डॉक्टरों की हड़ताल के दौरान आपातकालीन सेवाओं को क्यों प्रभावित किया जाना चाहिए, सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को ये कहते हुए इस साल पश्चिम बंगाल में डॉक्टरों द्वारा हड़ताल में उसके आदेश का उल्लंघन करने के लिए केंद्र और इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के खिलाफ अवमानना कार्यवाही की मांग करने वाली एक याचिका की जांच करने के लिए सहमति जताई।
मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे, जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस सूर्यकांत की पीठ ने केंद्र और आईएमए को नोटिस जारी किए हैं। अदालत ने यह भी कहा कि किसी भी परिस्थिति में गंभीर रूप से बीमार रोगियों के इलाज पर कोई समझौता नहीं किया जा सकता है।
गैर सरकारी संगठन पीपल फॉर बेटर ट्रीटमेंट द्वारा दायर अवमानना याचिका में कहा गया, "भारत में सबसे बड़ा चिकित्सा समूह IMA और स्वास्थ्य मंत्रालय नवंबर, 2014 के सुप्रीम कोर्ट के आदेश का जानबूझकर और स्पष्ट उल्लंघन और अवज्ञा के लिए उत्तरदायी हैं।"
एनजीओ का नेतृत्व ओहियो के एड्स शोधकर्ता कुणाल शाह कर रहे हैं। उन्होंने शीर्ष अदालत के 2014 के आदेश का हवाला दिया और जोर देकर कहा कि डॉक्टरों द्वारा की गई हड़ताल इसके विपरीत है।
याचिका में कहा गया है कि आईएमए पश्चिम बंगाल में डॉक्टरों के साथ एकजुटता व्यक्त करने के लिए देशव्यापी विरोध में शामिल था और इसने स्वास्थ्य सेवाओं पर प्रतिकूल प्रभाव डाला।
2014 में शीर्ष अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा था कि डॉक्टरों को किसी भी हालत में हड़ताल पर नहीं जाना चाहिए। दलीलों में कहा गया कि भारत में डॉक्टरों की हड़ताल सीधे तौर पर रोगियों को प्रभावित करती है, और आईएमए के नेताओं ने इस पर आंखें मूंद रखी हैं।
याचिका में कहा गया है, '' विशेष रूप से IMA के नेताओं द्वारा हमारी चिकित्सा व्यवस्था के प्रति अत्यधिक लापरवाह, अनैतिक और गैरकानूनी रवैया अपनाया।"
याचिका में कहा गया कि आईएमए ने इस साल जून में कोलकाता में हड़ताली डॉक्टरों के साथ एकजुटता दिखाते हुए शीर्ष अदालत के आदेशों का उल्लंघन किया और इसलिए यह एक अवमानना का कार्य है।