दिल्ली हाईकोर्ट ने PFI की याचिका को विचार योग्य माना, केंद्र को नोटिस जारी किया

Update: 2025-10-13 06:32 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार (13 अक्टूबर) को पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) की उस याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया, जिसमें संगठन पर लगाए गए पांच साल के प्रतिबंध की पुष्टि करने वाले गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) ट्रिब्यूनल के आदेश को चुनौती दी गई।

हाईकोर्ट ने आदेश देते हुए यह महत्वपूर्ण निर्णय लिया कि प्रतिबंध की पुष्टि करने वाले आदेश को चुनौती देने वाली PFI की याचिका हाईकोर्ट के समक्ष विचार योग्य है।

यह ध्यान देने योग्य है कि केंद्रीय गृह मंत्रालय ने UAPA, 1967 के तहत PFI और उससे जुड़े संगठनों को 'गैरकानूनी संगठन' घोषित करते हुए अधिसूचना जारी की थी।

चीफ जस्टिस डी.के. उपाध्याय और जस्टिस तुषार राव गेडेला की खंडपीठ ने आदेश तय करते हुए कहा,

"उपर्युक्त को देखते हुए हम यह मानते हैं कि इस न्यायालय के पास अधिनियम की धारा 4 के तहत पारित ट्रिब्यूनल के आदेश के विरुद्ध अनुच्छेद 226 के तहत याचिका पर सुनवाई करने का क्षेत्राधिकार है। इसलिए हम तात्कालिक याचिका को विचार योग्य मानते हैं। नोटिस जारी किया जाए। छह सप्ताह के भीतर काउंटर (जवाब) दाखिल करें। जवाबी हलफनामे के लिए दो सप्ताह का समय दिया जाए। मामले को 20 जनवरी को सूचीबद्ध किया जाए।"

PFI ने इससे पहले प्रतिबंध के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी थी और संगठन को हाईकोर्ट जाने का निर्देश दिया था।

प्रतिबंध की पृष्ठभूमि

सितंबर, 2022 में गृह मंत्रालय ने एक राजपत्र अधिसूचना प्रकाशित की थी, जिसमें PFI और उसके विभिन्न सहयोगियों, या मोर्चों को UAPA के तहत 'गैरकानूनी संगठन' घोषित किया गया था। यह निर्णय आतंकी संगठनों से कथित संबंधों और आतंकी गतिविधियों में शामिल होने के आरोपों पर आधारित था।

यह कार्रवाई PFI और उसके सदस्यों के खिलाफ दो बड़े देशव्यापी तलाशी, हिरासत और गिरफ्तारी अभियानों के बाद हुई थी। UAPA की धारा 3(1) के तहत यह प्रतिबंध पाँच साल की अवधि के लिए तत्काल प्रभाव से लागू किया गया था। प्रतिबंधित सहयोगियों की सूची में रिहैब इंडिया फाउंडेशन (RIF), कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया (CFI), ऑल इंडिया इमाम्स काउंसिल (AIIC) और कई अन्य संगठन शामिल थे।

मार्च, 2023 में दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस दिनेश कुमार शर्मा के नेतृत्व वाले UAPA ट्रिब्यूनल ने PFI और उससे जुड़ी संस्थाओं पर केंद्र सरकार के प्रतिबंध को बरकरार रखा था। आतंकवाद विरोधी कानून के प्रावधानों के अनुसार एकल हाईकोर्ट जज वाले इस ट्रिब्यूनल को सरकार की इस घोषणा की वैधता पर फैसला करना था।

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