गर्भपात याचिका: सुप्रीम कोर्ट ने एम्स से पूछा, क्या याचिकाकर्ता द्वारा पोस्ट पॉर्टम साइकोसिस के लिए ली गई दवाओं से भ्रूण प्रभावित हुआ?
सुप्रीम कोर्ट ने 26 सप्ताह की गर्भवती विवाहिता की गर्भावस्था को चिकित्सकीय रूप से टर्मिनेट करने के लिए दायर याचिका पर शुक्रवार को सुनवाई जारी रखी। सुप्रीम कोर्ट ने आज की सुनवाई में याचिकाकर्ता की ओर कोर्ट को दिए गए पोस्ट पॉर्टम साइकोसिस प्रिस्क्रिप्शन की प्रामाणिकता पर संदेह किया।
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने एम्स को याचिकाकर्ता की मानसिक और शारीरिक स्थिति का स्वतंत्र मूल्यांकन करने का निर्देश दिया। कोर्ट ने एम्स मेडिकल बोर्ड को यह जांच करने के लिए भी कहा कि याचिकाकर्ता जो दवाओं ले रही है, क्या उसका भ्रूण पर कोई प्रभाव पड़ा है?
डॉक्टर के प्रिस्क्रिप्शन की वैधता पर संदेह
प्रिस्क्रिप्शन को पढ़ने के बाद सीजेआई ने कहा कि किसी भी हस्तलिखित प्रिस्क्रिप्शन में याचिकाकर्ता के डाइग्नोसिस या स्थिति की प्रकृति का कोई संदर्भ नहीं है। उन्होंने पूछा- "क्या इन प्रिस्क्रिप्शन पर सुप्रीम कोर्ट भरोसा कर सकता है? या ये हमें प्रभावित करने के लिए तैयार किए गए हैं? यह प्रिस्क्रिप्शन की वैधता पर संदेह पैदा करता है।"
पीठ ने उक्त टिप्पणियों के साथ एम्स मेडिकल बोर्ड को निम्न बिंदुओं पर राय देने का निर्देश दिया-
1. क्या भ्रूण एमटीपी एक्ट की धारा 3(2बी) के अनुसार किसी महत्वपूर्ण असामान्यता से पीड़ित है?
2. क्या यह सुझाव देने के लिए कोई सबूत है कि पोस्ट पॉर्टम साइकोसिस के लिए याचिकाकर्ता को निर्धारित दवाओं से गर्भावस्था को पूरी अवधि तक जारी रखना खतरे में पड़ जाएगा?
एम्स मेडिकल बोर्ड को याचिकाकर्ता की मानसिक और शारीरिक स्थिति का मूल्यांकन करने का निर्देश दिया गया और अदालत को यह बताने का निर्देश दिया गया कि यदि याचिकाकर्ता को प्रसवोत्तर मनोविकृति से पीड़ित पाया जाता है तो वैकल्पिक दवाएं क्या हो सकती हैं। उसे अजन्मे बच्चे को नुकसान न पहुंचाने का निर्देश दिया गया।
अब इस मामले की सुनवाई सोमवार को होगी।
मामला
26 साल की विवाहित महिला ने अपनी गर्भावस्था को चिकित्सकीय रूप से टर्मिनेट करने के लिए याचिका दायर की है। वह दो बच्चों की मां की है और यह उसकी तीसरी गर्भावस्था है। उसका दूसरा बच्चा सितंबर, 2022 में हुआ था।
याचिका में उसने कहा है कि वह पोस्ट पॉर्टम साइकोसिस से पीड़ित है और भावनात्मक, आर्थिक और शारीरिक रूप से तीसरे बच्चे को पालने की स्थिति में नहीं है। कल की सुनवाई ते पीठ ने अनुमति के मुद्दे पर कहा कि मेडिकल रिपोर्ट में कहा गया है कि भ्रूण के जीवित रहने की पूरी संभावना है, इस स्टेज पर गर्भपात की अनुमति देना भ्रूण हत्या के समान हो सकता है।
पीठ ने वकीलों को गर्भावस्था जारी रखने की संभावना के बारे में महिला से बात करने का भी निर्देश दिया था।
इससे पहले जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस बीवी नागरत्ना की विशेष पीठ ने महिला की याचिका पर खंडित फैसला सुनाया था, जिसके बाद यह मुद्दा तीन जजों की पीठ तक पहुंच गया। आज कार्यवाही का समापन करते हुए, सीजेआई ने कहा, "एक बात स्पष्ट है, हम अन्य देशों से बहुत आगे हैं। हमारे पास रो बनाम वेड मुद्दा नहीं है, हम काफी उदार हैं..."