दिल्ली मेट्रो चौथे चरण का विस्तार: यह रिपोर्ट स्वीकार नहीं की जाएगी कि पेड़ वन नहीं हैं, मंजूरी की जरूरत: सुप्रीम कोर्ट

Update: 2021-11-12 07:54 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (11 नवंबर) को दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोरेशन (डीएमआरसी) के चौथे चरण की विस्तार योजना के लिए पेड़ों की कटाई पर अंतरिम आवेदन पर सुनवाई करते हुए मौखिक रूप से कहा कि हालांकि विकास रोका नहीं जा सकता है लेकिन पर्यावरण और विकास के बीच संतुलन की आवश्यकता है।

जस्टिस एलएन राव, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने डीएमआरसी के आवेदन में आदेश सुरक्षित रख लिया है।

डीएमआरसी की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, "मान लीजिए कि मुझे वन संरक्षण अधिनियम के तहत मंजूरी लेनी है, तो यह डेढ़ साल का समय लेगा। परियोजना की कीमत में वृद्धि होगी। अगर वे (जो लोग परियोजना का विरोध करते हैं) वास्तव में विलासिता चाहते हैं तो उन्हें परियोजना की बढ़ी हुई राशि जमा करने दें।"

जिसके जवाब में पीठासीन जज जस्टिस राव ने कहा, "आपको मंजूरी लेनी होगी मिस्टर सॉलिसिटर जनरल। हम यूनियन ऑफ इंडिया को मंजूरी देने के लिए समय देंगे। हम सीईसी द्वारा किए गए इस अनुरोध को स्वीकार नहीं करने जा रहे हैं कि सभी पेड़ वन नहीं हैं। हम इसे स्वीकार नहीं करने जा रहे हैं । बस इस बिंदु के प्रभाव को स्वीकार किया जा रहा है। कौन यह पता लगाने वाला है कि पेड़ प्राकृतिक है या लगाया गया है। यह अराजकता पैदा करने वाला है।"

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, "जिस तरह से जीएनसीटीडी ने विरोध किया है, भारत सरकार ने मेट्रो का उसका वैसे विरोध नहीं किया है।"

डीएमआरसी ने जनकपुरी-आरके आश्रम, मौजपुर-मजलिस पार्क और एरोसिटी-तुगलकाबाद कॉरिडोर के विस्तार कार्य के लिए 10,000 से अधिक पेड़ों की पहचान की थी और उन्हें काटने के लिए अपेक्षित अनुमति नहीं मिली। उसने आरोप लगाया है कि पेड़ों को काटने के लिए आवश्यक अनुमति की कमी के कारण इसका निर्माण कार्य रुका हुआ था।

प्रस्तावित गलियारा सबसे व्यवहार्य पाया गया है, और एक बड़ी आबादी को कवर करेगा: तुषार मेहता

डीएमआरसी की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि सीईसी की रिपोर्ट में कहा गया है कि यह वन भूमि नहीं है। सीईसी द्वारा प्रस्तुत 10 अगस्त, 2021 की रिपोर्ट सामग्री का उल्लेख करते हुए एसजी ने तर्क दिया कि परियोजना जनहित में थी, जिसे एरोसिटी के घनी आबादी वाले क्षेत्र को कवर करना था।

उन्होंने आगे कहा कि मेट्रो टनेल्स के निर्माण के लिए फॉरेस्ट लैंड, मॉर्फोलॉजिकल रीच एरिया और डीम्ड फॉरेस्ट पर गतिविधियों को करने के लिए केंद्र और दिल्ली सरकार को समय-समय पर अनुमति देने के आदेश जारी किए गए थे।

एसजी ने यह भी प्रस्तुत किया कि प्रस्तावित परियोजना के कारण, आईजी एयरपोर्ट से दिल्ली तक वाहनों का यातायात कम हो जाएगा और डीडीए द्वारा बनाई गई खुली भूमि पर भरपाई के रूप में पौधे लगए जाएंगे। उन्होंने आगे कहा कि तुलसीदास गांव द्वारका को संरक्षित वन के रूप में अधिसूचित किया जाएगा।

