'ऑनर किलिंग का स्पष्ट मामला': सुप्रीम कोर्ट ने हत्या का आरोप लगाया, अपराध को आंकने के लिए यूपी कोर्ट की आलोचना की

Update: 2025-04-18 04:59 GMT
ऑनर किलिंग का स्पष्ट मामला: सुप्रीम कोर्ट ने हत्या का आरोप लगाया, अपराध को आंकने के लिए यूपी कोर्ट की आलोचना की

सुप्रीम कोर्ट ने ऑनर किलिंग के मामले में गलत तरीके से "हत्या" के बजाय "गैर इरादतन हत्या" का आरोप लगाने के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट और ट्रायल कोर्ट पर नाराजगी जताई।

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की बेंच अय्यूब अली नामक याचिकाकर्ता की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसके 26 वर्षीय बेटे की उसकी प्रेमिका के परिवार के सदस्यों ने कथित तौर पर लाठी-डंडों से पीट-पीटकर हत्या कर दी थी।

याचिकाकर्ता ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी, जिसमें पुलिस को भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 304 के तहत गैर इरादतन हत्या का कमतर आरोप लगाने की अनुमति दी गई।

न्यायालय ने हाईकोर्ट और ट्रायल कोर्ट का वह निर्णय खारिज कर दिया, जिसमें IPC की धारा 302 के तहत हत्या के अपराध के लिए आरोप के बजाय IPC की धारा 304 के तहत आरोप लगाने का निर्णय लिया गया। न्यायालय ने मौखिक रूप से कहा कि यह "ऑनर किलिंग का स्पष्ट मामला" है, क्योंकि मृतक और उसका प्रेमी अलग-अलग धर्मों के थे। परिणामस्वरूप, उन्हें प्रेमी के परिवार के क्रोध का सामना करना पड़ा।

जब राज्य के वकील ने तथ्यों को समझाने की कोशिश की और कहा कि मृतक को मारने का कोई इरादा नहीं है तो सीजेआई ने जोर देकर कहा - "क्या समाज में किसी को पसंद करना अपराध है? क्या उन्हें अलग-अलग धर्मों से संबंधित होने के कारण छिपना चाहिए? किसी को लाठी से पीटा जाता है और मारने का कोई इरादा नहीं होता?"

खंडपीठ ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट की जांच करने पर पाया कि 26 वर्षीय मृतक जिया उर रहमान को 14 चोटें आई थीं और मौत का कारण सदमा और रक्तस्राव होना था।

न्यायालय ने याचिकाकर्ता के इस तर्क पर गौर किया कि मृतक के प्रेमी के परिवार के सदस्यों ने उसे मारने के इरादे से लाठी-डंडों से पीटा था और यह ऑनर किलिंग का मामला था।

न्यायालय ने आगे कहा,

"हमें आश्चर्य है कि आरोप पत्र IPC की धारा 304 के तहत क्यों दाखिल किया गया। उसके बाद आरोप तय करते समय ट्रायल कोर्ट ने धारा 304 के तहत आरोप लगाया।"

न्यायालय ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने तर्क दिया कि आरोप धारा 304 के तहत लगाया जाएगा न कि धारा 302 के तहत, क्योंकि मृतक को पीटने के लिए किसी धारदार वस्तु का इस्तेमाल नहीं किया गया। न्यायालय ने इसके बाद हाईकोर्ट और ट्रायल कोर्ट के निर्णयों को खारिज कर दिया और कहा कि "आईपीसी की धारा 34 के साथ धारा 302 के तहत नया आरोप लगाया जाएगा और मुकदमा उसी के अनुसार आगे बढ़ेगा।"

खंडपीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि यहां की गई टिप्पणियों से मामले की सुनवाई प्रभावित नहीं होगी। खंडपीठ ने आगे उत्तर प्रदेश राज्य को याचिकाकर्ता से बात करने के बाद मामले में एक विशेष अभियोजक नियुक्त करने का निर्देश दिया। उक्त कार्य 6 सप्ताह की अवधि के भीतर पूरा किया जाना है।

अदालत ने इस संबंध में उत्तर प्रदेश राज्य के मुख्य सचिव से अनुपालन रिपोर्ट भी मांगी।

केस टाइटल: अय्यूब अली बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य। | एसएलपी (सीआरएल) नंबर 13433/2024

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