण साक्ष्यों व बेटी के स्टेटस, जिसमें उसने बैचलर ऑफ इंजीनियरिंग और एम.टेक डिग्री पूरी कर ली थी, पर सही ढंग से विचार नहीं किया गया। न ही निचली अदालत ने इस तथ्य पर विचार किया कि उनकी बेटी ने पढ़ाई पूरी होने के बाद आउटसोर्स एजेंट के रूप में काम करना शुरू कर दिया था और उसे अच्छा वेतन भी मिल रहा है।

इन सभी तथ्यों के बावजूद निचली अदालत ने न केवल 10,000 रुपये के मासिक रख-रखाव का आदेश दिया, बल्कि उसे शादी के खर्चों के लिए 15,00,000 रुपये भी देने का आदेश दे दिया, जो कि कानून में पूरी तरह गलत और अस्वीकार्य है। उसके दावे का समर्थन करने के लिए कोई सबूत नहीं है।

अदालत का फैसला

पीठ ने दोनों पक्षों द्वारा पूर्व में पारिवारिक अदालत के समक्ष दायर किए गए दस्तावेजों और कार्रवाई को देखने के बाद कहा,

''अपीलकर्ता और उसकी पत्नी के बीच का विवाद काफी लंबा खींचा हुआ है, जहां उनके बीच अलग-अलग कई मुकदमे लंबित हैं। उनमें से एक मामला उसकी पत्नी ने अपने व अपने पांच बच्चों की ओर से दायर किया था और रख-रखाव की मांग की थी। दूसरा मामला वैवाहिक संबंधों की पुनर्स्थापना के लिए है और तीसरा मामला विभाजन के लिए है, जिसमें सूट संपत्तियों में 6/7 वाँ हिस्सा मांगा गया है जो कि अपीलकर्ता की संपत्ति बताई जा रही हैं।''

पीठ ने कहा कि-

''इस मामले में, निचली अदालत के समक्ष मुकदमा दायर करने की तारीख के समय पर वादी इंजीनियरिंग स्नातक हो चुकी थी। इसके अलावा, उसकी नौकरी भी लग चुकी थी। यहां तक कि अगर उसकी आय को 20,000 से 25,000 रुपये प्रति माह मान लिया जाए, तो जब इस तरह की आय उसके पास पहले से ही उपलब्ध है, ऐसे में अदालत उसे भरण पोषण का भुगतान करने की ज़िम्मेदारी कैसे तय सकती है। इसका कोई तर्क नहीं है।

वहीं वादी की शादी के खर्च के लिए निचली अदालत द्वारा प्रदान की गई 15,00,000 रुपये की राशि का भी कोई कारण नहीं है, जब उस संबंध में कोई दलील नहीं दी गई थी। इतना ही नहीं यह प्रदर्शित करने के लिए सबूतों में ऐसा कुछ भी नहीं है कि वादी की शादी के लिए जो खर्च आवश्यक है, वह 15,00,000 रुपये तक के ही होंगे। निचली अदालत ने अपने स्वयं के अनुमानों पर एकतरफा रूप से यह मान लिया कि वादी की शादी के लिए राशि की आवश्यकता होगी, जो राशि किसी भी तरीके से तर्क की कसौटी पर उचित नहीं है।'' 



Tags:    

Similar News