रिलायंस कम्युनिकेशंस व अनिल अंबानी पर बैंक घोटाले की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका
देश के सबसे बड़े कथित बैंक घोटालों में से एक की स्वतंत्र और न्यायालय-निगरानी में जांच कराने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई। यह याचिका पूर्व केंद्रीय सचिव ई.ए.एस. शर्मा ने अनुच्छेद 32 के तहत दायर की, जिसमें रिलायंस कम्युनिकेशंस लिमिटेड उसकी समूह कंपनियों और प्रमोटर अनिल अंबानी पर भारी धन-हेरफेर, फर्जीवाड़ा, खातों में हेर-फेर, शेल कंपनियों के जरिए धन-स्थानांतरण तथा संगठित वित्तीय अनियमितताओं के गंभीर आरोप लगाए गए।
याचिकाकर्ता की ओर से पेश एडवोकेट प्रशांत भूषण ने मामले का तत्काल उल्लेख चीफ जस्टिस के सामने करते हुए कहा कि यह लगभग 20,000 करोड़ रुपये के बैंक धोखाधड़ी का मामला है, जिसमें एक बड़े कॉर्पोरेट समूह की भूमिका की जांच आवश्यक है। चीफ जस्टिस बी आर गवई की पीठ ने मामले को शीघ्र सूचीबद्ध करने पर सहमति जताई।
याचिका में आरोप है कि इस प्रकरण की जो जांच फिलहाल केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) और प्रवर्तन निदेशालय (ED) कर रहे हैं, वह बेहद सीमित दायरे में है और उसमें बैंक अधिकारियों व अन्य लोकसेवकों की भूमिका को जानबूझकर जांच से बाहर रखा गया, जबकि विभिन्न फोरेंसिक ऑडिट रिपोर्टों और तकनीकी विश्लेषणों में उनके संभावित मिलीभगत के पर्याप्त संकेत मौजूद हैं। याचिकाकर्ता का कहना है कि केवल न्यायिक निगरानी में व्यापक और समन्वित जांच ही सच सामने ला सकती है।
याचिका के अनुसार 2013 से 2017 के बीच भारतीय स्टेट बैंक (SBI)की अगुवाई वाले बैंक समूह ने रिलायंस कम्युनिकेशंस व उससे जुड़ी कंपनियों को कुल 31,580 करोड़ रुपये के ऋण दिए। SBI द्वारा कराए गए 2020 के फोरेंसिक ऑडिट में हजारों करोड़ रुपये की संदिग्ध लेन-देन आपस में जुड़ी संस्थाओं को भेजे गए धन, शेल कंपनियों का इस्तेमाल और अवैध परिसंपत्ति खरीद जैसे गंभीर खुलासे हुए। इसके बावजूद, SBI ने औपचारिक शिकायत अगस्त 2025 में दर्ज कराई, जिससे करीब पांच वर्ष की देरी हुई। याचिकाकर्ता के अनुसार यह देरी तब तक समझ में नहीं आती, जब तक बैंक अधिकारियों की भूमिका की जांच न की जाए।
शिकायत के बाद CBI ने षड्यंत्र, धोखाधड़ी और आपराधिक विश्वासघात के आरोपों में FIR दर्ज की, जिसमें 2,929 करोड़ रुपये के कथित नुकसान का मामला दर्ज हुआ। याचिका का कहना है कि यह केवल पूरे मामले का एक छोटा हिस्सा है, जबकि कई गंभीर आरोप जैसे फर्जी बैंक खातों के जरिए धन-हेरफेर, लगातार ऋण एवरग्रीनिंग काल्पनिक प्रविष्टियां और संदिग्ध कंपनियों के जरिए लेन-देन जांच के दायरे से बाहर हैं। इनमें उल्लेखित कई कंपनियां अपने पंजीकृत पते पर मिली ही नहीं।
याचिका में रिलायंस कम्युनिकेशंस, रिलायंस इंफ्राटेल, रिलायंस टेलीकॉम, रिलायंस कैपिटल और अन्य संबद्ध इकाइयों की फोरेंसिक रिपोर्टों का हवाला देते हुए कहा गया है कि इनमें सार्वजनिक धन की बड़े पैमाने पर निकासी, धंधेबाज़ी के तौर पर लेन-देन की परतें बिछाने और कंपनी कानून, FEMA, SEBI नियमों तथा आरबीआई निर्देशों के उल्लंघन जैसी गंभीर अनियमितताएँ दर्ज हैं। याचिकाकर्ता का तर्क है कि ऋणों के स्वीकृति व निगरानी में शामिल बैंक अधिकारी 'लोकसेवक' की श्रेणी में आते हैं और उनकी भूमिका की जांच न करना संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन है।
याचिका में कोबरा पोस्ट की हालिया खोजी रिपोर्ट का भी उल्लेख किया गया, जिसमें दावा किया गया कि अनिल अंबानी समूह की विभिन्न कंपनियों ने कुल 41,921 करोड़ रुपये की रकम कथित रूप से इधर-उधर की, जिसमें लगभग 28,874 करोड़ रुपये घरेलू बैंकों से लिए गए ऋणों से और करीब 13,047 करोड़ रुपये मॉरीशस, साइप्रस और ब्रिटिश वर्जिन द्वीप जैसे देशों में स्थित ऑफशोर इकाइयों के जरिए भारत लाए गए।
रिलायंस कैपिटल के 2022 के फोरेंसिक ऑडिट का भी हवाला दिया गया, जिसमें लगभग 16,000 करोड़ रुपये के संदिग्ध इंटर-कारपोरेट डिपॉजिट, प्रतिभूतियों का मनमाना अवमूल्यन और ऋण नीतियों के निरंतर उल्लंघन के आरोप सामने आए। दिवालियापन प्रक्रिया के दौरान ग्रांट थॉर्नटन द्वारा तैयार रिपोर्ट में भी कई पक्षपाती और कम मूल्य पर किए गए लेन-देन का विवरण सामने आया है, जिससे बैंकों और कर्जदाताओं को भारी नुकसान हुआ।
याचिका का दावा है कि विभिन्न स्थानों पर छापेमारी के बावजूद अब तक न कोई गिरफ्तारी हुई और न ही कोई बड़ा परिसंपत्ति जब्ती कदम उठाया गया। यह स्थिति दर्शाती है कि बिना न्यायालय की निगरानी के प्रभावी जांच संभव नहीं है। इतने बड़े पैमाने पर सार्वजनिक धन के कथित दुरुपयोग और संस्थागत मिलीभगत के आरोपों को देखते हुए याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट से स्वतंत्र, न्यायालय-निगरानी जांच की मांग की।
इसके साथ ही याचिका में एक विशेषज्ञ समिति गठित करने का भी अनुरोध किया गया, जो ऐसे वित्तीय घोटालों की पुनरावृत्ति रोकने के लिए प्रणालीगत सुधारों की सिफारिश कर सके।