महिला शादी का वादा करके यौन संबंध बनाए और संबंध तोड़ दे तो क्या यह बलात्कार होगा? सुप्रीम कोर्ट में याचिका
सुप्रीम कोर्ट में आईपीसी की धारा 420 को जेंडर न्यूट्रल बनाने के लिए एक याचिका दायर की गई है। नागराजू के द्वारा एक विशेष अवकाश याचिका दायर करके कानून के कुछ महत्वपूर्ण सवालों के जवाब मांगे गए हैं, जिनमें यह सवाल प्रमुख है कि यदि कोई महिला शादी का वादा करके यौन संबंध बनाए और फिर लंबे रिश्ते के बाद संबंध तोड़ दे तो क्या यह बलात्कार होगा?
प्रश्न इस तरह हैं-
* 1. क्या भारतीय दंड संहिता की धारा 420 के तहत परिभाषित अपराध लिंग तटस्थ (जेंडर न्यूट्रल) है?
* 2. क्या शादी के वादे पर स्थापित संबंध अगर किसी महिला द्वारा भंग किए जाते हैं तो धोखा और बलात्कार होगा?
3. "क्या लंबे रिश्ते के बाद कमतर जाति के आधार पर शादी करने से इनकार करना अपराध है?
4. * क्या कानून के तहत लिंग-पहचान और लिंग के बीच कोई अंतर है?
याचिकाकर्ता ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के एक आदेश को चुनौती देते हुए कहा है कि 2016 में एक महिला के खिलाफ उसके द्वारा दायर एफआईआर को खारिज कर दिया गया। इसके बाद याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए ये सवाल पूछे हैं।
यह है मामला :
नागराजु की शिकायत के बाद भारतीय दंड संहिता की धारा 420 और 506 और एससी और एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 की धारा 3 (1) (एक्स) के तहत महिला के खिलाफ एक प्राथमिकी दर्ज की गई।
याचिका के अनुसार, महिला एक मंदिर के प्रमुख पुजारी की बेटी थी। याचिकाकर्ता की लड़की से दोस्ती हुई और लड़की ने उसे प्रेम प्रस्ताव दिया। तब याचिकाकर्ता ने उसे समझाने की कोशिश की कि वे दोनों शादी नहीं कर सकते, क्योंकि वह अनुसूचित जाति का है और लड़की उच्च जाति में पैदा हुई थी। हालांकि लड़की ने याचिकाकर्ता से वादा किया कि जाति उनके विवाह में बाधा नहीं बनेगी। इसके बाद, याचिका में आरोप लगाया गया, महिला ने उसके साथ यौन संबंध बनाने पर जोर दिया और उसके विरोध के बावजूद यौन संबंध बनाने शुरू कर दिए।
एक बार जब प्रतिवादी को मैसूर में नौकरी मिल गई, तो उसका व्यवहार बदल गया, उसने याचिकाकर्ता की कॉल को नजरअंदाज करना शुरू कर दिया और जब भी वह महिला से बात करता तो वह बहुत अशिष्टता से बात करती।
याचिकाकर्ता के अनुसार, जब उसने महिला से शादी के बारे में कहा तो उसने कहा "हम तुम लोगों को हमारे घर के शौचालय भी साफ करने की अनुमति नहीं देते।" प्रतिवादी ने आरोप लगाया कि याचिकाकर्ता से महिला ने कथित तौर पर कहा कि वह उससे शादी करने के लिए "योग्य" नहीं है और उसे जान से मारने की धमकी दी क्योंकि, उसके पिता इलाके के प्रभावशाली व्यक्ति थे।
नागराजू की प्राथमिकी दर्ज होने के बाद महिला ने अग्रिम जमानत अर्जी दायर की, जिसे जिला जज ने खारिज कर दिया, जिसमें उल्लेख किया कि धोखाधड़ी का एक प्रथम दृष्टया मामला सामने आया है। फिर उच्च न्यायालय के समक्ष महिला ने अपना आवेदन दायर किया गया, जिस पर महिला को राहत मिली। वर्तमान एसएलपी में हाईकोर्ट के इस आदेश को चुनौती दी गई है।
अधिवक्ता सैयद कामरान अली द्वारा प्रस्तुत याचिका इस प्रकार है-
"कि वर्तमान याचिका आपराधिक न्यायशास्त्र में व्याप्त असमानताओं को सामने लाती है जो एक लिंग (Gender) के व्यक्ति के लिए न्याय का अधिकार उसी आधार पर अस्वीकार करती है जैसा कि दूसरे लिंग के व्यक्ति को प्राप्त होता है। वर्तमान याचिका में याचिकाकर्ता उत्तरदाता नंबर 1 के द्वारा उसके साथ किए गए दमन, अन्याय के खिलाफ आश्रय चाहता है। "
आगे यह कि,
"इस याचिका के पीछे का उद्देश्य पुरुषों और महिलाओं को उनकी सहमति के बिना किसी अन्य व्यक्ति द्वारा शारीरिक रूप से प्रताड़ित किए जाने के खिलाफ उनके अधिकारों की रक्षा करना है। इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि किसी भी शारीरिक संबंध में यदि एक बार सहमति का तत्व निकाल दिया जाए तो चाहे उनके लिंग कुछ भी हों, अन्य व्यक्ति द्वारा यौन उल्लंघन या बलात्कार का मामला बनता है। "