20 हजार करोड़ की सेंट्रल विस्टा योजना पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगाने से इनकार किया

Update: 2020-04-30 08:05 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र की प्रस्तावित महत्वकांक्षी सेंट्रल विस्टा योजना को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए गुरुवार को इस योजना पर रोक लगाने से इनकार कर दिया।

मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की पीठ ने याचिकाकर्ता राजीव सूरी को याचिका में संशोधन करने को कहा है।

जब याचिकाकर्ता ने योजना पर रोक का अनुरोध किया तो मुख्य न्यायाधीश ने कहा,

" कोरोना के चलते कोई काम नहीं होने वाला है। इस मामले में जल्द सुनवाई की जरूरत नहीं। पहले ही ऐसी याचिका सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं तो आप इसमें संशोधन कीजिए। "

वहीं सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा,  

"एक नई संसद का निर्माण किया जा रहा है। किसी को कोई समस्या क्यों होनी चाहिए?"

दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने राजीव सूरी द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई की जिसमें सेंट्रल विस्टा पुनर्विकास योजना को इस आधार पर चुनौती दी गई है कि भूमि उपयोग में अवैध परिवर्तन किया गया है।

यह तर्क दिया गया है कि सरकार की अधिसूचना, 20 मार्च, 2020, जो 19 दिसंबर, 2019 को दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) द्वारा जारी एक सार्वजनिक सूचना को निरस्त करती है, न्यायिक नियमों के खिलाफ है क्योंकि मामला पहले ही सुप्रीम कोर्ट में लंबित है।

सेंट्रल विस्टा में संसद भवन, राष्ट्रपति भवन, उत्तर और दक्षिण ब्लॉक की इमारतें, जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालयों और इंडिया गेट जैसी प्रतिष्ठित इमारतें हैं। केंद्र सरकार एक नया संसद भवन, एक नया आवासीय परिसर बनाकर उसका पुनर्विकास करने का प्रस्ताव कर रही है जिसमें प्रधान मंत्री और उपराष्ट्रपति के अलावा कई नए कार्यालय भवन होंगे।

सुप्रीम कोर्ट में केंद्र द्वारा विस्टा के पुनर्विकास योजना के बारे में भूमि उपयोग में बदलाव को अधिसूचित करने के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है। केंद्र की ये योजना 20 हजार करोड़ रुपये की है।  20 मार्च, 2020 को केंद्र ने संसद, राष्ट्रपति भवन, इंडिया गेट, नॉर्थ ब्लॉक और साउथ ब्लॉक जैसी संरचनाओं द्वारा चिह्नित लुटियंस दिल्ली के केंद्र में लगभग 86 एकड़ भूमि से संबंधित भूमि उपयोग में बदलाव को अधिसूचित किया था। आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय द्वारा जारी मार्च 2020 की अधिसूचना को रद्द करने के लिए अदालत से आग्रह करते हुए, याचिकाकर्ता का तर्क है कि यह निर्णय अनुच्छेद 21 के तहत एक नागरिक के जीने के अधिकार के विस्तारित संस्करण का उल्लंघन है।

इसे एक क्रूर कदम बताते हुए, सूरी का दावा है यह लोगों को अत्यधिक क़ीमती खुली जमीन और ग्रीन इलाके का आनंद लेने से वंचित करेगा।

दिल्ली हाईकोर्ट में राजीव शकधर की एकल पीठ ने 11 फरवरी को आदेश दिया था कि दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) को भूमि उपयोग में प्रस्तावित परिवर्तनों को सूचित करने से पहले उच्च न्यायालय का रुख करना चाहिए। आदेश दो याचिकाओं में पारित किया गया, एक राजीव सूरी द्वारा दायर किया गया और दूसरा लेफ्टिनेंट कर्नल अनुज श्रीवास्तव द्वारा।

सूरी ने सरकार द्वारा प्रस्तावित परिवर्तनों को इस आधार पर चुनौती दी कि इसमें भूमि उपयोग में बदलाव और जनसंख्या घनत्व के मानक शामिल हैं और इस तरह के बदलाव लाने के लिए डीडीए अपेक्षित शक्ति के साथ निहित नहीं है।  हालांकि बाद में डिविजन बेंच ने आदेश पर रोक लगा दी।  सुप्रीम कोर्ट ने पूरे मामले को बड़ा सार्वजनिक हित देखते हुए अपने पास सुनवाई के लिए रख लिया था।

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