AG की अवमानना याचिका पर प्रशांत भूषण ने माफी मांगने से इनकार किया, AG अर्जी वापस लेना चाहते हैं लेकिन SC आगे सुनवाई चाहता है
वकील प्रशांत भूषण ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष यह स्वीकार किया कि उन्होंने ये ट्वीट करके "वास्तविक गलती" की है कि सरकार ने एम. नागेश्वर राव की सीबीआई के अंतरिम निदेशक के तौर पर नियुक्ति के लिए उच्चस्तरीय चयन समिति की बैठक के गढे़ हुए ब्यौरे को प्रस्तुत किया था।
इसी दौरान अटॉर्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल ने न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा और न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा की पीठ से कहा कि भूषण के बयान के मद्देनजर वह प्रशांत भूषण के खिलाफ दायर अपनी अवमानना याचिका वापस लेना चाहेंगे। हालांकि भूषण ने बिना शर्त माफी मांगने से इनकार कर दिया।
पीठ ने कहा कि वह इस मुद्दे पर विचार करेगी कि क्या कोई व्यक्ति जनता की राय को प्रभावित करने के लिए उप-न्यायिक मामले में अदालत की आलोचना कर सकता है। पीठ ने इस मामले को 3 अप्रैल को आगे की सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया है।
सुनवाई के दौरान प्रशांत भूषण ने वेणुगोपाल द्वारा दायर अवमानना याचिका पर न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा को सुनवाई से अलग करने के लिए भी अर्जी दी लेकिन न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा ने इससे इनकार कर दिया। इस दौरान वेणुगोपाल ने अदालत को बताया कि वह अपने पहले के बयान पर अडिग हैं कि वह भूषण को मामले में कोई सजा नहीं देना चाहते और वो अपनी अर्जी वापस ले रहे हैं।
लेकिन पीठ ने कहा कि एक बार अदालत किसी मुद्दे पर संज्ञान ले लेती है तो फिर अदालत ही यह तय करती है कि केस की सुनवाई बंद हो या नहीं।
6 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने वकील प्रशांत भूषण के खिलाफ दायर उन याचिकाओं पर नोटिस जारी किया था जिनमें कहा गया था कि अटॉर्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल ने सुप्रीम कोर्ट को यह कहकर गुमराह किया है कि अंतरिम सीबीआई निदेशक एम. नागेश्वर राव की नियुक्ति को हाई पॉवर कमेटी ने मंजूरी दी थी। ये अवमानना याचिका अटार्नी जनरल और केंद्र सरकार ने दाखिल की हैं।
नोटिस जारी करते हुए न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा और न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा की पीठ ने इस बड़े मुद्दे पर विचार करने के लिए सहमति जताई थी कि जब मामला अदालत में लंबित हो तो वकील कैसे टिप्पणी कर सकते हैं। अदालत में मौजूद प्रशांत भूषण ने इस को नोटिस स्वीकार किया और अदालत को यह आश्वासन भी दिया कि वह 3 हफ्ते में अपना जवाब दाखिल करेंगे।
हालांकि इस सुनवाई में केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल और AG की दलीलों में अंतर देखा गया था। एक तरफ जहां AG ने कहा कि वो अवमानना के तहत कोई सजा नहीं चाहते हैं तो दूसरी ओर SG ने कहा कि भूषण को अवमानना के लिए दंडित किया जाए।
हालांकि AG वेणुगोपाल ने जोर देकर कहा कि वह किसी सजा को लागू करने के लिए दबाव नहीं डाल रहे। अदालत को यह तय करना चाहिए कि एक वकील अदालत में लंबित किसी मामले में किस हद तक सार्वजनिक बयान दे सकता है।
पीठ ने तब इस मुद्दे पर AG से पूछा, "इस मुद्दे पर कानून क्या है? हमें उप-न्यायिक मामले में वकीलों से क्या उम्मीद की जानी चाहिए और क्या उप-न्यायिक मामले में टीवी बहस जैसी सार्वजनिक चर्चा हो सकती है?" पीठ ने कहा, "हम अदालती कार्यवाही पर मीडिया रिपोर्टिंग के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन एक मामले में शामिल वकीलों को लंबित मामले में सार्वजनिक बयान देने से बचना चाहिए।"
न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा, "हम बड़े मुद्दे पर हैं। इस मुद्दे को सुलझाने का समय अब आ गया है। यह देखा गया है कि कभी-कभी वकील मीडिया पर जाने के प्रलोभन को नियंत्रित नहीं कर पाते। पहले बार संस्थान की रक्षा कर रहा था लेकिन अब यह अलग है।"
दरअसल AG ने सुप्रीम कोर्ट में अवमानना याचिका दायर की है जिसमें कहा गया कि भूषण ने जानबूझकर सुनवाई के दौरान हाई पावर कमेटी की बैठक के ब्यौरे को गलत बताया जिससे उनकी ईमानदारी और निष्ठा पर सवाल उठे। इसके बाद केंद्र सरकार ने एक और अवमानना दाखिल करते हुए कहा कि सार्वजनिक मंच पर झूठे और गैर-जिम्मेदाराना आरोप लगाने के चलते वकील पर दंडनीय कार्रवाई होनी चाहिए।
इस बीच अरुणा रॉय, अरुंधति रॉय और शैलेश गांधी सहित 10 सामाजिक कार्यकर्ता भी शीर्ष अदालत में भूषण के समर्थन में सामने आए हैं। उन्होंने कहा है कि उनके खिलाफ शुरू की गई अवमानना कार्यवाही अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला है। इसके अलावा पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी सहित 5 वरिष्ठ पत्रकारों द्वारा शीर्ष अदालत में एक अलग हस्तक्षेप अर्जी भी दाखिल की गई है।