क्षतिपूर्ति अधिनियम तुरंत मुआवजा उपलब्ध कराने के लिए सामाजिक सुरक्षा कानून, पढ़िए इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक बार फिर कहा है कि कर्मचारी क्षतिपूर्ति अधिनियम 1923 एक सामाजिक सुरक्षा कानून है, जो कर्मचारियों के मुआवजे के निर्धारण एवम् भुगतान के लिए त्वरित एवम् प्रभावी तंत्र उपलब्ध कराता है।
न्यायमूर्ति योगेन्द्र कुमार श्रीवास्तव ने अधिवक्ता अक्षत सिन्हा की ओर से दायर मेसर्स वासु इंफ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड की याचिका का निपटारा करते हुए कहा,
"कर्मचारी क्षतिपूर्ति कानून, 1923" एक सामाजिक सुरक्षा एवं कल्याण संबंधी कानून है, जिसका मुख्य उद्देश्य कर्मचारियों को संरक्षित करना है। इस अधिनियम के प्रावधानों की व्याख्या इस प्रकार होनी चाहिए, ताकि कानून के उद्देश्य की पूर्ति हो सके। इस अध्रिनियम का उद्देश्य नौकरी के दौरान घायल होने अथवा निधन के कारण कर्मचारी को होने वाली क्षति के लिए नियोक्ता को जिम्मेदार ठहराना है।"
याचिकाकर्ता ने सहायक श्रमायुक्त के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें 05.08.2016 और 28.07.2016 को जारी 'एकपक्षीय आदेश' को वापस लेने का याचिकाकर्ता द्वारा किया गया अनुरोध ठुकरा दिया गया था। श्रमायुक्त ने नौकरी के दौरान हुई दुर्घटना में शत-प्रतिशत विकलांग हो चुके कर्मचारी को क्षतिपूर्ति देने का निर्णय दिया था।
विशेष तौर पर, संबंधित अधिनियम की धारा-तीन नौकरी के दौरान हुई दुर्घटना में व्यक्तिगत रूप से घायल कर्मचारी को क्षतिपूर्ति के लिए नियोक्ता को बाध्यकारी बनाती है। इसके बाद, धारा चार के प्रावधानों के तहत मुआवजे का निर्धारण होता है।
न्यायालय ने स्टैंडिंग काउंसेल माता प्रसाद की दलीलों पर सहमति जताते हुए कहा कि याचिकाकर्ता को नोटिस जारी किया गया था और उसे मुकदमे के बारे में पूरी जानकारी थी। इस प्रकार श्रम आयुक्त का 'एकतरफा फैसला' बिल्कुल सही था।"
अधिनियम के उद्देश्य का उल्लेख करते हुए कोर्ट ने कहा कि संबंधित अधिनियम नौकरी के दौरान हुई दुर्घटनाओं के कारण उत्पन्न कठिनाइयों से कामगार को संरक्षित रखने के लिए बनाया गया है। न्यायालय ने "ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम मोहम्मद नासिर एवं अन्य (2009)" के मामले में कोर्ट के निर्णय पर भरोसा जताते हुए कहा,
"कामगार क्षतिपूर्ति अधिनियम, 1923 कल्याणकारी कानून के तौर पर लागू किया गया था, ताकि मशीनरी के बढ़ते इस्तेमाल और उसके परिणामस्वरूप उत्पन्न होने वाली जटिलताओं तथा गरीबी के कारण उनकी स्थिति की गम्भीरता को ध्यान में रखकर कर्मचारियों को सामाजिक सुरक्षा उपलब्ध करायी जाये।"
न्यायालय ने 'जीवनलाल लिमिटेड एवं अन्य बनाम अपीलीय प्राधिकरण (1984) में दिये गये फैसले के आलोक में लाभकारी कानून के उदारवादी स्वरूप के सिद्धांतों का हवाला भी दिया। सुप्रीम कोर्ट ने उक्त मामले में कहा था,
"सामाजिक कल्याण संबंधी कानून की व्याख्या करते वक्त न्यायालय को संबंधित नियम स्वीकार करना चाहिए और यदि कोई धारा दो आशय प्रकट करती है तो वैसी स्थिति में उसे उस आशय को तरजीह देनी चाहिए जो संबंधित अधिनियम की नीतियों पर खरा उतरता हो और उन लोगों के लिए लाभप्रद हो, जिन्हें लाभान्वित करने के लिए कानून बनाया गया हो।"
हालांकि, कोर्ट ने स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता संबंधित अधिनियम की धारा 30 के तहत सांविधिक अपील दायर करके आदेश को गुण-दोष के आधार पर चुनौती देने के लिए स्वतंत्र हैं।