[डकैती का अपराध] 5 से कम व्यक्तियों को सजा देने के लिए ट्रायल कोर्ट को इस निष्कर्ष पर पहुंचना होगा कि अपराध में 5 या अधिक व्यक्तियों की संलिप्तता थी: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Update: 2020-07-13 07:19 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गुरुवार को एक मामले में यह साफ़ किया कि अगर आईपीसी की धारा 395/397 के तहत 5 से कम व्यक्तियों को सजा दी जाती है, तो ट्रायल कोर्ट को इस निष्कर्ष पर पहुंचना होगा कि डकैती के अपराध में 5 या अधिक व्यक्तियों की संलिप्तता थी। इस तरह की फाइंडिंग/खोज के अभाव में, उपरोक्त धाराओं के तहत कोई भी सजा नहीं दी जा सकती।

न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी की पीठ ने यह आदेश सुनाते हुए, श्री डी. सी. श्रीवास्तव, न्यायाधीश विशेष न्यायालय (डकैती), कानपुर देहात द्वारा सत्र ट्रायल संख्या 467 ऑफ़ 1981 (राज्य बनाम बलबीर और अन्य) में सुनाये गए निर्णय और आदेश को पलट दिया जिसमे अपीलकर्ताओं को डकैती (395 एवं 395 r/w 397) के अपराध के लिए दोषी ठहराया गया था।

क्या था यह मामला

अभियोजन का मामला यह था कि 26/27-जून-1981 की रात में, अपीलकर्ताओं द्वारा चार अन्य लोगों के साथ, ग्राम बदरा माजरा नकौठिया, पुलिस स्टेशन काकवन, कानपूर देहात जिला में तीन घरों में डकैती की गई। लगभग 11:00 बजे चार डकैतों ने पहले प्रथम सूचनाकर्ता के आंगन में कूदकर दरवाजा खोला, जिससे अन्य डकैत घर में प्रवेश कर सके।

इसके पश्च्यात, उन्होंने घर में मौजूद लोगों की पिटाई शुरू कर दी और सामान लूट लिया। प्रथम सूचनाकर्ता के घर में डकैती करने के बाद सभी ने उसी गांव में ओछी लाल और गंगा राम के घरों को लूट लिया। उन्होंने डकैती के दौरान बन्दूक का भी इस्तेमाल किया।

अभियोजन के अनुसार, लालटेन और टोर्च की रोशनी में गवाहों ने ज्ञात डकैतों को देखा और तीन ज्ञात डकैतों को भी पहचान लिया, जो कि अपीलकर्ता हैं।

ट्रायल कोर्ट का निर्णय

ट्रायल कोर्ट ने सबूतों और अन्य सामग्री पर विचार के बाद अपीलकर्ताओं को दोषी ठहराया, जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है। हालाँकि, ट्रायल अदालत द्वारा ऐसा कुछ भी निष्कर्ष नहीं निकाला गया कि इस मामले में 5 या अधिक व्यक्तियों की संलिप्तता थी (इसके बावजूद 3 अपीलकर्ताओं को 395/397 के अपराध के लिए दोषी ठहराया गया)।

अंततः वर्ष 1981 के सेशन ट्रायल नंबर 467 (राज्य बनाम बलबीर और अन्य) में अपीलकर्ता, बलबीर और लाला राम को धारा 395 आईपीसी (डकैती के लिए दण्ड) के तहत और अपीलकर्ता, मोहर पाल उर्फ छकौरी को धारा 395 r/w 397 आईपीसी (मृत्यु या घोर उपहति कारित करने के प्रयत्न के साथ लूट या डकैती) के तहत दोषी ठहराया गया और अपीलकर्ता, बलबीर और लाला राम को 5 साल सश्रम कारावास की सजा सुनाई गई और अपीलकर्ता, मोहर पाल उर्फ छकौरी को 7 साल सश्रम कारावास की सजा सुनाई गई।

हाईकोर्ट का मत

दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 374 (Cr.PC) के तहत यह आपराधिक अपील, 3 अपीलकर्ताओं, अर्थात् बलबीर, मोहर पाल उर्फ छकौरी और लाला राम द्वारा सत्र परीक्षण संख्या 467 ऑफ़ 1981 (राज्य बनाम बलबीर और अन्य) के मामले में पारित किये निर्णय और आदेश के खिलाफ दायर की गई।

बचाव पक्ष का तर्क था कि ट्रायल कोर्ट ने धारा 395 और 397 आईपीसी के तहत अपीलकर्ताओं को गलत तरीके से दोषी ठहराया है, जो कि संख्या में 3 ही हैं, और वे 5 व्यक्तियों से कम हैं, जो कि धारा 391 आईपीसी के अनुसार डकैती के अपराध के लिए एक अनिवार्य शर्त है।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपीलकर्ताओं की अपील को अनुमति दी। अदालत द्वारा अपीलकर्ताओं को आरोपों से बरी करते हुए उच्चतम न्यायालय द्वारा सुनाये गए दो निर्णयों पर भरोसा किया गया - राज कुमार उर्फ राजू बनाम उत्तरांचल राज्य (अब उत्तराखंड) [(2008) 11 एससीसी 709] और मनमीत सिंह उर्फ गोल्डी बनाम पंजाब राज्य [(2015) 7 एससीसी 167]।

