एफआईआर और सीआरपीसी की धारा 164 के तहत बाद के बयान में विसंगतियां डिस्चार्ज करने का आधार नहीं: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा कि एफआईआर (FIR) और सीआरपीसी (CrPC) की धारा 164 के तहत बाद के बयान के बीच विसंगतियां ट्रायल की शुरुआत के बिना आरोप मुक्त (Discharge) करने का आधार नहीं हो सकती हैं।
जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस जेके माहेश्वरी की पीठ ने कहा कि ट्रायल के दौरान इस तरह की विसंगतियां बचाव के रूप में इस्तेमाल की जा सकती हैं।
इस मामले में, आरोपी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की विभिन्न धाराओं के तहत आरोप पत्र दायर किया गया है, जिसमें धारा 354 और 376 और यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम, 2012 की धारा 5 और 6 शामिल हैं।
उसके खिलाफ आरोप लगाया गया है कि उसने अभियोजक का यौन शोषण किया।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने निचली अदालत के उस आदेश के खिलाफ उसकी रिवीजन याचिका खारिज कर दी थी जिसमें उसकी रिवीजन याचिका खारिज कर दी गई थी।
शीर्ष अदालत के समक्ष आरोपी ने तर्क दिया कि प्राथमिकी आईपीसी की धारा 376 के तहत अपराध का खुलासा नहीं करती है।
अदालत ने कहा कि प्राथमिकी प्रारंभिक दस्तावेज है। दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 164 के तहत अभियोक्ता द्वारा दिए गए बयान में आरोप लगाया गया है जो आईपीसी की धारा 376 के तहत अपराध के समान है।
पीठ ने कहा,
"एफआईआर और सीआरपीसी की धारा 164 के तहत बाद के बयान के बीच विसंगतियां एक बचाव हो सकती हैं। हालांकि, विसंगतियां ट्रायल शुरू किए बिना डिस्चार्ज का आधार नहीं हो सकती हैं।"
इसके साथ ही बेंच ने डिस्चार्ज करने की मांग वाली याचिका खारिज करने के आदेश को बरकरार रखा।
केस का नाम: हज़रत दीन बनाम उत्तर प्रदेश राज्य
प्रशस्ति पत्र: 2022 लाइव लॉ (एससी) 134
केस नं.| दिनांक: एसएलपी (सीआरएल) 9552/2021 | 6 जनवरी 2022
कोरम: जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस जेके माहेश्वरी
वकील: सीनियर एडवोकेट एस.जी. हसनैन, एओआर आफताब अली खान
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