क्या चैरिटेबल ट्रस्ट महज इसलिए वक्फ प्रॉपर्टी बन जाता है कि इसे मुसलमान ने बनाया है? वक्फ कानून की रूपरेखा तय करेगा सुप्रीम कोर्ट
''क्या इस्लाम को मानने वाले किसी व्यक्ति द्वारा स्थापित हर चैरिटेबल ट्रस्ट अनिवार्य रूप से एक वक्फ है'' इस पहलू की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को स्पष्ट किया है कि वह केवल बॉम्बे पब्लिक ट्रस्ट अधिनियम 1950 और वक्फ अधिनियम, 1995 की रूपरेखा तय करेगा।
भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना, जस्टिस कृष्ण मुरारी और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने मामले को 10 अगस्त तक के लिए स्थगित करते हुए अपने आदेश में कहा कि महाराष्ट्र राज्य वक्फ बोर्ड की ओर से भारत के अटॉर्नी जनरल और याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे प्रत्येक मामले के तथ्यों में जाये बिना, बॉम्बे पब्लिक चैरिटेबल ट्रस्ट और वक्फ अधिनियम 1995 की रूपरेखा पर निर्णय के लिए सहमत हुए।
महाराष्ट्र राज्य वक्फ बोर्ड की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने दलील दी कि हाईकोर्ट ने अपने फैसले में वक्फ अधिनियम, 1950 के तहत वक्फ के इनकॉरपोरेशन तक सभी मुस्लिम सार्वजनिक ट्रस्टों पर बॉम्बे पब्लिक ट्रस्ट अधिनियम, 1950 लागू करने का निर्देश दिया था। उन्होंने आगे दलील दी कि हाईकोर्ट के लिए चैरिटी कमिश्नर को पंजीकृत वक्फ सहित मुस्लिम पब्लिक ट्रस्टों की निगरानी जारी रखने के लिए अधिकार क्षेत्र देना असंभव था। एजी ने यह भी तर्क दिया कि वक्फ अधिनियम, 1950 में वक्फ की परिभाषा बॉम्बे पब्लिक ट्रस्ट अधिनियम, 1950 की तुलना में व्यापक थी। संविधान के अनुच्छेद 254 के तहत असंगति के सिद्धांत को लागू करते हुए, वक्फ अधिनियम सार्वजनिक ट्रस्ट अधिनियम को ओवरराइड करेगा।
वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने दलील दी कि इस संकीर्ण मुद्दे को तय करने की आवश्यकता है कि क्या हर ट्रस्ट को वक्फ में जाना चाहिए, यदि ट्रस्ट शुरू करने वाला मुस्लिम है।
वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा,
"यह वक्फ बोर्ड और राज्य का मामला है। यह वक्फ तक सीमित होना चाहिए, केवल इसलिए कि ट्रस्ट बनाने वाला मुस्लिम है और वह ट्रस्टियों में निहित है तो आप वक्फ अधिनियम के बाहर पब्लिक चैरिटी में रहते हैं। यह संकीर्ण मुद्दा है।"
एजी और वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे की प्रस्तुतियों पर विचार करते हुए, सीजेआई ने कहा कि कोर्ट तथ्यों पर जाये बिना केवल बॉम्बे पब्लिक ट्रस्ट अधिनियम 1950 और वक्फ अधिनियम, 1995 की रूपरेखा से संबंधित कानूनी मुद्दे पर विचार करेगा।
सीजेआई ने कहा,
"अटॉर्नी जनरल और अन्य पक्ष द्वारा उठाए गए प्रश्नों पर हम पहले तय करेंगे। आइए पहले अधिनियम की रूपरेखा तय करें। व्यक्तिगत मामले, सर्वेक्षण आदि, उन मुद्दों से संबंधित नहीं थे। हम वक्फ अधिनियम की प्रयोज्यता तय करेंगे।''
आक्षेपित आदेश में, जस्टिस डीके देशमुख और जस्टिस अनूप मोहता की बेंच ने महाराष्ट्र सरकार द्वारा जारी उस परिपत्र को रद्द कर दिया था जिसके द्वारा उसने वक्फ बोर्ड का गठन किया था जो वक्फ अधिनियम के तहत राज्य में सभी मुस्लिम धार्मिक ट्रस्टों का नियंत्रण करता है। पीठ ने चैरिटी कमिश्नर को पंजीकृत वक्फ सहित मुस्लिम पब्लिक ट्रस्टों की निगरानी जारी रखने का भी निर्देश दिया था और राज्यों को ऐसे कदम उठाने की स्वतंत्रता भी दी थी, जो पब्लिक ट्रस्ट के रूप में पंजीकृत नहीं थे। इसने राज्य को सौंपी गई 2002 की सर्वेक्षण रिपोर्ट को भी अमान्य घोषित कर दिया था।
29 नवंबर, 2011 को जस्टिस अल्तमस कबीर की अध्यक्षता वाली पीठ ने हाईकोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी थी जिसमें बोर्ड को "दोषपूर्ण" मानते हुए भंग कर दिया गया था।
सुप्रीम कोर्ट ने 11 मई, 2012 को वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में शामिल उन सभी लोगों को वक्फ संपत्तियों को अलग करने और/या इस कोर्ट के समक्ष लंबित कार्यवाही के दौरान ऋणग्रस्त करने से रोक दिया था।
कोर्ट ने आगे आदेश दिया,
"वक्फ संपत्तियों के संबंध में, मुसलमानों द्वारा बनाए गए ट्रस्टों से अलग, चैरिटी कमिश्नर, मुंबई सहित सभी संबंधित (अधिकारी) ऐसी वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में शामिल किसी भी व्यक्ति को अपने प्रबंधन के तहत किसी भी संपत्ति को इस कोर्ट के समक्ष लंबित विशेष अनुमति याचिकाओं में निर्णय दिये जाने तक सम्पत्ति को ऋणग्रस्त करने या हटाने की अनुमति नहीं देंगे।''
केस टाइटल: महाराष्ट्र स्टेट बोर्ड ऑफ वक्फ बनाम शेख यूसुफ भाई चावला और अन्य। विशेष अनुमति याचिका (सिविल) संख्या- 31288-31290/2011