COVID-19 : ईरान में फंसे 250 तीर्थयात्रियों को हालात में सुधार होने तक वापस लाने के आदेश नहीं दे सकते, सुप्रीम कोर्ट ने कहा 

Update: 2020-04-01 11:26 GMT

ईरान में फंसे 850 शिया तीर्थयात्रियों को निकालने की याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि ईरान में 250 फंसे हुए भारतीय नागरिकों की स्थिति की भारतीय दूतावास द्वारा कड़ी निगरानी की जाएगी और वर्तमान में उन्हें वापस लाने का फैसला नहीं लिया जा सकता है। इन सभी को कोरोना वायरस पॉजिटिव पाया गया है। 

 केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि 850 तीर्थयात्रियों में से अधिकांश को भारत ले आया गया है और बाकी 250 के आसपास तीर्थयात्रियों को हालात में सुधार होने के बाद ही वापस लाया जा सकता है। 

सुप्रीम कोर्ट ने स्थिति में सुधार होते ही फंसे 250 तीर्थयात्रियों को वापस लाने के लिए कदम उठाने को कहा है। 

न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एमआर शाह ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए सुनवाई की। 

याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील संजय हेगड़े ने कहा कि इन 250 को वापस लाया जा सकता है और लेह में रखा जा सकता है लेकिन केंद्र के लिए पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जवाब दिया कि कई लोग जो पहले लेह में हैं और उनमें COVID -19 के  लक्षणों को देखा गया है।  इन 250 को अब वापस नहीं लाया जा सकता है और एक बार स्थिति में सुधार होने के बाद उन्हें भारत में एयरलिफ्ट किया जा सकता है। 

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा,

"हम उनके प्रत्यावर्तन के पक्ष में एक आदेश जारी करेंगे, जब उनकी स्वास्थ्य की स्थिति में सुधार होगा, ऐसा आदेश जारी करेंगे आपके ( हेगड़े के) मुव्वकिलों के सर्वोत्तम हित में हो।

दरअसल सुप्रीम कोर्ट मुस्तफा एमएच द्वारा अपने रिश्तेदारों को वापस लाने की याचिका पर सुनवाई कर रहा है। केंद्र ने कहा कि याचिकाकर्ता के रिश्तेदारों सहित अधिकांश तीर्थयात्रियों को भारत वापस ले आया गया है। 

 27 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने दुनिया भर में COVID-19  महामारी के चलते स्वास्थ्य आपातकाल के बीच,ईरान के  क्यूम में फंसे लगभग 850 भारतीय नागरिकों को निकालने के लिए केंद्र से निर्देश मांगने वाली याचिका पर नोटिस जारी किया था।

याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील संजय हेगड़े ने कहा था कि तीर्थयात्रियों के रूप में ईरान जाने वाले 250 से अधिक लोग "ज्यादातर गरीब वित्तीय पृष्ठभूमि से हैं" और उन्हें इस महीने की शुरुआत में घर लौटना था लेकिन महामारी के चलते वो अपनी यात्रा से लौट नहीं सके। 

उक्त व्यक्तियों ने दिसंबर 2019 से शुरू होने वाली अलग-अलग तारीखों पर अपनी यात्रा शुरू की। यात्रा तीन महीने की अवधि के लिए निर्धारित थी और तीर्थयात्रियों का 26 फरवरी से शुरू होने वाली कई तारीखों पर लौटने का कार्यक्रम था। याचिकाकर्ता के रिश्तेदार 6 मार्च को लौटने वाले थे।

 याचिका में कहा गया 

"ऐसे समय तक ऐसे तीर्थयात्रियों को उचित स्वास्थ्य / चिकित्सा सुविधाएं और उचित आवास प्रदान करने के लिए एक वैकल्पिक प्रार्थना है जब तक उत्तरदाता उन्हें भारत में सुरक्षित रूप से बाहर निकालने की स्थिति में ना हों।" 

फंसे हुए नागरिकों की दुर्दशा का वर्णन करते हुए, यह कहा गया कि "अधिकांश तीर्थयात्रियों के पास धन खत्म हो चुका है और वो स्थानीय लोगों के परोपकार पर निर्भर हैं।" 

याचिकाकर्ता सोशल मीडिया के माध्यम से लगातार SoS वीडियो और संदेश भेजते रहे हैं लेकिन उन्हें कोई राहत नहीं मिली है।

यह भी तर्क दिया गया कि 200 से अधिक फंसे हुए तीर्थयात्रियों को 4-5 के समूहों में होटल के कमरों में समायोजित किया गया है, जो "एक गंभीर स्वास्थ्य खतरा है और ऐसे तीर्थयात्रियों के लिए विनाशकारी परिणाम हो सकते हैं। " आगे कहा गया है कि ये  ब्ल्यूएचओ के साथ-साथ अन्य स्वास्थ्य संगठनों द्वारा निर्धारित मानकों का व्यापक उल्लंघन है।

चीन, इटली और ईरान में तीर्थयात्रियों को निकालने के उपायों के संबंध में केंद्र सरकार के प्रयासों की सराहना करते हुए,याचिकाकर्ता ने इस बात पर प्रकाश डाला कि फंसे हुए नागरिक फिलहाल उचित स्वास्थ्य देखभाल या निकासी के उपाय प्राप्त करने में असमर्थ रहे हैं।

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