मेट्रो से आप 21 मिनट में नई दिल्ली से एयरपोर्ट पहुंच सकते हैं: एडवोकेट एडीएन राव

एमिकस क्यूरी ने प्रस्तुत किया कि यदि डीएमआरसी ने अंडरटेकिंग दिया है कि अदालत को यह तय करने दें कि 5.33 किमी का क्षेत्र वन था या गैर-वन और अदालत ने पाया कि यह वन क्षेत्र है तो वन मंजूरी, प्रतिपूरक वनीकरण और पैसे के भुगतान की आवश्यकता होगी।

राव ने कहा, ''इस पैसे के भुगतान के लिए दिल्ली को बंधक नहीं रख सकता, जो गंभीर वायु प्रदूषण का सामना कर रही है। मेट्रो क्यों? मेट्रो को बड़ी संख्या में यात्रियों की जरूरत है। इससे ट्रैफिक कम हुआ है। 21 मिनट में आप एयरपोर्ट पहुंच सकते हैं।"

हम मेट्रो के खिलाफ नहीं हैं लेकिन चाहते हैं कि डीएमआरसी कानून का पालन करे: एडवोकेट चिराग एम श्रॉफ

जीएनसीटीडी की ओर से पेश एडवोकेट चिराग एम श्रॉफ ने कहा, हमे मेट्रो पर आपत्ति नहीं है। हम चाहते हैं कि डीएमआरसी पेड़ों की कटाई के लिए आवश्यक अनुमति प्राप्त करने के उद्देश्य से कानून का पालन करे।

यह तर्क देते हुए कि केंद्र और डीएमआरसी के बीच हितों का टकराव था, वकील ने कहा कि डीएमआरसी का प्रतिनिधित्व केंद्र सरकार के वकील द्वारा नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि डीएमआरसी ने केवल दिल्ली सरकार द्वारा जारी नोटिस की ओर इशारा किया था और कई दस्तावेजों को छुपाया था।

डीएमआरसी की याचिका कानूनी प्रक्रिया को शॉर्ट सर्किट करने जैसी: सीनियर एडवोकेट राजीव दत्ता

डॉ पीसी प्रसाद और एडवोकेट आदित्य प्रसाद की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट ने दलीलें दी कि डीएमआरसी की याचिका अनुमति की कानूनी प्रक्रिया को शॉर्ट सर्किट करने के लिए है, जिसका विभिन्न कानूनों के तहत पेड़ों की कटाई के संबंध में पालन किया जाना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि डीएमआरसी ने अतीत में भी इसका पालन किया था।

डीएमआरसी की इस दलील का विरोध करने के लिए कि प्रस्तावित परियोजना से यातायात कम होगा, उन्होंने तर्क दिया कि मेट्रो के पहले के तीन चरणों ने यातायात कम किया था लेकिन प्रदूषण नहीं किया था।

सुनवाई के दौरान सीनियर एडवोकेट ने निम्नलिखित आपत्तियां उठाईं-

-सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति ने उनकी आपत्तियों पर विचार नहीं किया। हालांकि वन विभाग द्वारा दायर की गई आपत्तियां 29 मई, 2021 की थीं और सीईसी द्वारा दायर की गई रिपोर्ट 13 मई, 2021 की थी।

-दिल्ली के मुख्य वन्यजीव वार्डन को सीईसी ने बिल्कुल भी आमंत्रित नहीं किया था। यहां बड़ी मात्रा में वन्यजीव, पक्षी, पर्यावरण संवेदनशील क्षेत्र हैं जो अभी भी मौजूद हैं।

-दिल्ली वृक्ष संरक्षण अधिनियम, 1994 के तहत अनुमति मांगे जाने तक किसी भी निर्माण की अनुमति नहीं है।

यह बताते हुए कि चरण में कुछ क्षेत्र गंभीर रूप से प्रदूषित थे, सीनियर एडवोकेट ने कहा कि नजफगढ़ नाले को केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा गंभीर रूप से प्रदूषित घोषित किया गया है। एनजीटी द्वारा गठित सीआर बाबू कमेटी का भी जिक्र किया गया। उन्होंने यह भी प्रस्तुत किया था कि डीएमआरसी ने क्षेत्र के परिवेश एआईक्यू मानकों को ध्यान में नहीं रखा था।

केस शीर्षक : In Re टीएन गोदावर्मन थिरुमुलपाद बनाम यूनियन ऑफ इंडिरया| डब्ल्यूपी (सी) 202/1995

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