POCSO अधिनियम के संशोधन को पूर्व प्रभावी लागू कर इस अधिनियम के संशोधन से पहले हुए अपराध के लिए मौत की सज़ा नहीं दी जा सकती : सुप्रीम कोर्ट
Supreme Court of India
सुप्रीम कोर्ट ने बाल यौन अपराध संरक्षण अधिनियम (POCSO) 2012 के तहत पूर्व प्रभावी (retrospective) लागू कर मौत की सज़ा देने को मान्य करने से इनकार कर दिया।
न्यायमूर्ति एसके कौल और न्यायमूर्ति केएम जोसफ़ की बेंच एक विशेष अनुमति याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया। इसमें ट्रायल कोर्ट के मौत की सज़ा को हाईकोर्ट ने आजीवन कारावास में बदल दिया लेकिन कहा कि उसे मृत्युपर्यंत जेल में रहना होगा।
वक़ील बिनना माधवन ने माना कि POCSO अधिनियम के तहत मौत की सज़ा को 6 अगस्त 2019 से शामिल कर लिया गया जबकि यह अपराध 18/19.6.2019 को हुआ था।
उन्होंने आग्रह किया कि संसद की मंशा को ध्यान में रखते हुए इस क़ानून को पूर्व प्रभाव से लागू किया जाना चाहिए इसके बावजूद कि इसकी प्रकृति इस प्रावधान को अगले प्रभाव से लागू किए जाने की है।
बेंच ने कहा,
"हम वक़ील की दलील के किसी भी पक्ष से सहमत नहीं हो सकते। हम यह नहीं समझ रहे हैं कि कैसे इस क़ानून को पूर्व प्रभाव से लागू किया जा सकता है जबकि सज़ा आगामी समय से चलनी है और यही तार्किक भी है। वैसे भी, अंतिम सांस तक नहीं छोड़े जाने की सज़ा अपने आप में इतनी दंडात्मक है कि यह समाज को संकेत देने के लिए काफ़ी है और सिर्फ़ मौत की सज़ा से ही समाज को संकेत नहीं दिया जा सकता।"
पीठ ने कहा,
"हमारी राय में हाईकोर्ट का मृत्युपर्यंत आजीवन कारावास की सजा देना सही है, यह अदालत संविधान के अनुच्छेद 136 के अधीन सिर्फ़ इसे मौत की सज़ा जो ट्रायल कोर्ट ने दी है, उसमें बदलने के लिए इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकता।"
POCSO (संशोधन) अधिनियम, 2019 के द्वारा सज़ा के रूप में मौत की सज़ा को भी शामिल कर लिया गया।
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