एमिकस- मृत्यदंड या उम्रकैद के दंडनीय अपराध के मुकदमे में अभियुक्त की पैरवी करने के लिए वकील को 10 वर्ष की प्रैक्टिस का अनुभव आवश्यक : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर आपराधिक मामलों में अभियुक्तों के बचाव के लिए एमिकस क्यूरी की नियुक्ति के मामले में दिशानिर्देश जारी किए हैं।
न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित, न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की पीठ ने एक बलात्कार और हत्या के आरोपी (जिसके खिलाफ चल ट्रायल को 13 दिनों के भीतर निपटा दिया गया था) को दी गई मृत्युदंड की सजा को रद्द करते हुए ये दिशानिर्देश जारी किए हैं।
कोर्ट ने पाया कि इस मामले में नियुक्त एमिकस क्यूरी को न तो बुनियादी दस्तावेजों को देखने का पर्याप्त समय मिला, न ही आरोपी के साथ किसी चर्चा या बातचीत का मौका मिला और न ही मामले को पूरी तरह समझने का समय मिला।
यह भी कहा गया कि आपराधिक मामलों के शीघ्र निपटारे का परिणाम कभी भी ऐसा न हो को न्याय को दफना दिया जाए।
फैसले में पीठ ने कहा कि-
1). ऐसे सभी मामलों में जहां आजीवन कारावास या मौत की सजा दिए जाने संभावना है, वह अधिवक्ता जिन्होंने कम से कम 10 साल का अभ्यास किया हो, उन्हें ही एक अभियुक्त का प्रतिनिधित्व करने के लिए एमिकस क्यूरी के रूप में या कानूनी सेवाओं के माध्यम से नियुक्त किया जाना चाहिए।
2).मौत की सजा की पुष्टि के संबंध में हाईकोर्ट द्वारा निपटाए गए सभी मामलों में न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ताओं को सबसे पहले एमिकस क्यूरी के रूप में नियुक्त करने पर विचार करना चाहिए।
3).जब भी किसी वकील को एमिकस क्यूरी के रूप में नियुक्त किया जाता है, तो वकील को मामला तैयार करने के लिए कुछ उचित समय प्रदान किया जा सकता है। इस के लिए कोई कठोर और पक्का नियम नहीं हो सकता है। हालांकि, न्यूनतम सात दिनों के समय को आमतौर पर उचित और पर्याप्त माना जा सकता है।
4). कोई भी वकील, जिसे अभियुक्त की ओर से एमिकस क्यूरी के रूप में नियुक्त किया गया है, उसे आम तौर पर संबंधित अभियुक्तों के साथ मिलने और चर्चा करने के लिए अनुमति दी जानी चाहिए।
जजमेंट की कॉपी डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें