सोशल मीडिया अकाउंट को आधार से जोड़ने को लेकर फेसबुक ने दाखिल की सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर याचिका

Update: 2019-08-19 14:38 GMT

सोशल मीडिया अकाउंट को आधार से जोड़ने को लेकर तीन उच्च न्यायालयों में लंबित मामलों को सुप्रीम कोर्ट में स्थानांतरित करने के लिए फेसबुक ने याचिका दायर की है। जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की पीठ ने ट्रांसफर याचिका की सुनवाई मंगलवार के लिए टाल दी है।

सोमवार को सुनवाई के दौरान केंद्र की ओर से कहा गया कि देश-विरोधी, आपत्तिजनक और अश्लील संदेश बनाने वालों तक पहुंचने के लिए ये जरूरी है। वहीं व्हाटसएप की ओर से कहा गया कि एन्क्रिप्शन के कारण इसका पता लगाना संभव नहीं है। फेसबुक का कहना है कि आधार को किसी निजी कंपनी से कैसे लिंक किया जा सकता है ? ये अत्यधिक सार्वजनिक महत्व का मामला है। ये निजता का मामला भी है जिस पर स्पष्टता की आवश्यकता है।

याचिका यह कहते हुए दायर की गई है कि मद्रास, बॉम्बे और मध्य प्रदेश के उच्च न्यायालयों में लंबित मामले काफी हद तक समान राहत चाहते हैं और इसमें कानून के समान या काफी समान प्रश्न शामिल हैं।

" ये स्थानांतरण चार सामान्य मामलों से परस्पर विरोधी फैसलों की संभावना को टालेगा और न्याय के हितों की सेवा करेगा। वास्तव मे इससे सुनिश्चित हो सकेगा कि उपयोगकर्ताओं को पूरे भारत में समान निजता सुरक्षा प्रदान की जाए और जहां तक संभव हो परस्पर विरोधी निर्णयों से बचा जाए। याचिकाकर्ता, जो भारत भर में एक समान मंच का संचालन करता है, को आदेश दिया गया है कि वह केवल कुछ भारतीय राज्यों में ही नहीं बल्कि अन्य लोगों के लिए भी आधार की जानकारी को लिंक करे। चूंकि याचिका में सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 और आधार अधिनियम, 2016 जैसे केंद्रीय विधानों की व्याख्या शामिल है, इसलिए आदर्श यह होगा कि सर्वोच्च न्यायालय इस मुद्दे को सुने, " याचिका में कहा गया है।

दरअसल उच्च न्यायालयों में दाखिल याचिकाओं में अनिवार्य रूप से घोषणा की मांग की गई है कि आधार या किसी अन्य सरकारी अधिकृत पहचान प्रमाण को सोशल मीडिया खातों को प्रमाणित करने के लिए अनिवार्य किया जाना चाहिए। याचिकाकर्ताओं के अनुसार यह फर्जी और बेनामी प्रोफाइल द्वारा बनाए गए खतरे को रोकेगा।

इस तरह की दो याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए मद्रास HC ने ऑनलाइन दुरुपयोग और फर्जी खबरों को सोशल मीडिया के माध्यम से प्रसारित करने के मुद्दे पर विचार करने के लिए मामले का दायरा बढ़ाया था। कोर्ट ने फर्जी समाचार और साइबर दुरुपयोग के मामलों में बिचौलियों की देनदारियों को परिभाषित करने की भी मांग की। फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सएप और गूगल ने अदालत के सामने प्रस्तुत किया कि उनके लिए प्रत्येक व्यक्तिगत सामग्री की निगरानी करना संभव नहीं है।

व्हाट्सएप की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अरविंद पी दातार ने मद्रास HC को सूचित किया था कि चूंकि उपयोगकर्ताओं के बीच संदेश एंड-टू-एंड एन्क्रिप्टेड हैं, इसलिए व्हाट्सएप तीसरे पक्ष को सूचना प्रदान नहीं कर सकता है। वह उपयोगकर्ता के मोबाइल नंबर, ईमेल पते, डिवाइस आदि के बारे में बुनियादी सब्सक्राइबर जानकारी साझा कर सकता है।

गूगल, फेसबुक और ट्विटर के लिए वरिष्ठ वकील पीएस रमन, सतीश पारासरन और आर मुरारी ने कहा कि उपयोगकर्ताओं की बुनियादी सब्सक्राइबर जानकारी यानी BSI को कानून प्रवर्तन एजेंसियों के साथ साझा किया जा सकता है।

25 अप्रैल को जस्टिस एस मनिकुमार और जस्टिस सुब्रमणियम प्रसाद की डिवीजन बेंच ने ऑनलाइन अपराधों का पता लगाने और साइबर दुरुपयोग और गलत सूचना को नियंत्रित करने के साधनों पर चर्चा करने के लिए तमिलनाडु सरकार को कानून प्रवर्तन एजेंसियों और सोशल मीडिया प्रतिनिधियों के बीच बातचीत सत्र की व्यवस्था करने का निर्देश दिया था। 

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