अयोध्या गैर- विवादित भूमि पर पूजा के अधिकार की याचिका SC ने खारिज की, CJI ने कहा, " आप देश को शांति से रहने नहीं देना चाहते "

Update: 2019-04-12 13:33 GMT

अयोध्या में रामजन्मभूमि- बाबरी मस्जिद विवाद के चलते केंद्र सरकार द्वारा अधिग्रहीत की गई गैर विवादित भूमि पर पूजा के अधिकार को लेकर दाखिल याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है।

इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को रखा गया बरकरार

चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की पीठ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस फैसले को भी बरकरार रखा जिसमें याचिकाकर्ता पंडित अमरनाथ मिश्रा पर 5 लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया था। शुक्रवार को इस मामले की सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने याचिकाकर्ता पर टिप्पणी की, "आप देश को शांति से रहने नहीं देना चाहते... किसी ना किसी को इस मामले में टांग अड़ानी ही है।"

इसके बाद इस याचिका को खारिज कर दिया गया। दाखिल की गयी इस याचिका में कहा गया था कि गैर विवादित भूमि पर सभी को पूजा का अधिकार मिलना चाहिए।

मध्यस्थता समिति कर रही है इस विवाद पर कार्य

दरअसल इस विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता के लिए जस्टिस एफ. एम. आई. कलीफुल्ला, आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर और वरिष्ठ वकील श्रीराम पंचू की सदस्यता वाली मध्यस्थता समिति का गठन किया है।

वहीं रामजन्मभूमि- बाबरी मस्जिद विवाद मामले में निर्मोही अखाड़ा एक बार फिर से सुप्रीम कोर्ट पहुंचा है। अखाड़ा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर केंद्र सरकार की उस याचिका का विरोध किया है जिसमें अयोध्या में अधिग्रहीत की गई अतिरिक्त जमीन को वापस देने की अनुमति मांगी गई है।

"केंद्र की याचिका स्वीकार नहीं की जा सकती"
पंच रामानंदी निर्मोही अखाड़ा अयोध्या (निर्मोही अखाड़ा) ने मंगलवार को दाखिल अर्जी में कहा है कि विवादित बाबरी मस्जिद ढांचे के आसपास की अतिरिक्त भूमि की बहाली के लिए केंद्र की याचिका को स्वीकार नहीं किया जा सकता है।

अखाड़ा ने कहा कि केंद्र सरकार जानबूझकर इस ज़मीन की रिहाई चाहती है, जिसमें निर्मोही अखाड़ा का भी योगदान है और उसकी इसमें काफी रुचि भी है।

निर्मोही अखाड़ा ने कहा कि यह ज्ञात नहीं है कि मामले की अपील में अंततः कौन सा पक्षकार सफल होगा और इसलिए वर्तमान में इस भूमि का मूल्यांकन नहीं किया जा सकता है। निर्मोही अखाड़ा ने जमीन के एक हिस्से में दावा किया है इसलिए उसे वापस करने की मांग की गई है।

"फिलहाल जमीन को ट्रस्टी के तौर पर जारी रखा जाए"
अखाड़ा ने केंद्र की राम जन्मभूमि न्यास को कुछ भूमि हस्तांतरित करने के कदम पर आपत्ति जताई और कहा कि इस भूमि को सरकार द्वारा ट्रस्टी के रूप में जारी रखना चाहिए ताकि अखाड़ा अगर ये साबित करे कि उसका दावा सही है तो फिर उसे ये भूमि वापस दी जा सके।

सुप्रीम कोर्ट के सामने लंबित अपील पर अखाड़ा ने प्रस्तुत किया कि 67 एकड़ भूमि में से लगभग 42 एकड़ भूमि का अधिग्रहण अयोध्या अधिनियम, 1993 में किया गया जिसे कथित रूप से धोखाधड़ी के आधार पर उक्त न्यास को किया गया था। इसका दावा करने वाला एक मुकदमा फैजाबाद में मुंसिफ की अदालत में अभी लंबित है।

उक्त जमीन के कुछ हिस्से पर अखाड़ा का दावा है
याचिकाकर्ता ने बताया कि वर्ष 1991 में जारी अधिसूचनाओं के माध्यम से ये विवादित भूमि सरकार द्वारा मूल रूप से जब्त कर ली गई थी। इन अधिसूचनाओं को वर्ष 1992 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा रद्द कर दिया गया था। हालांकि, इस बीच सरकार ने पहले से ही इन क्षेत्रों में स्थित कई मंदिरों को ध्वस्त कर दिया गया था जिसमें से 6 मंदिर निर्मोही अखाड़ा के प्रतिनिधियों द्वारा स्थापित किए गए थे।

याचिका में कहा गया कि वर्ष 1992 के फैसले को कभी चुनौती नहीं दी गई और यह अंतिम हो गया था। इसके परिणामस्वरूप विवादित संपत्तियों और ध्वस्त मंदिरों को बहाल किया जाना चाहिए क्योंकि वे अधिग्रहण से पहले मौजूद थे। ऐसे में केंद्र को ये जमीन किसी को भी वापस करने के लिए नहीं दी जा सकती है। अखाड़ा ने ये भी कहा है कि रामजन्मभूमि न्यास को अयोध्या में बहुमत की जमीन नहीं दी जा सकती।

मध्यस्थता के स्थान बदलने को लेकर अखाड़ा ने की है प्रार्थना

अखाड़ा ने इससे पहले प्रार्थना की थी कि मामले के मध्यस्थता स्थल को फैजाबाद से दिल्ली स्थानांतरित कर दिया जाए। साथ ही 2 और न्यायाधीशों को मध्यस्थता पैनल में नियुक्त किया जाए और जो भी अंतिम निर्णय लिया जाए उसमें शामिल पंचों की मंजूरी के अधीन होना चाहिए।

विवादित क्षेत्र के आसपास निर्विवाद भूमि को लेकर अर्जी
29 जनवरी को राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले में एक बड़ा ट्विस्ट तब आ गया था जब केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर बाबरी- रामजन्मभूमि की विवादित भूमि के आसपास अधिग्रहीत की गई "निर्विवाद" भूमि को वापस देने की अनुमति मांगी।

केंद्र की अर्जी के मुताबिक केंद्र ने अयोध्या में 67.703 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया था, जिसमें उस भूखंड को भी शामिल किया गया था, जहां बाबरी मस्जिद के नाम से जाना जाने वाला ढांचा भी शामिल था। यह जमीन अयोध्या अधिनियम, 1993 के तहत अधिग्रहीत की गई।

0.313 एकड़ भूमि से संबंधित है यह विवाद

विवाद केवल 0.313 एकड़ भूमि से संबंधित है, जहां बाबरी मस्जिद खड़ी थी, तो अतिरिक्त भूमि को उसके सही मालिकों को वापस करने की अनुमति दी जानी चाहिए। इसमें 42 एकड़ भूमि रामजन्मभूमि न्यास की है।

केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के वर्ष 2003 के असलम भूरे बनाम राजेंद्र बाबू मामले में फैसले को संशोधित करने की मांग की है जिसमें कहा गया था कि अतिरिक्त जमीन को असल विवाद के निपटारे के बाद वापस किया जाएगा। 15 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को संविधान पीठ को भेज दिया था।

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