CBI Vs WB : सुप्रीम कोर्ट ने CBI निदेशक को राजीव कुमार पर लगाए आरोपों के तथ्य पेश करने के निर्देश दिए
सीबीआई बनाम पश्चिम बंगाल सरकार मामले में सीबीआई की अर्जी पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई निदेशक को उन आरोपों पर 2 सप्ताह में हलफनामा दाखिल कर तथ्य प्रस्तुत करने को कहा है जिसमें कहा गया है कि कोलकाता पुलिस के पूर्व आयुक्त राजीव कुमार ने CBI को चिट फंड घोटाले से संबंधित कॉल रिकॉर्ड सौंपने से पहले उन रिकॉर्ड के साथ छेड़छाड़ की थी।
सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा कि अगर यह सच है कि राजीव कुमार के नेतृत्व वाली एसआईटी द्वारा एकत्र किए गए कॉल डेटा रिकॉर्ड के साथ छेड़छाड़ की गई है तो यह एक गंभीर अपराध है और यह कानून से छेड़छाड़ का मामला है।
वहीं सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ को बताया कि सीबीआई को पता चला है कि राजीव कुमार के नेतृत्व वाली एसआईटी द्वारा सीडीआर से मिटाए गए विवरणों में महत्वपूर्ण व्यक्तियों से संबंधित फोन नंबर हैं। उन्होंने कोर्ट को बताया कि सीबीआई ने राजीव कुमार द्वारा दिए गए कॉल डेटा रिकॉर्ड का मिलान सर्विस प्रोवाइडर के डेटा से किया है। पीठ इस मामले में अब अगली सुनवाई 26 मार्च को करेगी।
इससे पहले 20 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट में मामले पर सुनवाई तब टल गई थी जब पीठ में शामिल जस्टिस एल. नागेश्वर राव ने मामले की सुनवाई से खुद को ये कहते हुए अलग कर लिया कि वो पूर्व में बतौर वकील पश्चिम बंगाल सरकार के लिए पेश हो चुके हैं।
इस बीच सुप्रीम कोर्ट में अपना जवाब दाखिल करते हुए पश्चिम बंगाल सरकार और राज्य की पुलिस ने सुप्रीम कोर्ट में सीबीआई के आरोपों का खंडन किया है कि उन्होंने शारदा चिटफंड घोटाला मामलों की जांच में बाधा डाली है।
राज्य के मुख्य सचिव मलय कुमार डे, डीजीपी वीरेंद्र कुमार और कोलकाता पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार ने सुप्रीम कोर्ट में अलग-अलग हलफनामे दायर किए हैं। तीनों ने कहा कि पश्चिम बंगाल सरकार और राज्य पुलिस ने किसी भी समय जांच में किसी प्रकार की कोई बाधा नहीं डाली और न ही किसी अधिकारी ने सीबीआई को अपना सहयोग देने से इनकार किया।
अधिकारियों ने उनके खिलाफ सीबीआई द्वारा दाखिल अवमानना याचिका का भी विरोध किया जिसमें सीबीआई ने आरोप लगाया है कि वे सबूतों के साथ छेड़छाड़ कर रहे हैं और शीर्ष अदालत के जांच के लिए विभिन्न आदेशों का अनुपालन नहीं कर रहे हैं। अधिकारियों ने यह भी दावा किया है कि कोई भी पुलिस अधिकारी उस 'धरना मंच' पर नहीं गया, जहां पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी सीबीआई कार्रवाई का विरोध करने के लिए बैठी थीं।
डीजीपी और कुमार ने कहा कि कोई भी पुलिस अधिकारी वर्दी में या किसी भी समय पर कभी भी बैनर्जी के साथ धरने में शामिल नहीं हुआ था। उनका कहना है कि वो तो मुख्यमंत्री की सुरक्षा कर रहे थे जिन्हें जेड प्लस श्रेणी की सुरक्षा मुहैया कराई जा रही है।
इससे पहले 5 फरवरी को मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कोलकाता के पुलिस आयुक्त राजीव कुमार को सीबीआई जांच में शामिल होने और सहयोग करने को कहा था।
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ ने इससे पहले साफ किया था कि सीबीआई राजीव कुमार को गिरफ्तार नहीं कर सकती। पीठ ने कहा कि राजीव कुमार शिलांग में इस जांच में शामिल होंगे।
वहीं पीठ ने पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव, डीजीपी और कोलकाता के पुलिस आयुक्त को अवमानना का नोटिस जारी कर 18 फरवरी तक उनकी ओर से जवाब मांगा था।
इस दौरान सीबीआई की ओर से पेश अटार्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल ने पीठ से कहा था कि चिट फंड मामले की जांच कर रही SIT के चीफ राजीव कुमार लगातार सीबीआई जांच से बच रहे हैं। उन्होंने इस मामले की जांच के दौरान कॉल रिकार्ड आदि सबूतों से छेड़छाड़ की है और इन्हें छिपाया है। जब सीबीआई पूछताछ करने गई तो पुलिस ने अफसरों को बंधक बना लिया।
वहीं राज्य सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने इसका विरोध करते हुए कहा था कि सीबीआई का उद्देश्य सिर्फ पुलिस आयुक्त को परेशान करना है।
इससे पहले उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा उनके दावे को साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं दिया गया है कि पश्चिम बंगाल सरकार और राज्य पुलिस चिट फंड मामलों में इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य को नष्ट करने के लिए काम कर रही है। पीठ ने कहा था कि अगर ऐसा कोई तथ्य है तो उसे सुप्रीम कोर्ट के सामने लाया जाए। अगर कहीं से भी दूर-दूर तक ये साबित होगा तो कोर्ट इसके लिए बड़े भारी आदेश जारी करेगा।
दरअसल 9 फरवरी को कोलकाता पुलिस आयुक्त राजीव कुमार से पूछताछ करने गए सीबीआई अधिकारियों को हिरासत में लिया गया और बाद में उन्हें रिहा कर दिया गया। सीबीआई के लिए पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ को बताया था कि कोलकाता में एजेंसी के अधिकारियों के साथ जो हुआ वो एक "असाधारण स्थिति" थी।
भारत के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ के सामने तुषार मेहता ने कहा, "सीबीआई अधिकारियों को पार्क स्ट्रीट पुलिस स्टेशन में रखा गया था। वे (पुलिस) उस वक्त पीछे हटे जब उन्होंने पाया कि हम सुप्रीम कोर्ट का रुख कर रहे हैं। संयुक्त निदेशक व सीबीआई की टीम को बंधक बना लिया गया। संयुक्त निदेशक द्वारा आयोजित टेली कॉन्फ्रेंस के बाद ही उन्हें रिहा किया गया।"
उन्होंने कहा कि राज्य के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी राजीव कुमार टीएमसी पार्टी के धरने में शामिल हुए। इसे मेहता ने शारदा मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के उल्लंघन और सबूतों को नष्ट करने के लिए मिलीभगत बताया। मेहता ने कहा कि सीबीआई ने पुलिस आयुक्त के आत्मसमर्पण की मांग की है और पश्चिम बंगाल सरकार और पुलिस के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट की अवमानना के लिए भी याचिका दायर की है।