"इस तरह की याचिकाओं की इस अदालत में बाढ़ न लाएं": सुप्रीम कोर्ट ने पिता से अपनी बेटी के गैंगरेप और मर्डर की निष्पक्ष जांच के लिए हाईकोर्ट जाने के लिए कहा
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सोमवार को नाबालिग बेटी के अपहरण, सामूहिक बलात्कार और हत्या की अदालत की निगरानी में जांच की मांग करने वाली एक पिता की रिट याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया।
भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमाना (CJI NV Ramana) की अध्यक्षता वाली पीठ ने याचिकाकर्ता पिता को उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने की स्वतंत्रता दी।
बेंच (जिसमें जस्टिस कृष्णा मुरारी और जस्टिस हिमा कोहली) ने याचिकाकर्ता के पहले हाईकोर्ट जाने के बजाय सीधे सुप्रीम कोर्ट जाने के दृष्टिकोण के खिलाफ कड़ी टिप्पणी की।
याचिका 21 जनवरी, 2022 को उत्तर प्रदेश राज्य के बुलंदशहर जिले में एक 16 वर्षीय लड़की के सामूहिक बलात्कार और हत्या से संबंधित थी।
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील ने कहा कि याचिकाकर्ता की नाबालिग बेटी का अपहरण, सामूहिक बलात्कार और हत्या कर दी गई और माता-पिता को उसका अंतिम संस्कार करने का भी मौका नहीं दिया गया क्योंकि पुलिस ने आधी रात को जबरन शव का अंतिम संस्कार कर दिया।
पीठ ने याचिकाकर्ता से कहा कि उच्च न्यायालय के समक्ष भी यही प्रस्तुतियां दी जा सकती हैं।
अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता को उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाना चाहिए।
वकील ने कहा,
"मैं एक मजदूर हूं। मैं हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट नहीं जा सकता। मैं व्यवस्था का शिकार हूं। यूपी में पूरी तरह से अराजकता है।"
सीजेआई रमाना ने वकील से पूछा,
"इस तरह की याचिकाओं की इस अदालत में बाढ़ न लाएं, क्षमा करें। आप हाईकोर्ट में जा सकते हैं। आप सीधे सुप्रीम कोर्ट क्यों आ रहे हैं?"
पीठ ने तब देखा कि वह या तो याचिकाकर्ता को हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने या मामले को खारिज करने की स्वतंत्रता दे सकती है।
सीजेआई ने कहा,
"हम उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने की स्वतंत्रता दे सकते हैं। हर रिट याचिका पर मैं विचार नहीं कर सकता।"
वकील ने तब याचिका वापस लेने और उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने की स्वतंत्रता मांगी।
सीजेआई ने कहा,
"इसे दोबारा न दोहराएं। वापस लेने और उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने की अनुमति है।"
एडवोकेट वरिंदर कुमार शर्मा के माध्यम से दायर वर्तमान रिट याचिका के अनुसार, लड़की के पिता की शिकायतों के बावजूद पुलिस द्वारा कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं की गई।
आगे यह तर्क दिया गया कि पुलिस ने उसे अपनी बेटी के अंतिम संस्कार के अधिकारों का निर्वहन करने की अनुमति नहीं दी और पुलिस ने आधी रात को पीड़िता के शव का जबरन अंतिम संस्कार किया और पोस्टमार्टम के बारे में परिवार को सूचित नहीं किया।
याचिका में सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट के मौजूदा या सेवानिवृत्त न्यायाधीश के तहत मामले की जांच के लिए सीबीआई जांच या एसआईटी के गठन के निर्देश देने की मांग की गई है।
याचिका में आगे याचिकाकर्ता और अन्य गवाहों को पर्याप्त सुरक्षा के लिए निर्देश देने की मांग की गई है।
याचिकाकर्ता ने परिवार के सदस्यों के दाह संस्कार और अवैध हिरासत के लिए जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ अदालत की निगरानी में जांच के निर्देश देने की भी मांग की।
याचिकाकर्ता के अनुसार, ये तथ्य स्पष्ट रूप से दिखाते हैं कि निष्पक्ष जांच का कोई मौका नहीं है। इसलिए कोर्ट की निगरानी में जांच की आवश्यकता है।
याचिकाकर्ता ने प्रस्तुत किया है कि भारती तमांग बनाम यूनियन ऑफ इंडिया एंड अन्य और ज़हीरा हबीबुल्ला एच. शेख एंड अन्य बनाम गुजरात राज्य के मामलों सहित कई पूर्व अवसरों पर कथित आपराधिक अपराधों की जांच की निगरानी के लिए अदालतों द्वारा कदम उठाए गए हैं।
याचिका में पीड़िता के शरीर का गलत तरीके से अंतिम संस्कार करने के लिए प्रतिवादियों की भूमिका की जांच के लिए निर्देश मांगे गए हैं। सबूत मिटाने में जुटे अधिकारी के खिलाफ आईपीसी की संबंधित धाराओं के तहत अपराध के पंजीकरण के लिए परमादेश निर्देश देने की मांग की गई है।