दरअसल, राज कुमार उर्फ राजू बनाम उत्तरांचल राज्य (अब उत्तराखंड) [(2008) 11 एससीसी 709] के मामले में यह कहा गया था कि डकैती के अपराध की सजा के लिए, 5 या अधिक व्यक्ति होने चाहिए (जोकि धारा 391 की एक अनिवार्य शर्त है)। अदालत ने इस मामले में आगे यह कहा था कि इस तरह की खोज के अभाव में, एक अभियुक्त को डकैती या उससे सम्बंधित अपराध के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता है।

हालाँकि, किसी दिए गए मामले में, ऐसा हो सकता है कि पांच या अधिक व्यक्ति हों और पांच या अधिक व्यक्तियों की मौजूदगी का तथ्य या तो विवादित नहीं है या स्पष्ट रूप से स्थापित है, लेकिन अदालत उन लोगों की पहचान दर्ज करने में सक्षम नहीं हो पाती है, जिनके बारे में यह कहा जा रहा है कि उन्होंने डकैती की है और अदालत उन्हें दोषी नहीं ठहरा पाती है और उन्हें यह कहते हुए दोषमुक्त किया जाता है कि उनकी पहचान स्थापित नहीं है।

ऐसे मामले में, पांच से कम व्यक्तियों की सजा - या यहां तक कि एक व्यक्ति को डकैती के अपराध के लिए दोषी ठहराया जा सकता है। लेकिन इस तरह की खोज के अभाव में, पांच से कम व्यक्तियों को इन धाराओं के अंतर्गत दोषी नहीं ठहराया जा सकता है।

राज कुमार उर्फ राजू बनाम उत्तरांचल राज्य [(2008) 11 एससीसी 709] के मामले में, पूर्व में डकैती के अपराध में 6 आरोपी के सम्मिलित होने का दावा था, उन 6 अभियुक्तों में से, 2 को ट्रायल कोर्ट ने बिना यह टिपण्णी देते हुए बरी कर दिया, कि हालांकि 6 लोगों द्वारा डकैती का अपराध किया गया था, परन्तु 2 आरोपियों की पहचान नहीं की जा सकी इसलिए उन्हें बरी किया जा रहा है। वास्तव में, इन 2 आरोपियों को बिना इस टिपण्णी के अदालत ने बस बरी कर दिया।

इस मामले में अदालत ने यह राय दी कि, इसलिए, तय कानून के अनुसार, 4 व्यक्तियों को डकैती के अपराध के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता है, क्योंकि यह संख्या 5 से कम है, जो डकैती के कमीशन के लिए एक अनिवार्य शर्त है (धारा 391 आईपीसी के अनुसार)।

चूँकि राज कुमार उर्फ राजू बनाम उत्तरांचल राज्य (अब उत्तराखंड) [(2008) 11 एससीसी 709] के मामले का अनुसरण मनमीत सिंह उर्फ गोल्डी बनाम पंजाब राज्य [(2015) 7 एससीसी 167] के मामले में किया गया है और इसीलिए इस मामले में भी समान निष्कर्ष अदालत द्वारा निकाला गया।

मौजूदा मामले में आगे इलाहाबाद हाईकोर्ट ने देखा कि,

"अगर आईपीसी की धारा 395/397 के तहत पांच से कम व्यक्तियों को सजा दी जाती है, तो ट्रायल कोर्ट को इस निष्कर्ष पर पहुंचना होगा कि अपराध में पांच या अधिक व्यक्तियों की संलिप्तता थी। इस तरह की फाइंडिंग के अभाव में,  उपरोक्त धाराओं के तहत कोई भी सजा नहीं दी जा सकती थी।

ट्रायल कोर्ट ने इस संबंध में इस तरह की कोई खोज दर्ज नहीं की कि अपराध में 5 या 5 से अधिक व्यक्तियों की संलिप्तता थी। इस फैसले में बस इतना कहा गया था कि 'मेरे सामने मुकदमे का सामना करने वाले तीन आरोपी भी डकैतों के साथ थे, जिन्होंने राज कुमार के घर में डकैती की' और 'अभियोजन ने सफलतापूर्वक स्थापित किया है कि तीनों अभियुक्तों ने घटना की रात में राज कुमार के घर डकैती की।"

आगे हाईकोर्ट ने कहा कि

"मेरी राय में, उपरोक्त उल्लिखित निष्कर्ष, यह निष्कर्ष निकालने के लिए पर्याप्त नहीं है कि अपराध में पांच या अधिक व्यक्ति शामिल थे और यह पर्याप्त नहीं कि अपीलकर्ताओं को दोषी ठहराया जा सके, जो कि संख्या में तीन हैं।"

उपरोक्त के मद्देनजर, अदालत ने यह माना कि वर्तमान मामले में अभियोजन पक्ष पूरी तरह से, या तो अपराध के कमीशन में पांच या अधिक व्यक्तियों की भागीदारी थी यह साबित करने में या उनकी पहचान क्या थी यह स्थापित करने में विफल रहा है।

केस विवरण

केस नंबर: क्रिमिनल अपील नंबर 648 ऑफ़ 1983

केस शीर्षक: बलबीर एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य

कोरम: न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी

आदेश की प्रति डाउनलोड करने के लिए क्लिक करें



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