सबरीमला अयप्पा मंदिर में महिलाओं के प्रवेश के बाद ' शुद्धिकरण': SC ने अवमानना अर्जी के मामले में कहा, पुनर्विचार याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान मौजूद रहें
केरल के सबरीमला अयप्पा मंदिर के मामले में मुख्य पुजारी के खिलाफ दाखिल अदालत की अवमानना याचिका पर जल्द सुनवाई की मांग पर मंगलवार को चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने याचिकाकर्ता के वकील से कहा कि वो 6 फरवरी को होने वाली पुनर्विचार याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान मौजूद रहें। उन्होंने कहा कि इसको लेकर कुल 54 याचिकाएं दाखिल की गई हैं।इसका मतलब ये है कि 5 जजों की पीठ बुधवार को होने वाली इस सुनवाई में अवमानना याचिका पर भी सुनवाई कर सकता है।
इससे पहले 3 जनवरी को मंदिर के मुख्य पुजारी के खिलाफ दाखिल अदालत की अवमानना याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने जल्द सुनवाई से इनकार कर दिया था। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने 2 महिलाओं के मंदिर में प्रवेश के बाद 'शुद्धिकरण' के लिए मंदिर को बंद करने के खिलाफ याचिका पर जल्द सुनवाई की मांग पर कहा था कि इसके लिए अलग बेंच का गठन मुश्किल है।
दरअसल केरल के सबरीमला स्थित अयप्पा मंदिर में 2 जनवरी 2019 को 44 और 42 वर्षीय 2 महिलाओं ने प्रवेश किया था।कनकदुर्गा (44) और बिंदु (42) सुबह 3.38 बजे मंदिर पहुंच गई थीं। मंदिर में महिलाओं के प्रवेश के बाद मुख्य पुजारी ने 'शुद्धिकरण' समारोह के लिए मंदिर के गर्भ गृह को बंद करने का फैसला किया। मंदिर को तड़के 3 बजे खोला गया था और 'शुद्धिकरण' के लिए उसे सुबह 10:30 बजे दुबारा बंद कर दिया गया था।
इससे पहले 7 दिसंबर 2018 को भी केरल के सबरीमला मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं के प्रवेश के मामले में केरल सरकार की 2 याचिकाओं पर जल्द सुनवाई करने से सुप्रीम कोर्ट ने इनकार कर दिया था।
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने केरल सरकार की ओर से पेश वकील विजय हंसारिया से कहा था कि आखिर इसमें जल्दबाजी की क्या जरूरत है? वैसे सुप्रीम कोर्ट ने 22 जनवरी को खुली अदालत में पुनर्विचार याचिकाओं पर सुनवाई का फैसला किया है। हालांकि जस्टिस इंदु मल्होत्रा के छुट्टी पर होने की वजह से इस मामले को 6 फरवरी के लिए सूचीबद्ध किया गया।
गौरतलब है कि 19 नवंबर 2018 को इस मामले में त्रावणकोर देवासम बोर्ड ने भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट से 28 सितंबर के आदेश को, जिसमे सभी उम्र की महिलाओं को सबरीमला मंदिर में प्रवेश का आदेश दिया गया था, लागू करने के लिए कुछ और वक्त देने की गुहार लगाई है।
याचिका में इस मामले में बिगड़ी कानून व्यवस्था का हवाला दिया गया है। कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले का व्यापक असर हुआ है और मंदिर को लेकर कानून व्यवस्था बिगड़ी है।
इसके अलावा यह भी कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत महिलाओं के प्रवेश के लिए शौचालयों का प्रबंध व अन्य व्यवस्था करने में भी वक्त लगेगा क्योंकि पंबा व निलक्कल में CEC ने निर्माण कार्यों पर रोक लगा दी है। ये इलाका संरक्षित वन क्षेत्र में आता है।
ऐसे में जब तक बोर्ड, कमेटी के सारे नियमों का पालन नहीं करता है तब तक वहां किसी तरह का निर्माण कार्य नहीं हो सकता और ना ही महिलाओं के लिए उचित सुविधाओं का इंतजाम हो सकता है।
बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट को ये भी बताया है कि अभी तक 1000 महिलाओं ने मंदिर में दर्शन के लिए पंजीकरण कराया है। बोर्ड ने गुहार लगाई है कि महिलाओं के लिए रेस्ट रूम, शौचालयों व सुरक्षा के मद्देनजर इंतजाम करने और सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लागू करने के लिए थोड़ा और वक्त दिया जाए।
इससे पहले एक अहम फैसले में सुप्रीम कोर्ट सबरीमला मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं के प्रवेश के फैसले पर दाखिल पुनर्विचार याचिकाओं पर सुनवाई के लिए तैयार हो गया था। 13 नवंबर 2018 को यह फैसला किया गया कि चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस रोहिंटन एफ. नरीमन, जस्टिस ए. एम. खानविलकर, जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदू मल्होत्रा की पीठ खुली अदालत में 22 जनवरी को इस मामले की सुनवाई करेगी। पीठ ने ये भी साफ किया कि इस दौरान 28 सितंबर के फैसले पर कोई रोक नहीं है।
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में 28 सितंबर के 5 जजों के संविधान पीठ के फैसले को लेकर 49 पुनर्विचार याचिकाएं दाखिल की गई हैं। फैसले में 4:1 के बहुमत से कहा गया कि सभी उम्र की महिलाएं, केरल के सबरीमला मंदिर में प्रवेश कर सकती हैं।
पीठ ने अपने फैसले में 10 से 50 साल की उम्र की महिलाओं के प्रवेश पर रोक की परंपरा को अंसवैधानिक करार दिया है। इसी पर पीठ ने चेंबर में विचार किया और फिर आदेश जारी किया। इससे पहले संविधान पीठ में शामिल चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा रिटायर हो चुके हैं और उनकी जगह मौजूदा चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने ली है।