क्या मजिस्ट्रेट आरोपी को समन के मामले में रिहा कर सकता है, विशेषकर एनआई की धारा 138 के तहत मामले में? दिल्ली हाईकोर्ट के सामने हैं ये प्रश्न

Update: 2019-10-28 06:45 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट हाल ही में सीआरपीसी की धारा 395 के तहत समन मामलों में किसी आरोपी को रिहा करने के मजिस्ट्रेट के अधिकार के बारे में गौर करने पर सहमत हो गया है। न्यायमूर्ति मनमोहन और संगीता धींगरा सहगल ने इस मामले में वरिष्ठ वकील एन हरिहरन को अमिकस क्यूरी नियुक्त किया है।

अदालत के समक्ष विचार करने के लिए निम्नलिखित प्रश्न हैं।

प्रश्न 1. क्या किसी मजिस्ट्रेट को आम शिकायत विशेषकर एनआई की धारा 138 पर आधारित समन से जुड़े अदालती कार्यवाही वाले मामलों में किसी आरोपी के अदालत में पेश होने पर उसको रिहा करने का अधिकार है? खासकर उस समय में जब मामले का संज्ञान ले लिया गया हो और सीआरपीसी की धारा 204 के तहत प्रक्रिया जारी कर दी गई हो?

प्रश्न 2. अगर पहले प्रश्न का जवाब हां में है, तो उसको यह अधिकार सीआरपीसी की कौन सी धारा के तहत है?

प्रश्न 3. फिर, अगर पहले प्रश्न का उत्तर हां में है, तो रिहाई के लिए इस तरह के आवेदन की किस स्तर पर सुनवाई हो सकती है? – सीआरपीसी की धारा 251 के तहत आरोप तय करने की नोटिस के पहले या आरोप तय करने के नोटिस के समय या उससे पहले या पहले/इस तरह के नोटिस देने के दौरान/या नोटिस देने के बाद?

प्रश्न 4. और अंत में, अगर पहले प्रश्न का उत्तर हां में है तो रिहा करने के इस तरह के अधिकार की परिधि क्या होगी? और आरोपी को रिहा किये जाने के लिए पेश किये जाने वाले सबूत किस स्तर के होंगे कि उसकी दलील को स्वीकार कर लिया जाएगा? क्या ये सीआरपीसी की धारा 227 / 239 / 245 के तहत जो प्रावधान किये गए हैं उसी तरह के होंगे/उससे कड़े होंगे या इससे कम होंगे? फिर, क्या आरोपी जो दस्तावेज पेश करेगा उस पर इस आवेदन पर निर्णय लिए जाने के दौरान गौर किये जाने की अनुमति होगी?

प्रश्न 5. अगर प्रश्न एक का उत्तर ना में है, तो क्या यह कहना उचित होगा कि मजिस्ट्रेट की अदालत में आरोपी को इस तरह की राहत नहीं मिलेगी। मजिस्ट्रेट की अदालत में प्रक्रिया को अधिसूचित करने और आरोपी को अदालत में बुलाने के बाद सिर्फ उचित सुनवाई होगी?

पीठ ने कहा कि इस मामले की अगली सुनवाई अब 25 नवंबर को होगी। 



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