कथित अपराधों की गम्भीरता जमानत अर्जी खारिज करने का आधार नहीं बन सकती : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किसी आरोपी के खिलाफ अपराधों की गम्भीरता जमानत अर्जी ठुकराने का आधार नहीं हो सकती है।
न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की बेंच ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ अपील खारिज करते हुए यह टिप्पणी की। हाईकोर्ट ने हत्या में शामिल होने के आरोपों का सामना कर रहे दो अभियुक्तों को जमानत दे दी थी।
जमानत आदेश खारिज करने के अपीलीय अदालत के अधिकार क्षेत्र का निर्धारण करने वाले सुप्रीम कोर्ट के ही हालिया आदेश का उल्लेख करते हुए पीठ ने कहा :
दो ही कारणों से इस तरह के आदेश में हस्तक्षेप किया जाता है- या तो जमानत मंजूर करने वाले कोर्ट ने विवेक का इस्तेमाल नहीं किया हो या जमानत देने में कोर्ट की राय पहली ही नजर में रिकॉर्ड पर लाये गये साक्ष्यों से नहीं बनी हो।
हाईकोर्ट के आदेश पर ध्यानपूर्वक विचार करते हुए बेंच ने कहा कि हाईकोर्ट ने आरोपी की जमानत मंजूर करके न तो कोई गलती की है, न अपने विवेक का अनुचित इस्तेमाल। बेंच ने कहा कि उपलब्ध तथ्य इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए सही नहीं हैं कि हाईकोर्ट ने संबंधित आदेश जारी करते वक्त विवेक का इस्तेमाल नहीं किया या जमानत देने में कोर्ट की राय पहली ही नजर में रिकॉर्ड पर लाये गये साक्ष्यों से नहीं बनी है। बेंच ने कहा :-
निस्संदेह कथित अपराध गंभीर हैं और आरोपी के खिलाफ कई आपराधिक मामले लंबित भी हैं। इसके बावजूद ये कारण खुद में जमानत की अर्जी ठुकराने का आधार नहीं बन सकते।
केस का नाम : प्रभाकर तिवारी बनाम उत्तर प्रदेश सरकार
केस नं:- क्रिमिनल अपील नं. 153-154/2020
कोरम : जस्टिस दीपक गुप्ता एवं न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस